इस तरह सहेजी जायें यादें

 

 

(शरद खरे)

सिवनी में एक सदी (100 सालों) तक सिर उठाकर चलने वाली नैरोगेज़ रेलगाड़ी अब इतिहास में शामिल हो चुकी है। लोगों की याददाश्त काफी कम होती है। पुरानी बातों को अगर बार-बार याद न किया जाये तो वे मानस पटल से ओझल हो जाती हैं। इसी तर्ज पर आने वाले कुछ सालों बाद अगर नैरोगेज़ की छुक-छुक रेलगाड़ी को आने वाली पीढ़ी के द्वारा बिसार दिया जाये तो किसी को आश्चर्य नहीं होना चाहिये।

बीते रविवार बालाघाट के सांसद बोध सिंह भगत के द्वारा केंद्रीय बजट के संबंध में मीडिया से चर्चा के उपरांत सर्किट हाऊस में नैरोगेज़ के रैक (इंजन और बोगियां) को खड़ा करने की बात पर अपनी सैद्धांतिक सहमति दी गयी है। डॉ.ढाल सिंह बिसेन की इस सकारात्मक सोच का स्वागत होना चाहिये।

देश की राजनैतिक राजधानी दिल्ली में देश भर के राज्यों के द्वारा अपने-अपने प्रदेश की खासियत को अपने अंदर समेटने वाली झाकियों को प्रदर्शित किया जाता है। वर्ष 2005 में मध्य प्रदेश की ओर से राजपथ पर मोगली की झाँकी को प्रदर्शित किया गया था। लोगों के द्वारा इसे बहुत ज्यादा सराहा गया था।

बताते हैं कि लगभग छः लाख रूपये में बनायी गयी इस झाँकी को बाद में सिवनी भेजा गया था। उस दौरान तत्कालीन जिलाधिकारी डॉ.जी.के. सारस्वत के द्वारा लाख विरोध के बाद भी इसे बस स्टैण्ड के पास अभ्यास शाला के हॉकी मैदान के सामने सड़क पर स्थापित करवा दिया गया था। उस समय लोग इस झाँकी को सर्किट हाउस के अंदर या सड़क पर स्थापित करने की माँग कर रहे थे। अगर यह झाँकी उस समय यहाँ लगा दी गयी होती तो लोक निर्माण विभाग के द्वारा इसका रखरखाव किया जाता और आज भी यह लोगों के लिये आकर्षण का केंद्र होती।

बहरहाल, नैरोगेज़ की बिदाई के समय नैरोगेज़ के अंतिम सफर को यादगार बनाने लोगों के द्वारा इसमें यात्रा की गयी थी। आखिरी लगभग एक माह तक यह रेलगाड़ी नो रूम (रेल्वे की भाषा में जगह उपलब्ध नहीं) चलती रही। इसके बाद मेगा ब्लॉक लगा और पटरियां उखाड़ दी गयीं।

सिवनी में अब नैरोगेज़ की छुक-छुक रेल इतिहास में शामिल हो चुकी है। आने वाले समय में ब्रॉडगेज़ पर रेल दौड़ती नज़र आयेगी। नागपुर के रेल्वे स्टेशन पर नैरोगेज़ के इंजन को सजाकर लगाया गया है। सिवनी में भी इस तरह के प्रयास किये जा सकते हैं। इसका कारण यह है कि नैरोगेज़ के रेल के इंजन और बोगियां अब बेकार हो चुकी हैं।

इनमें से एक इंजन को अगर रेल्वे स्टेशन पर नागपुर की तरह लगा दिया जाये और एक पूरे रैक को सर्किट हाऊस में लगा दिया जाये तो यह अपने आप में अनोखी बात होगी। वैसे लॉन्स और रेस्टॉरेंट के संचालक अगर नैरोगेज़ की बोगियों को खरीदकर इसको विशेष डायनिंग हाल बनायें तो यह भी बेहतर हो सकता है। इस तरह का प्रयोग भोपाल में होटल लेक व्यू अशोका में किया गया था और वह सफल भी हुआ।

बालाघाट सांसद डॉ.ढाल सिंह बिसेन सहित संवेदनशील जिलाधिकारी प्रवीण सिंह से अपेक्षा है कि वे भी इस दिशा में अपने प्रयास जारी रखें ताकि नैरोगेज़ रेल को यादों में लंबे समय तक बनाया रखा जा सके।