नायक जैसी आभा देती है इन परीक्षाओं की रगड़

 

 

(चंद्रभूषण)

एक आम आदमी के जीवन में विचार की अमृतधारा कैसे उतरती है, यह जानने के लिए आरके नारायण का उपन्यास द वेंडर ऑफ स्वीट्स पढ़ा जाना चाहिए। उनके कथा साहित्य पर बने हिंदी टीवी सीरियल मालगुडी डेज में यह मिठाईवाला के रूप में आया है। मूल हिंदी में ऐसे एक-दो चरित्र प्रेमचंद के यहां भी हैं, लेकिन विचार के जीवन में उतरने से पैदा होने वाली उलझनें आरके नारायण के पात्रों में कहीं ज्यादा गहरी हैं, क्योंकि उनका दौर प्रेमचंद के तीस साल बाद का है। 1967 में आए इस उपन्यास का नायक जगन हलवाई अपने दिल की गहराइयों में गांधीवादी है और अपनी मिठाइयों पर दस फीसदी मुनाफा लेने के अलावा उसकी जिंदगी और सोच में कोई फांक नहीं है। खद्दर पहनना, सबका भला करना, बुराइयों का अहिंसक विरोध करना और खुद को अतिरिक्त महत्वाकांक्षाओं के फेरे में न फंसने देना।

जगन की अकेली महत्वाकांक्षा यह है कि प्राकृतिक चिकित्सा से जुड़े अपने प्रयोगों पर जो एक किताब उसने लिख रखी है वह छप जाए, लेकिन स्थानीय प्रकाशक इस मामले में भी अंत-अंत तक उसे गोली ही देता रह जाता है। एक छोटे से कस्बे का इतना छोटा जीवन भी दिनोंदिन दुख से भरता जाता है। जगन के ज्यादातर दुखों का कारण उसका अकेला अति महत्वाकांक्षी बेटा ही बनता है। आरके नारायण का उपन्यास यह दिखाता है कि एक श्रेष्ठ विचार से प्रतिबद्ध रहने के लिए व्यक्ति को जिन परीक्षाओं से गुजरना पड़ता है, वे अपनी रगड़ से उसमें नायकत्व की आभा पैदा कर देती हैं। भले ही सफलता और उपलब्धियों के नाम पर उसके आगे एक बड़ा सा शून्य ही क्यों न दर्ज हो। संयोगवश, ऐसे कुछेक हीरा चरित्रों का दुख-सुख जानने का मौका मुझे भी मिला है, हालांकि उनमें ज्यादातर पूर्णकालिक कार्यकर्ता ही रहे हैं।

सिर्फ एक ठेठ किसान का नाम इस सूची में डालने लायक मुझे लगता है। राजबलम यादव, जिनसे मेरी आखिरी मुलाकात 26 साल पहले हुई थी, जब उनकी उम्र कोई 60 साल थी। वे धुर वाम विचारों वाले व्यक्ति थे और होश संभालने के साथ ही कृषि क्रांति को अपना जीवन लक्ष्य मानते आए थे। लेकिन उन्हें कभी जोर से बोलते मैंने नहीं सुना। गांव में, सड़क पर और हवालात में न जाने कितनी बार भीषण पुलिस यातना का सामना उन्हें करना पड़ा लेकिन इस बारे में किसी से कोई चर्चा उन्होंने कभी की हो, ऐसी जानकारी मेरे दायरे में किसी भी व्यक्ति के पास नहीं थी। आरके नारायण के नायक जगन के उलट राजबलम जी के साथ अकेली अच्छी बात यह रही कि अपने बच्चों या परिवार की तरफ से कोई यातना उनके हिस्से नहीं आई। हां, उनका एक भतीजा डकैत था और उस जेल का हीरो भी, जहां उनसे मेरी मुलाकात हुई थी।

(साई फीचर्स)