शालाओं से ज्यादा कोचिंग के विद्यार्थी हुए उत्तीर्ण!

 

 

कोचिंग के जरिये ही सफलता तो शालाएं क्यों ले रहीं मोटी फीस!

(अखिलेश दुबे)

सिवनी (साई)। बोर्ड परीक्षा चाहे वह माध्यमिक शिक्षा मण्डल की हो अथवा केंद्रीय शिक्षा बोर्ड (सीबीएसई) की, इनके परीक्षा परिणाम घोषित होते ही शालाओं में पढ़ने वाले विद्यार्थियों के बारे में शाला प्रबंधन तो मौन हो जाता है पर शहर में कुकुरमुत्ते की मानिंद चल रहीं कोचिंग संस्थाओं के द्वारा विद्यार्थियों के परीक्षा परिणाम का श्रेय लेना आरंभ कर दिया जाता है।

एक पालक ने अपनी व्यथा बताते हुए पहचान उजागर न करने की शर्त पर समाचार एजेंसी ऑफ इंडिया से चर्चा के दौरान कहा कि उनके बच्चे निजि शैक्षणिक संस्था में अध्ययनरत हैं। शाला की मोटी फीस के बाद गणेवश, कॉपी किताबों में उनकी जेब तराशी की जाती है।

उक्त संबंध में उन्होंने आगे कहा कि इसके बाद जब उनके बच्चों के द्वारा परीक्षाओं के परिणाम घोषित होने के बाद विद्यार्थियों की सफलता का श्रेय लिया जाता है तो उनके बच्चे कहते हैं कि फलां कोचिंग वाले के इतने बच्चों के अच्छे नंबर आये हैं जिसके चलते बच्चा निजि कोचिंग में जाने की जिद करने लगते हैं।

उन्होंने कहा कि पता नहीं क्यों जिले में शिक्षा विभाग और प्रशासनिक अधिकारियों के द्वारा शाला संचालकों को इसके लिये पाबंद क्यों नहीं किया जाता है कि उनकी शाला में पढ़ने वाले विद्यार्थी के अगर अच्छे नंबर आये हैं तो इसका श्रेय कोई निजि कोचिंग संस्थान वाला कैसे ले सकता है!

इसी तरह एक अन्य पालक का कहना था कि जिस तरह से शालाओं में अध्ययन करने वाले विद्यार्थियों के बारे में निजि कोचिंग संस्थानों के द्वारा सफलता प्राप्त करवाने का कथित रूप से दावा किया जाता है उसके बाद भी शाला संचालक मौन कैसे रह जाते हैं! उन्होंने कहा कि या तो शाला में उम्दा अध्यापन करवाने वाले शिक्षकों का टोटा होता है या फिर निजि कोचिंग संस्थानों के द्वारा ली जाने वाली मोटी फीस में उनकी भी हिस्सेदारी होती है।

पालकों के बीच चल रहीं चर्चाओं पर अगर यकीन किया जाये तो निजि स्कूलों के प्रबंधन का मौन तो समझ में आता है पर केंद्रीय विद्यालय (जिसकी समिति के अध्यक्ष स्वयं जिला कलेक्टर होते हैं) के अलावा अन्य सरकारी शालाओं के विद्यार्थियों की सफलता का श्रेय निजि कोचिंग संचालक खुलेआम लेते हैं और सरकारी शालाओं का प्रबंधन मौन ही रहता है।

चर्चाओं के अनुसार शालाओं में अध्यापन का स्तर सुधरवाने एवं निजि कोचिंग के मामले में काँग्रेस और भाजपा के विद्यार्थी संगठनों के मौन को देखकर यही लगता है मानो इनके द्वारा भी अपनी उपस्थिति दर्ज करवाने के लिये देश – प्रदेश की ईकाईयों से आये निर्देशों के तहत ही प्रर्दशन किया जाकर रस्म अदायगी मात्र की जाती है।

चल रहीं चर्चाओं के अनुसार इन दिनों शालाओं की महंगी फीस, गणवेश, पाठ्य पुस्तकों के भारी भरकम बोझ के बाद सात से पंद्रह हजार रूपये प्रति वर्ष उन्हें एक विषय की कोचिंग निजि तौर पर दिलवाने के लिये मजबूर होना पड़ता है। अगर बच्चे को तीन विषय की कोचिंग दिलवायी जाये तो यह आँकड़ा बीस से पैंतालीस हजार तक पहुँच जाता है। पालकों ने संवेदनशील जिला कलेक्टर गोपाल चंद्र डाड के ध्यानाकर्षण की जनापेक्षा व्यक्त की है।