लोगो लगते ही 300 का गणवेश हो जाता है 1000 का!

 

 

अभी तक निरीक्षण नहीं हुआ, आज है प्रवेशोत्सव!

(अखिलेश दुबे)

सिवनी (साई)। जिले भर में निजि शालाओं में गणवेश का कारोबार लाखों रुपए का है। जिले के निजि स्कूल संचालकों और गणवेश विक्रेताओं के बीच गठजोड़ का खेल सालों से बेरोकटोक चल रहा है। बेचारे अभिभावक दोनों की मिली भगत का शिकार होकर लुट रहे हैं। वहीं जिम्मेदार सब जानते हुए आँखें मूंद कर बैठे हैं।

जिला शिक्षा अधिकारी कार्यालय के उच्च पदस्थ सूत्रों ने समाचार एजेंसी ऑफ इंडिया को बताया कि सबसे चौंकाने वाली बात यह है की स्कूल का ठप्पा लगते ही 300 की ड्रेस तीन गुना से अधिक दाम की हो जाती है। दरअसल, यह कीमत सिर्फ स्कूल के ठप्पे (लोगो) की है।

सूत्रों ने आगे बताया कि छोटी क्लास के बच्चों की यूनीफॉर्म दो मीटर कपड़े में बन जाती है। जबकि क्लास बढ़ने के साथ ही दाम भी स्कूल संचालक बढ़ा देते हैं। कई अभिभावकों ने इस बारे मे शिकायतें भी की, लेकिन, यूनीफॉर्म विक्रेताओं और स्कूल संचालकों का गठजोड़ प्रभावशाली होने के कारण पालकों की फरियाद पर अफसर व नेता ध्यान ही नहीं दे रहे हैं।

सूत्रों ने बताया कि जिला मुख्यालय में ही महज एक दो दुकानें ही हैं जहाँ निजि शालाओं के गणवेश मिलते हैं। जिला मुख्यालय में गणवेश मनमाने दामों पर बिक रही है। अप्रैल माह में शालाओं के आरंभ होने के समय एवं जुलाई में दुबारा शालाओं के खुलने के दौरान इन गणवेश विक्रेताओं के प्रतिष्ठानों पर विद्यार्थी लाईन लगाकर गणवेश खरीदते देखे जा सकते हैं।

इसके साथ ही सूत्रों ने बताया कि जिला मुख्यालय सहित जिले भर में चल रहे निजि स्कूलों में हर किसी का गणवेश अलग – अलग है। इसके अलावा शालाओं को समूहों (हाऊस) में भी बाँटा गया है। सप्ताह में एक दिन तय है जिस दिन शाला के अलग – अलग हाऊस के विद्यार्थी निश्चित गणवेश पहनकर आते हैं।

सूत्रों का कहना है कि गणवेश के अलावा हाऊस की पृथक गणवेश के लिये पालकों को अतिरिक्त खर्च करना पड़ रहा है। पालकों के बीच चल रहीं चर्चाओं के अनुसार सरकारी शालाओं में शिक्षा की गुणवत्ता का स्तर गिर चुका है और निजि शालाओं की मनमानी फीस, निर्धारित बुक सेलर्स के पास से महंगी किताबें खरीदने के बाद गणवेश में उनकी जेब तराशी हो रही है।

शिक्षा विभाग के सूत्रों ने समाचार एजेंसी ऑफ इंडिया को बताया कि कि अधिकारियों का कहना है कि अब तक उनके पास इस तरह की कोई शिकायत नहीं आयी है कि किसी को दुकान विशेष से गणवेश खरीदने पर बाध्य किया जा रहा है। सूत्रों ने कहा कि जिला शिक्षा अधिकारी कार्यालय के अधिकारी इस बात के इंतजार में बैठे हैं कि कोई शिकायत करे तो शिक्षा विभाग जांच की औपचारिकताएं पूरी करे।

इधर, पालकों का कहना है कि उनके द्वारा अगर खुलकर सामने आकर शिकायत की जाती है तो उनके बच्चों के साथ शाला प्रबंधन के द्वारा बुरा बर्ताव भी किया जा सकता है। पालकों की मानें तो जब नियम बनाए गए हैं तो जिला शिक्षा अधिकारी कार्यालय के अधिकारियों को इस बात की जांच करने में क्या दिक्कत है कि शहर में कितने संस्थानों में गणवेश और कापी किताबें मिल रही हैं!