मोदी और महुआ में कौन सही?

 

 

(हरिशंकर व्यास)

कहां हिंदू महानायक नरेंद्र मोदी और कहां पहली बार चुनी गई एक सांसद महुआ मोईत्रा! कहां हिंदी में भाषण, जुमलों, लफ्फाजी की गंगोत्री से हर, हर मोदी का भक्तों में सैलाब बनवा देने वाले नरेंद्र मोदी और कहां विदेशी कंपनी जेपी मार्गन की अंग्रेजीदां, बैंकर महुआ मोइत्रा! फिर भी 17वीं लोकसभा के चरित्र और देश की नियति को समझने के लिए मंगलवार को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और तृणमूल कांग्रेस की सांसद महुआ मोईत्रा के भाषण पर गौर होना चाहिए। भाषण के अलावा भी दोनों को मनसा, वाचा, कर्मणा समझते हुए फर्क को बूझें तब बहुत कुछ समझ आएगा।

नरेंद्र मोदी ने कोई घंटा भाषण दिया। मोटे तौर पर तीन हिस्से। बिना नाम लिए कांग्रेस की धुनाई, नेहरू-गांधी वंश पर कटाक्ष और फिर नए भारत, सबका साथ-सबका विकास वाली बातें। तीसरा बिंदु अपनी एप्रोच को नए अंदाज में बतलाना। इसमें मोदी का यह वाक्य अपने को अच्छा लगा कि मैं अपनी लकीर लंबी करने में विश्वास करता हूं। हम दूसरे की लकीर छोटी करने में विश्वास नहीं करते!

वाह! क्या बात। पर क्या मोदी को पता है कि लंबी लकीर के लिए देश, दुनिया या लोकतंत्र सबमें वाह बनाने की पहली जरूरत होती है दिल का बड़ा होना।

उस नाते वाक्य कांग्रेस पर कटाक्ष करते हुए चलताऊ अंदाज में बना लगता है। ध्यान रहे उनसे पहले कांग्रेस नेता अधीर रंजन के दो वाक्य हेडिंग बने थे। एक, कांग्रेस को सीटें भले कम मिली हों लेकिन उसकी ऊंचाई कोई कम नहीं कर सकता है। दूसरा था कि सोनिया-राहुल को आप लोग चोर बताते रहे तो क्यों वे जेल में नहीं हैं? 2जी आदि हल्ले में कौन जेल में है? इन दो वाक्यों के संदर्भ में प्रधानमंत्री ने कहा आपकी ऊंचाई आपको मुबारक। आप इतने ऊंचे चले गए हैं कि आप जड़ों से उखड़ गए हैं। आपका और भी ऊंचा होना मेरे लिए संतोष और आनंद की बात है। हम अपनी लकीर लंबी करने में विश्वास करते हैं। हमें कोसा जा रहा है कि फलाने को जेल में क्यों नहीं डाला, हम कानून से चलने वाले लोग हैं और किसी को जमानत मिली है तो वह इसका आनंद ले।

क्या यह संदर्भ उन्हें बड़े दिल का, लंबी लकीर का बनाता है? नरेंद्र मोदी की लंबी लकीर की धुन में क्या हो सकता है? जाहिर है नेहरू, इंदिरा गांधी, शास्त्री, राजीव गांधी, पीवी नरसिंह राव, वाजपेयी, मनमोहन सिंह से लंबी लकीर बना कर नरेंद्र मोदी अपने को इतिहासजन्य बनाने के ख्याल में हैं। हां, ये सात प्रधानमंत्री आजाद भारत के इतिहास में व्यक्तित्व-कृतित्व से बहुत लंबी लाइन लिए हुए हैं। इनमें से किसी को कभी कहने की जरूरत नहीं हुई कि हम अपनी लकीर लंबी बनाने पर विश्वास करते हैं।

मनसा, वाचा, कर्मणा इनका भारत राष्ट्र-राज्य के निर्माण में योगदान स्थायी तौर पर लंबी लकीर लिए हुए था है और रहेगा। नरेंद्र मोदी ने भले छप्पर फाड़ जनादेश प्राप्त किया हो लेकिन बहुमत से या दो बार प्रधानमंत्री बनने और भाषणों से लंबी लकीर नहीं बना करती। जिन गांधी को 150वीं जयंती पर मोदी-शाह पूज रहे हैं या आगे पूजेंगे वे बिना सत्ता, बिना चुनाव भारत के आराध्य हैं तो इससे मोदी के लिए क्या मतलब निकलता है? तभी समझ नहीं आया कि नरेंद्र मोदी लंबी लाइन बनाने के पीछे क्या ख्याल लिए हुए हैं? पिछले पांच सालों में ऐसा कौन सा सच्चा काम किया, जिससे इतिहासजन्य इंच भर उनकी लाइन बनी हो? भक्त बनाना, चुनाव जीतना, झूठी बिजलियां कड़का देना, सत्ता का बाहुबल बनाना यदि लकीर बनाना है तो दिल्ली की सत्ता ने सैकड़ों-हजारों बादशाह-महाराजा-प्रधानमंत्री देखें हैं और वे इतिहास की लकीर में कफन जितना स्पेस भी लिए हुए नहीं हैं!

बात फेल रही है। इसलिए इतना भर याद रहे कि मोदी ने 17वीं लोकसभा का मंतव्य, अपना और अपनी सरकार का मकसद लकीर लंबी बनाने के जुमले में व्यक्त किया है।

अब जरा तृणमूल कांग्रेस की सांसद महुआ मोईत्रा के भाषण पर विचार हो। इस भाषण को 17वीं लोकसभा की तासीर में विपक्ष का प्रतिनिधि भाषण माना जाए। और उन्होंने नरेंद्र मोदी और उनके राज की लकीर से संकेत बतलाते हुए जो कहा, जिस अंदाज में कहा वह अभूतपूर्व है। सहज अंग्रेजी और विचारवान, वैश्विक समझ के साथ। उन्हें सुन कर समझ नहीं आया कि ममता बनर्जी जैसी उज्जड़ नेत्री के यहां महुआ मोईत्रा कैसे फिट हुईं! महुआ मोईत्रा ने सात खतरनाक संकेत बताते हुए कहा कि इनसे लगता है देश टुकड़े होने की और बढ़ रहा है।

पहला संकेत- राष्ट्रवाद के संकीर्ण उबाल से राष्ट्रीय तानाबाना बिगड़ रहा है। यह राष्ट्रवाद नक़ली है। हालिया चुनाव रोज़गार, किसानों, लोगों के मुद्दों पर नहीं, बल्कि व्हाट्सएप और फेक न्यूज़ पर लड़ा गया। यह राष्ट्रवाद विभाजक है। नागरिकों को घर से बाहर निकाल उन्हें गैर-कानूनी घुसपैठिए करार दिया जा रहा है। जो पचास साल से रह रहे हैं उनसे भारतीय होने के कागजी दस्तावेज मांगे जा रहे हैं। जिस देश में मंत्री अपनी पढ़ाई की डिग्री के सबूत नहीं दे पाते वहां गरीब लोगों से कह रहे हैं कि प्रूफ दो कि तुम नागरिक हो।

दूसरा संकेतः राजकाज के हर स्तर पर मानवाधिकारों की उपेक्षा, उनके प्रति नफरत है। 2014 से 2019 के बीच में घृणा अपराधों में दस गुना बढ़ोतरी हुई है।

तीसरा संकेतः अकल्पनीय पैमाने पर मीडिया को गुलाम बना दिया है। देश के पांच सर्वाधिक बड़े मीडिया संगठन प्रत्य़क्ष- अप्रत्यक्ष तौर पर एक व्यक्ति के कंट्रोल में हैं। टीवी चौनल अधिकांश वक्त सिर्फ और सिर्फ सत्तारूढ़ पार्टी का प्रोपेगेंडा करते हैं। सरकार ने 120 लोगों को मीडिया में सरकार विरोधी बातों की मॉनिटरिंग में लगाया हुआ है।

चौथा संकेतःराष्ट्रीय सुरक्षा व कथित दुश्मन के हवाले भय, खौफ का माहौल बना दिया है। मैं जब छोटी थी तो मां अपनी बातें मनवाने के लिए काले भूत का डर दिखाती थी। ऐसे ही देश में पिछले पांच साल से राष्ट्रीय सुरक्षा के नाम पर काले भूत से रोज़ डराया जा रहा है। रोज़ नए दुश्मन का डर दिखा कर छद्म राष्ट्रीयता का आवेग तैयार किया जा रहा है। सेना की उपलब्धि को एक व्यक्ति के नाम पर चस्पां कर दिया जाता है।

पांचवां संकेतः देश में सरकार और धर्म परस्पर गुथं गए हैं। एनआरसी और नागरिकता संशोधन विधेयक में सिर्फ एक धर्म-समुदाय पर निशाना है। सांसदों को इन दिनों 2.77 एकड़ (राम जन्मभूमि) जमीन में ज्यादा दिलचस्पी है बनिस्पत भारत की 81.2 करोड़ एकड़ जमीन के।

छठा संकेतः और यह सर्वाधिक खतरनाक है। बुद्विजीवियों व कला-साहित्य की उपेक्षा और नफरत। उदारवादी- विचारवादी संस्थाओं की फंडिग काट दी गई है… जो हो रहा है वह भारत को पीछे- अंधेरे वक्त में लौटाने के लिए है।

सातवां संकेतः चुनावी व्यवस्था की आजादी में गिरावट है। इस चुनाव में कोई 60 हजार करोड़ रुपए खर्च हुए इनमें से 27 हजार करोड़ रुपए अकेले एक पार्टी (भाजपा) ने खर्च किए।

महुआ मोईत्रा ने इन सात बिंदुओं को शुरुआती फासीवादी संकेत के जुमले में बांध कहा कि- आप कह सकते हैं कि अच्छे दिन आ गए है और आप जो भारत एंपायर बनाना चाहते हैं उसमें कभी सूर्यास्त नहीं होगा लेकिन तब आप संकेतों को मिस कर रहे हैं! जरा आंखें खोल कर देखें तो जो होगा उसके दिखलाई दे रहे हैं संकेत।

अब कौन सही? नरेंद्र मोदी की लंबी लकीर बनाने की बात या महुआ मोइत्रा द्वारा मोदी और उनकी सरकार की लकीर के बतलाए डॉट सही? फैसला इतिहास करेगा। और दोनों भाषणों का बतौर साक्ष्य इस्तेमाल भी होगा।

(साई फीचर्स)

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