देवाधिदेव महादेव भगवान शिव के आदेश पर संत तुलसीदास ने लिखा था रामचरित मानस ग्रंथ

भक्ति और साहित्य के अमर ज्योति, भगवान श्रीराम की भक्ति में पूरी तरह लीन ही रहा करते थे गोस्वामी संत तुलसीदास
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संत तुलसीदास जयंती हर साल श्रावण मास के शुक्ल पक्ष की सप्तमी तिथि को मनाई जाती है। यह दिन गोस्वामी संत तुलसीदास जी के जन्मदिवस के रूप में मनाया जाता है, जो हिंदी साहित्य के महान कवि और संत थे। संत तुलसीदास जी ने रामचरितमानस जैसे अमर ग्रंथ की रचना की, जो आज भी भारतीय संस्कृति और धर्म का महत्वपूर्ण हिस्सा है। इस साल यह ब्रहस्पतिवार 31 जुलाई 2025 को मनाई जाएगी।
भारतीय भक्ति परंपरा में संत तुलसीदास का नाम अत्यंत श्रद्धा और आदर के साथ लिया जाता है। वे न केवल एक महान कवि थे, बल्कि एक ऐसे आध्यात्मिक गुरु भी थे जिन्होंने अपनी रचनाओं के माध्यम से जनमानस में राम भक्ति की अविरल धारा प्रवाहित की। उनका काल भारतीय इतिहास का वह स्वर्णिम अध्याय था जब सामाजिक और धार्मिक मूल्यों में कुछ गिरावट आ रही थी, और ऐसे समय में संत तुलसीदास ने अपनी लेखनी से नैतिकता और धर्मपरायणता की अलख जगाई।
अगर आप जगत को रोशन करने वाले भगवान भास्कर, भगवान विष्णु जी देवाधिदेव महादेव ब्रम्हाण्ड के राजा भगवान शिव एवं भगवान श्री कृष्ण जी की अराधना करते हैं और अगर आप विष्णु जी, मार्यादा पुरूषोत्तम भगवान श्री राम जी एवं भगवान कृष्ण जी के भक्त हैं तो कमेंट बाक्स में जय सूर्य देवा, जय विष्णु देवा, ओम नमः शिवाय, जय श्री कृष्ण, जय श्री राम, हरिओम तत सत, ओम नमो भगवते वासुदेवाय नमः लिखना न भूलिए।
संत तुलसीदास का जन्म 1532 ईस्वी में उत्तर प्रदेश के चित्रकूट जिले के राजापुर गाँव में हुआ था (कुछ विद्वान सोरों, शूकरक्षेत्र को उनका जन्म स्थान मानते हैं)। उनके बचपन का नाम रामबोला था। ऐसा कहा जाता है कि उनके जन्म के समय वे राम का नाम बोलते हुए पैदा हुए थे, इसलिए उनका नाम रामबोला पड़ा। बचपन में ही उनके माता-पिता का देहांत हो गया और उन्हें अनेक कष्टों का सामना करना पड़ा। उनका पालन-पोषण एक दासी ने किया और बाद में उन्हें नरहरिदास नामक गुरु ने शिक्षा दीक्षा दी। गुरु के सानिध्य में ही उन्होंने वेद, वेदांग, दर्शन, इतिहास और पुराणों का अध्ययन किया।
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संत तुलसीदास जी का प्रारंभिक जीवन कठिनाइयों से भरा था। उनके माता-पिता का निधन उनके बचपन में ही हो गया था, जिसके बाद उनकी परवरिश एक नौकरानी ने की। पांच वर्ष की आयु में उनकी देखभाल करने वाली नौकरानी की भी मृत्यु हो गई, जिसके बाद आचार्य नरहरिदास जी ने उन्हें गोद लिया और अयोध्या ले गए। वहां उन्होंने वेदों और अन्य धार्मिक ग्रंथों का अध्ययन किया।
उनका विवाह रत्नावली से हुआ था। ऐसा माना जाता है कि रत्नावली की एक फटकार ने उनके जीवन की दिशा ही बदल दी। रत्नावली ने उनसे कहा था कि जितना प्रेम वे उसके अस्थि-चर्म से बने शरीर से करते हैं, उतना ही यदि भगवान से करें तो उनका जीवन धन्य हो जाएगा। इस घटना ने संत तुलसीदास के मन पर गहरा प्रभाव डाला और वे वैराग्य धारण कर प्रभु भक्ति में लीन हो गए।
एक बार जब उनकी पत्नी मायके गई हुई थी, तो संत तुलसीदास जी उनसे मिलने के लिए रात में नदी पार कर गए। इस घटना से उनकी पत्नी ने उन्हें समझाया कि यदि वे भगवान राम के प्रति इतनी भक्ति दिखाते, तो उनका जीवन सार्थक हो जाता। इस घटना ने संत तुलसीदास जी के जीवन को बदल दिया और उन्होंने अपना जीवन भगवान राम की भक्ति में समर्पित कर दिया।
संत तुलसीदास जी ने भगवान शिव के आदेश पर रामचरितमानस की रचना की। यह ग्रंथ अवधी भाषा में लिखा गया है और इसमें भगवान राम के जीवन की कथा का वर्णन है। रामचरितमानस को लिखने में संत तुलसीदास जी को 2 वर्ष, 7 महीने और 26 दिन का समय लगा। इस ग्रंथ ने उन्हें अपार ख्याति दिलाई और आज भी यह ग्रंथ हर घर में पढ़ा जाता है।
वहीं, एक कथा और प्रचलित है। कहा जाता है कि संत तुलसीदास को हनुमान चालीसा लिखने की प्रेरणा मुगल सम्राट अकबर की कैद से मिली थी। मान्यता है कि एक बार मुगल सम्राट अकबर ने गोस्वामी संत तुलसीदास जी को शाही दरबार में बुलाया। तब संत तुलसीदास की मुलाकात अकबर से हुई और उसने अपनी तरीफ में उन्हें ग्रंथ लिखने को कहा। लेकिन संत तुलसीदास ने ग्रंथ लिखने से मना कर दिया। तभी अकबर ने उन्हें कैद कर लिया और कारागार में डाल दिया।
जब संत तुलसीदास ने सोचा की उन्हें इस संकट से केवल संकटमोचन ही बाहर निकाल सकते हैं। तब 40 दिन कैद में रहने के दौरान संत तुलसीदास ने हनुमान चालीसा की रचना की और उसका पाठ किया। 40 दिन के बाद बंदरों के एक झुंड ने अकबर के महल पर हमला कर दिया, जिसमें बड़ा नुकसान किया। तब मंत्रियों की सलाह मानकर बादशाह अकबर ने संत तुलसीदास को कारागार से मुक्त कर दिया।
ऐसी मान्याता है कि जब पहली बार संत तुलसीदास ने इसका वाचन किया तो हनुमान जी ने खुद इसे सुना। हनुमान चालीसा को सबसे पहले खुद भगवान हनुमान ने सुना। प्रचलित कथा के अनुसार, जब संत तुलसीदास ने रामचरितमानस बोलना समाप्त किया, तब तक सभी व्यक्ति वहां से जा चुके थे। लेकिन एक बूढ़ा आदमी वहीं बैठा रहा। वो आदमी और कोई नहीं बल्कि खुद भगवान हनुमान थे।
संत तुलसीदास जी ने रामचरितमानस के अलावा कई अन्य महत्वपूर्ण ग्रंथों की भी रचना की। इनमें विनय पत्रिका, गीतावली, कवितावली, हनुमान चालीसा, हनुमान बाहुक, कृष्ण गीतावली, और रामज्ञा प्रश्नावली प्रमुख हैं। इन सभी रचनाओं में भगवान राम और हनुमान जी की भक्ति का वर्णन है।
संत तुलसीदास जी की भक्ति और दर्शन का मुख्य आधार भगवान राम थे। उन्होंने अपने जीवन को भगवान राम की सेवा और भक्ति में समर्पित कर दिया था। उनकी रचनाओं में भगवान राम के प्रति उनकी अटूट भक्ति और प्रेम का वर्णन मिलता है। संत तुलसीदास जी का मानना था कि भगवान राम ही सर्वाेच्च हैं और उनकी भक्ति से ही जीवन का उद्धार हो सकता है।
संत तुलसीदास जयंती का महत्व इसलिए भी अधिक है क्योंकि यह दिन हमें संत तुलसीदास जी के जीवन और उनकी रचनाओं की याद दिलाता है। इस दिन लोग रामचरितमानस का पाठ करते हैं और भगवान राम, माता सीता और हनुमान जी की पूजा करते हैं। इस दिन संत तुलसीदास जी द्वारा लिखे गए दोहों और चौपाइयों का पाठ करना भी शुभ माना जाता है।
संत तुलसीदास जी की जयंती हमें यह सिखाती है कि भक्ति और समर्पण से जीवन में किसी भी कठिनाई का सामना किया जा सकता है। संत तुलसीदास जी की रचनाएँ हमें जीवन के सही मार्ग पर चलने की प्रेरणा देती हैं। हमें उनके जीवन से यह सीखना चाहिए कि सच्ची भक्ति और समर्पण से ही जीवन का उद्धार हो सकता है।
संत तुलसीदास जी की प्रमुख रचनाओं के बारे में जानिए,
संत तुलसीदास की सबसे प्रसिद्ध और कालजयी रचना रामचरितमानस है। यह अवधी भाषा में लिखी गई एक महाकाव्य है, जिसमें भगवान राम के संपूर्ण जीवन चरित्र का वर्णन किया गया है। रामचरितमानस भारतीय समाज में इतनी गहराई से समाई हुई है कि यह हर घर में पूजी जाती है और इसके दोहे, चौपाइयां लोगों की जुबान पर हैं। इस ग्रंथ ने भारतीय संस्कृति, नैतिकता और आदर्शों को एक नई दिशा दी।
रामचरितमानस के अतिरिक्त, संत तुलसीदास ने कई अन्य महत्वपूर्ण ग्रंथों की रचना की, जिनमें प्रमुख हैंः
विनय पत्रिका, यह ब्रज भाषा में रचित पदों का संग्रह है, जिसमें संत तुलसीदास ने भगवान राम और अन्य देवी-देवताओं से अपनी दीनता और प्रार्थनाएं व्यक्त की हैं।
कवितावली, इसमें राम कथा का वर्णन कवित्त और सवैया छंदों में किया गया है।
गीतावली, यह ब्रज भाषा में रचित पदों का संग्रह है, जिसमें भगवान राम की लीलाओं का वर्णन है।
दोहावली, इसमें नीतिपरक और भक्तिपरक दोहों का संग्रह है।
हनुमान चालीसा, यह हनुमान जी की स्तुति में लिखी गई एक अत्यंत लोकप्रिय चालीस छंदों वाली रचना है।
संत तुलसीदास का साहित्यिक योगदान और महत्व जानिए,
संत तुलसीदास ने अपनी रचनाओं के माध्यम से तत्कालीन समाज में व्याप्त कुरीतियों और आडंबरों पर प्रहार किया। उन्होंने भक्ति को सरल और सुलभ बनाया, जिससे जनसाधारण भी आसानी से ईश्वर से जुड़ सके। उनकी भाषा सरल, सुबोध और जनसाधारण के बीच लोकप्रिय थी, यही कारण है कि उनकी रचनाएँ आज भी उतनी ही प्रासंगिक हैं जितनी उनके समय में थीं।
रामचरितमानस के माध्यम से उन्होंने आदर्श राजा, आदर्श पुत्र, आदर्श भाई, आदर्श पत्नी और आदर्श समाज की कल्पना प्रस्तुत की। उन्होंने मर्यादा पुरुषोत्तम राम के चरित्र को ऐसे रूप में गढ़ा, जो हर युग के लिए प्रेरणास्रोत है। उनकी भक्ति दास्य भाव की भक्ति थी, जिसमें वे स्वयं को भगवान का दास मानते थे और उन्हीं की कृपा पर निर्भर रहते थे।
संत तुलसीदास भारतीय साहित्य और संस्कृति के एक ऐसे अनमोल रत्न हैं जिनकी आभा कभी फीकी नहीं पड़ सकती। उन्होंने अपनी अमर कृतियों के माध्यम से न केवल भगवान राम के चरित्र को जन-जन तक पहुंचाया, बल्कि नैतिक मूल्यों, सामाजिक समरसता और आध्यात्मिक शांति का संदेश भी दिया। उनकी रचनाएँ आज भी हमें जीवन के सही मार्ग पर चलने की प्रेरणा देती हैं और यही कारण है कि संत तुलसीदास को सदियों तक याद किया जाएगा। उनका साहित्य भारतीय जनमानस के हृदय में सदैव अमर रहेगा। हरि ओम,
अगर आप जगत को रोशन करने वाले भगवान भास्कर, भगवान विष्णु जी देवाधिदेव महादेव ब्रम्हाण्ड के राजा भगवान शिव एवं भगवान श्री कृष्ण जी की अराधना करते हैं और अगर आप विष्णु जी एवं भगवान कृष्ण जी, मार्यादा पुरूषोत्तम भगवान श्री राम जी के भक्त हैं तो कमेंट बाक्स में जय सूर्य देवा, जय विष्णु देवा, ओम नमः शिवाय, जय श्री कृष्ण, हरिओम तत सत, जय श्री राम, ओम नमो भगवते वासुदेवाय नमः लिखना न भूलिए।
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(साई फीचर्स)

श्वेता यादव

कर्नाटक की राजधानी बंग्लुरू में समाचार एजेंसी ऑफ इंडिया के ब्यूरो के रूप में कार्यरत श्वेता यादव ने नई दिल्ली के एक ख्यातिलब्ध मास कम्यूनिकेशन इंस्टीट्यूट से पोस्ट ग्रेजुएशन की उपाधि लेने के बाद वे पिछले लगभग 15 वर्षों से पत्रकारिता में सक्रिय हैं. समाचार एजेंसी ऑफ इंडिया देश की पहली डिजीटल न्यूज एजेंसी है. इसका शुभारंभ 18 दिसंबर 2008 को किया गया था. समाचार एजेंसी ऑफ इंडिया में देश विदेश, स्थानीय, व्यापार, स्वास्थ्य आदि की खबरों के साथ ही साथ धार्मिक, राशिफल, मौसम के अपडेट, पंचाग आदि का प्रसारण प्राथमिकता के आधार पर किया जाता है. इसके वीडियो सेक्शन में भी खबरों का प्रसारण किया जाता है. यह पहली ऐसी डिजीटल न्यूज एजेंसी है, जिसका सर्वाधिकार असुरक्षित है, अर्थात आप इसमें प्रसारित सामग्री का उपयोग कर सकते हैं. अगर आप समाचार एजेंसी ऑफ इंडिया को खबरें भेजना चाहते हैं तो व्हाट्सएप नंबर 9425011234 या ईमेल samacharagency@gmail.com पर खबरें भेज सकते हैं. खबरें अगर प्रसारण योग्य होंगी तो उन्हें स्थान अवश्य दिया जाएगा.