सलाखों के पीछे पूर्व सदर

 

 

पूर्व राष्ट्रपति की गिरफ्तारी पाकिस्तान के राजनीतिक परिदृश्य में उथल – पुथल मचा सकती है। फर्जी खाते और बेनामी लेन – देन के मामले में इस्लामाबाद हाईकोर्ट में पूर्व राष्ट्रपति आसिफ अली जरदारी की जमानत – अर्जी खारिज होने के बाद उन्हें उनके निवास से गिरफ्तार कर लिया गया। पाकिस्तान पीपुल्स पार्टी के सह – अध्यक्ष बिलावल भुट्टो को अब फैसले लेने हैं। बिलावल ने पहले ही कार्यकर्ताओं से कह दिया है कि जरदारी की गिरफ्तारी के विरोध में हो रहे प्रदर्शनों में कोई कानून नहीं तोड़ना है। पीपीपी को अपने कार्यकर्ताओं को अनुशासित रखने के लिए हरसंभव कदम उठाने चाहिए, ताकि किसी तरह की हिंसा न होने पाए।

अपने नेता की रिहाई के लिए पार्टी को आगे उठाए जाने वाले कदमों पर निर्णय लेना है। पीपीपी के नेताओं ने संसद अध्यक्ष से मांग की है कि वह जरदारी को नेशनल असेंबली में हाजिर होने का आदेश दें, ताकि जरदारी वहां आकर अपनी गिरफ्तारी और उससे जुड़े मुद्दों पर प्रकाश डाल सकें। हालांकि यह मांग करते हुए पीपीपी के नेताओं को समझना चाहिए कि जरदारी के विरुद्ध एनएबी का मामला वर्ष 2015 में पहली बार तब प्रकाश में आया था, जब एफआईए ने जांच की थी। अतः सत्तारूढ़़ पाकिस्तान तहरीक – ए – इंसाफ पर राजनीति प्रेरित गिरफ्तारी का आरोप लगाने का कोई अर्थ नहीं है। यह गिरफ्तारी अदालती आदेश का परिणाम है, इसे कानूनी मामले के रूप में ही देखना चाहिए, राजनीतिक मामले के रूप में नहीं।

जहां तक पीपीपी के अगले कदम का प्रश्न है, तो उसे याद रखना चाहिए कि सड़क पर कोई भी विरोध प्रदर्शन पूर्ण रूप से शांतिपूर्ण और अहिंसक हो। पार्टी नेताओं को विरोध करने का अधिकार है, पर कानून को अपना काम करने देना उसकी शक्ति या प्रधानता को संरक्षित करने के लिए जरूरी है। किसी अन्याय के विरोध में प्रदर्शन करने और किसी गिरफ्तारी के विरोध में कानून को हाथ में लेने में बहुत अंतर है। बिलावल भुट्टो जरदारी जैसे नेताओं को सुनिश्चित करना चाहिए कि उनकी पार्टी देश की जनता या खुद अपने लिए कोई समस्या न पैदा कर ले। (द नेशन, पाकिस्तान से साभार)

(साई फीचर्स)