स्वास्थ्य विभाग पर मेहरबान अफसरान!

 

(शरद खरे)

जिले में स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण विभाग में कुछ भी ठीक तरीके से संपादित नहीं होने के बाद भी जिले के सांसद, विधायक, जिला प्रशासन के द्वारा भी लापरवाह अफसरों की मश्केें कसने के लिये किसी तरह के प्रयास नहीं किये जा रहे हैं। स्वास्थ्य विभाग के आला अधिकारियों के द्वारा सदा ही विभाग में कर्मचारियों की कमी का रोना रोया जाता है।

जिले में लगभग हर पद पर प्रभारी अधिकारी बनकर एक चिकित्सक बैठे हुए हैं। मुख्य चिकित्सा एवं स्वास्थ्य अधिकारी से लेकर सिविल सर्जन तक जिले में लगभग डेढ़ दर्जन चिकित्सक प्रशासकीय पदों पर बैठे हैं जिनके द्वारा मरीज़ों के उपचार में दिलचस्पी नहीं ली जाती है।

आश्चर्य की बात है कि जिले में एक प्रथम श्रेणी रेडियोलॉजिस्ट के रूप में सीएमएचओ डॉ.के.सी. मेश्राम पदस्थ हैं, पर उनके द्वारा भी एक्स-रे देखकर अपना ओपीनियन देने की जहमत नहीं उठायी जाती है। उनके अलावा सरकारी तौर पर एक भी रेडियोलॉजिस्ट जिले में पदस्थ नहीं है।

एक नहीं सौ तरह की बातें हैं जो लोगों के द्वारा कही जाती हैं, उसके बाद भी अधिकारियों के द्वारा व्यवस्थाओं को सुधारने की दिशा में किसी तरह की पहल नहीं किया जाना आश्चर्य जनक ही माना जायेगा। अब जिले में झोला छाप चिकित्सकों या नियम विरूद्ध तरीके से चिकित्सा करने वालों का मसला ही लिया जाये, तो इस मामले में हर छः महीने में सीएमएचओ कार्यालय से एक निर्धारित प्रोफॉर्मा वाली विज्ञप्ति जारी की जाती है।

इस विज्ञप्ति में यह कहा जाता है कि जिले में चिकित्सा करने वाले सभी चिकित्सक अपने-अपने वैध दस्तावेज समय सीमा (सात या पंद्रह दिन में) सीएमएचओ कार्यालय में जमा करवायें अन्यथा उनके खिलाफ कार्यवाही की जायेगी। इस तरह की सूचना दिये जाने के बाद भी अब तक कार्यवाही नहीं होने का क्या अर्थ लगाया जाये!

कहा जाता है कि जिलाधिकारी के द्वारा भी लगभग डेढ़ माह पहले चिकित्सकों को अपनी व्यवस्थाएं सुधारने के लिये एक पखवाड़े का समय दिया गया था। उन्होंने कहा था कि अगर चिकित्सकों ने अपना रवैया नहीं बदला तो वे खुद छापामार कार्यवाही करेंगे। इसके बाद जिलाधिकारी के द्वारा भी अब तक इस मामले में किसी तरह की कार्यवाही नहीं की गयी है।

जिले में नागपुर से कमोबेश हर रोज़ ही चिकित्सक आकर मरीज़ों की जेबें तराश रहे हैं। इसके अलावा स्थान-स्थान पर बोर्ड लगे दिख जाते हैं, दवाखाने खुले दिख जाते हैं। इन चिकित्सकों के बारे में सीएमएचओ कार्यालय में किसी तरह का रिकॉर्ड नहीं होना अपने आप में अज़ूबा ही माना जायेगा। देखा जाये तो यह क्लीनिकल एक्ट का उल्लंघन है। यह बात सभी को दिखायी देती है पर नहीं दिखती तो सीएमएचओ डॉ.के.सी. मेश्राम को!

जिला कलेक्टर प्रवीण सिंह का ध्यान स्वास्थ्य सुविधाओं को पटरी पर लाने की ओर दिख रहा है। उनसे अपेक्षा व्यक्त की जा सकती है कि वे कम से कम क्लीनिकल एस्टबलिशमेंट एक्ट को अण्डरलाईन कर उस पर समय सीमा में कार्यवाही के लिये मुख्य चिकित्सा एवं स्वास्थ्य अधिकारी को पाबंद करें ताकि मरीज़ों का कुछ भला हो सके।