संसद में दिखी इस सादगी और सभ्यता ने जीता देश का दिल

 

 

(प्रभुनाथ शुक्ल)

पश्चिम बंगाल की युवा सांसद नुसरत जहां, रुही जैन और मिमी चक्रवर्ती ने ससंद में अपने शपथ समारोह के दौरान सादगी एवं सदाचरण की जो मिसाल पेश की उसके सम्मान में पूरी संसद बिछ गयी। अपनी इसी अदा से दोनों महिला सांसदों ने पूरे देश और संसद को फिरकापरस्त ताकतों के खिलाफ जो संदेश दिया वह अपने आप में इतिहास बन गया। दोनों महिलाओं ने बंगाल सिनेमा में अपनी अदा का लोहा मनवाने के बाद देश की राजनीति में भी एक नयी सोच पैदा करने में कामयाब हो सकती हैं। पूरे शपथ समारोह के दौरान संसद और मीडिया की निगाहें दीदी के इन दो बेशकीमती हीरों पर टिकी रहीं। मीडिया के कैमरे सांसदों की हर स्थिति को कैद करने के लिए बेताब दिखे। शायद इसलिए नहीं कि दोनों युवा और सिलेब्रिटी हैं। मुस्लिम समुदाय से ताल्लुक रखने के बाद भी दूसरे धर्म से संबंधित निखिल जैन से शादी की। बल्कि इसलिए कि उन्होंने शपथ के बाद और पूर्व अपने आचरण का जो प्रदर्शन किया वह सबसे अहम बिंदु था।

पश्चिम बंगाल की पृष्ठभूमि से चुनकर आई दोनों सांसदों ने संसद की गरिमा के साथ राष्ट्र के गौरव को बढ़ाने का भी काम किया। यह तथाकथित राष्ट्रवादी भक्तों पर तीखा हमला है। हिंदू-मुस्लिम की बात करने और देश को बांटने की साजिश रचने वालों को भी नुसरत ने जमीन दिखाई है। हमें कम से कम ऐसी महिलाओं पर गर्व करना चाहिए। लेकिन जैन समुदाय में शादी रचाने की वजह से धर्म की माला जपने वाले लोग सोशलमीडिया पर हमलावर हैं। नुसरत को अपमानित किया जा रहा है। हालांकि हम उस बहस में नहीं जाना चाहते कि किसने किस समुदाय में और किस लिए शादी की। यह उनके जीवन का निजी मामला है। देश का संविधान अपने मूल अधिकारों के साथ जीने की सभी को पूरी आजादी देता है।

जब देश की संसद धार्मिक अखाड़ा बना गयी हो। वोट बैंक के नाम पर जनता के जज्जबातों से खेला जा रहा हो। हिंदुत्व और इस्लामीकरण को लेकर होड़ मची हो। संसद में निर्वाचित सांसद जय श्रीराम, अल्लाह-ए-अकबर, जय बांग्ला, जय ममता, जय मां काली, राधे-राधे मंत्र जप करते रहे हों। इस्लाम की हिमायत करने वाले एक माननीय ने तो यहां तक कह दिया कि इस्लाम हमें वंदेमातरम बोलने की इजाजत नहीं देता हैं। उनकी यह बात संसदीय कार्रवाई से हटानी पड़ी। संसद में जब ओवैसी शपथ लेने जाते हैं तो उस दौरान जय श्रीराम का नारा गूंजता है। जिसकी प्रतिक्रिया में आवैसी अल्लाह-ओ-अकबर की आवाज बुलंद करते हैं। यह सब क्या हो रहा है।

आवैसी खुद संसद में बयान देते हैं कि संसद भी सांप्रदायिकता में बंट गयी है। क्योंकि भाजपा को 60 फीसदी हिंदुओं ने वोट किया है। देश और संसद को सांप्रदायिकता में बांटने की कोशिश हमें कहां ले जाएगी? देश की जनता ने हमें भारत को मजबूत और शक्तिशाली बनाने के लिए भेजा है। भारत का सम्माननीय जनतंत्र संसद में हमें विकास की नीतियां बनाने और राष्ट की प्रगति के लिए चुनकर भेजा है। जनता अपना मत देते वक्त आपसे यह नहीं कहा था कि आप संसद में जा कर जय श्रीराम, अल्लाह-ओ-अखबर का जयघोष करेंगें। आपने भी देश बदलने की शर्त पर वोट मांगे थे। फिर क्या इसी तरह देश बदला जाएगा।

हिंदुस्तान की जनता ने 540 से अधिक सांसदों को इसलिए चुना है कि आप हमारे लिए बेहतर शिक्षा, स्वास्थ्य, रोजगार साफ पानी के साथ रोटी, कपड़ा और मकान की मूलभूत जरूरतों के लिए योजनाएं बनाएं। इसलिए नहीं भेजा कि बिहार में चमकी बुखार से मासूम दमतोड़ रहे हों और आप संसद में जय श्रीराम, अल्लाह-ओ-अकबर का जयघोष कर देश की तरक्की की नई तरकीब खोज रहे हों। सीमा पर शहीद होता जवान और खेतों में पसीना बहाता किसान, हमने माननीयों को संसद को धार्मिक अखांड़े में बांटने के लिए नहीं भेजा है। अगर आपको देश और उसकी गरिमा का इतना ही खयाल था तो शपथ के बाद वंदेमातरम् या जय हिंद, जय भारत बोल सकते थे। उसे भी बोलने में अपमानित महसूस कर रहे थे तो चुप रहते। जय श्रीराम, जय भीम, अल्लाह-ओ-अकबर बोल आप क्या साबित करना चाहते हैं?

वह तो पहले से साबित है कि भारत की विभिन्नता में ही एकता का मंत्र है। लेकिन आप माननीयों ने संसद में जो मिसाल पेश की उससे पूरा देश शर्मसार है। हम किस न्यू इंडिया की बात कर रहे हैं, यह बड़ा सवाल है। हमारी सोच कितनी गिर चुकी है इस का सबसे घटिया और घृणित उदाहरण प्रतिपक्ष में कांग्रेस नेता अधीर रंजन का है, जो गांधी परिवार की भक्ति में देश के प्रधानमंत्री को गंदी नाली का कीड़ा कहने तक से परहेज नहीं करते। बाद में सारा दोष हिंदी पर मढ़ते हैं। आधुनिक भारत और उसके विकास की बात करने के बजाय अभी हम 44 साल पूर्व आपातकाल की कलंक कथा में उलझे हैं। जिस कथा को भारत की आधी आबादी जानती ही नहीं। फिर उस इतिहास को दोहराने से क्या फायदा। उपलब्धियों को गिनाने की होड़ की बजाय अभावों पर गौर करने की अधिक जरुरत है।

दुनिया तो काफी पहले से बदलने का मूड बना चुकी थी और बदल चुकी है। जब दुनिया के 22 देशों में तलाक पर प्रतिबंध लगा दिया गया है तो फिर हम भारत में उसे सहजता से स्वीकार क्यों नहीं करते हैं। दुनिया के कई विकसित मुल्कों में सार्वजनिक स्थलों पर धार्मिक कार्यक्रम पाबंदी है। फिर सड़क पर, एयरपोर्ट, रेलवे स्टेश, बस स्टॉप पर नमाज और हनुमान चालीसा पढ़ने पर क्यों आमादा हैं? क्या हम किसी मुस्लिम युवक को पीटकर हिंदुत्व की रक्षा कर सकते हैं? क्या झारखंड में तवरेज अंसारी से जय श्रीराम और जय हनुमान बुलवार हिंदुत्व की विशाल सहृदयता को कलंकित नहीं करना चाहते हैं। एक दूसरे धर्म के अनुयायियों को अल्लाह-ओ-अकबर, बुलवाकर क्या साबित करना चाहते हैं। क्या इससे देश का विकास होगा? हिंदुस्तान तरक्की की राह पर जाएगा? बेरोजगारी दूर हो जाएगी? महिलाओं और बेटियों से बलात्कार थम जाएगा? आतंकवाद, नक्सलवाद, प्रांतवाद, जातिवाद, धर्मवाद, भाषावाद का झगड़ा खत्म हो जाएगा? भारत की अर्थव्यवस्था में सुधार आ जाएगा? इसका जबाब देना होगा। क्योंकि अब देश बदल रहा है।

हम बंगाल की नुसरत जहां रुही जैन और मिमी चक्रवर्ती को सलाम करते हैं। यह दोनों वहीं युवा सख्शियतें हैं, जो निर्वाचन के बाद अपना परिचपत्र लेने संसद भवन पहुंची थीं तो कपड़े और सेल्फी को लेकर मीडिया में काफी आलोचना हुई थी। वर्चुवल प्लेटफार्म पर काफी अपमानित भी हुई थीं। लेकिन दोनों में इतना बदलाव, जिसकी कल्पना तक नहीं की जा सकती है। लोकतंत्र के मंदिर में घूसने के पहले दोनों महिला सांसदों ने झुककर संसद को नमन किया। नुसरत बंगाली परिधान थीं। मांग में सिंदूर, हाथ में चूड़ी और शादी की मेंहदी भी रचा रखी थी। एक खांटी भारतीय महिला की वेषभूषा में शपथ लेने पहुंची। ऐसी महिलाओं पर नाज करना चाहिए। दोनों सहेलियों ने बांग्ला भाषा में शपथ ली और बाद में लोकसभा अध्यक्ष ओम बिड़ला के पैर छुए। नुसरत जहां ने शपथ के बाद जय बांग्ला, जय भारत और वंदेमातरम का उद्घोष किया। मिमी चक्रवर्ती ने कहा समस्त गुरुजनों को प्रमाण। उनके लिए नसीहत है, जो इस्लाम का हवाला देकर कहते है कि हमारे यहां वंदेमारतम् का निषेध है। पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता दीदी अपने कारनामों से मीडिया और भाजपा के निशाने पर हैं। लेकिन उनके सांसदों ने जो मिसाल पेश की है, उसकी कोई मिसाल नहीं है। जिन्होंने अपनी जाति, धर्म, दल और राज्य से पहले देश को रखा। संसद के माननीय कम से कम नुसरत और मिमी चक्रवर्ती की सादगी और उनके राष्ट्रवाद से सीख जरूर लेंगे।

(साई फीचर्स)