किनके भरोसे हैं शहर के चौक-चौराहे!

 

 

सिवनी शहर में यातायात व्यवस्था को कतई तवज्जो नहीं दी जा रही है। चौक चौराहों पर पहले यातायात के सिपाही तैनात दिखायी दिया करते थे फिर उसके बाद होमगार्ड के अप्रशिक्षित सैनिकों के हवाले इन चौक चौरहों को कर दिया गया। अब तो वर्तमान में यह स्थिति है कि कई चौक चौराहों पर होमगार्ड के सिपाही भी यातायात सम्हालने के लिये तैनात नहीं दिखायी देते हैं।

इस तरह की अव्यवस्था के साथ ही साथ ऐसे अभिभावकों पालकों से भी मुझे शिकायत है जो अयोग्य बच्चों के हाथों में वाहन थमा देते हैं और फिर वे बच्चे यातायात को जमकर बाधित करते हुए लोगों की जान के लिये यमदूत के समान नज़र आते हैं। इन बच्चों के द्वारा निहायत ही बेतरतीब तरीके से वाहन का चालन किया जाता है जिसके कारण कभी भी कोई गंभीर दुर्घटना कारित हो सकती है।

यातायात विभाग की ही इसे लापरवाही माना जा सकता है जिसके कारण शहर में छोटी-छोटी उम्र के बच्चे, सिवनी की सड़कों पर फर्राटे के साथ वाहन दौड़ाते नजर आते हैं। यदा-कदा यातायात पुलिस के द्वारा चालानी कार्यवाही अवश्य की जाती है लेकिन उसे नाकाफी ही कहा जा सकता है।

इस संबंध में लगातार अभियान चलाये जाने की आवश्यकता है लेकिन यह कार्य तभी हो सकता है जबकि यातायात कर्मी सड़कों पर नज़र आयें। ज्यादातर मौकों पर होमगार्ड के अप्रशिक्षित सैनिकों के हाथ में चौक – चौराहों की कमान थमाकर यातायात पुलिस के द्वारा अपने कर्त्तव्यों की पूर्ति की जाती दिखती है। इसे एक औपचारिकता मात्र माना जा सकता है क्योंकि सभी ये जानते हैं कि यातायात की कमान सम्हाले हुए सैनिकों के पास चालानी कार्यवाही का कोई अधिकार नहीं रहता है इसलिये वे इनके द्वारा दिये जा रहे निर्देशों का माखौल उड़ाते हुए वाहन चालन करते दिख जाते हैं।

यह बात समझ से परे है कि सिवनी में यातायात विभाग और परिवहन विभाग के द्वारा अपने आप को किन गैर जरूरी कार्यों में उलझा कर रखा गया है जिसके कारण सिवनी में यातायात पूरी तरह से बेलगाम हो चुका है। शहर में कण्डम होने की स्थिति में पहुँच चुके वाहन धड़ल्ले से दौड़ाये जा रहे हैं। वाहनों से निकलने वाला धुंआ साफ इशारा करता है कि उन वाहनों में मिट्टी के तेल का जमकर और बेखैफ होकर इस्तेमाल किया जा रहा है लेकिन उस ओर ध्यान देने वाला भी कोई नहीं है।

एक प्रकार से मिट्टी तेल से चलने वाले वाहन, कुछ-कुछ फॉगिंग मशीन की तरह ही कार्य करते हुए समझे जा सकते हैं। इनमें ज्यादातर दो पहिया वाहन से लेकर ट्रक तक शामिल हैं। शहर के अंदर के हिस्सों में मिट्टी के तेल से चलने वाले दो पहिया वाहनों की भरमार है लेकिन यातायात कर्मियों की सड़कों पर अनुपस्थिति के कारण इन पर कोई कार्यवाही नहीं हो पा रही है।

वाहन चालकों को मिट्टी का तेल कहाँ से सहज रूप में उपलब्ध हो जाता है यह शोध का विषय ही माना जा सकता है क्योंकि जरूरतमंद लोग इसके लिये यहाँ से वहाँ भटकते हुए देखे जा सकते हैं। संबंधित विभागों को इस ओर ध्यान देने की आवश्यकता है ताकि शहर में बेलगाम हो चुके यातायात को पटरी पर लाने में असफल साबित हो चुके हैं लेकिन कम से कम मिट्टी के तेल की फिजूल खर्ची जो पर्यावरण को भी प्रभावित करती है, पर लगाम लगायी जा सके।

इरफान नवाब

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