इतनी नफरत क्यों है महिलाओं से आपको?

 

 

(विनय जैसवाल)

दो साल पहले की बात है। रात करीब 9 बजे मैं कुछ दोस्तों के साथ बैठा था। तभी मोबाइल बजा। दूसरी तरफ से एक महिला की कठोर आवाज आई, आप महिलाओं के खिलाफ ही क्यों लिखते हैं? इतनी नफरत क्यों है महिलाओं से आपको? मैं अचानक हुए इस फोनो हमले से घबरा गया। उठकर बाहर आया, फिर उन मोहतरमा से पूछा, आप कौन हैं और क्यों इतने गुस्से में हैं? यह जानना उतना जरूरी नहीं है कि मैं कौन हूं, आप तो बस मेरे सवालों के जवाब दे दीजिए। मैं झुंझला उठा और बोला, सॉरी मैडम, बिना जाने कि आप कौन हैं, मैं आपके सवालों का जवाब नहीं दे सकता। अब उनका लहजा थोड़ा नरम हुआ और उन्होंने अपना परिचय दिया।

हालांकि फिर भी अपने सवाल दोहराते हुए मुझे ऐंटी-वुमन कह दिया। चूंकि उन्होंने अपना परिचय दे दिया था और एक कॉमन लिंक निकल आया था उनके- हमारे बीच, इसलिए उनके इस टैग को ज्यादा अहमियत न देते हुए मैंने इतना ही कहा, यह आपका मेरे लिखे को देखने का तरीका है, जिसके लिए आप आजाद हैं, लेकिन मैं इससे सहमत नहीं हूं। फोन पर इस बातचीत के दौरान अंदर मेरे मन में उथल-पुथल मची हुई थी। कहीं किसी का लेख पढ़कर कोई इतना नाराज हो जाए कि फोन करके उसे बुरा-भला कहने लग जाए, ऐसा भी कहीं होता है! मगर हद अभी नहीं हुई थी। अचानक उन्होंने कहा कि वह मुझसे मिलना चाहती हैं। यह दूसरा गोला था तोप का। मैंने कहा, किसी ऐंटी वुमन व्यक्ति से ऐसे मिलना आपके लिए भी ठीक नहीं। बेहतर होगा आप फोन पर ही बताएं। पता चला उन्होंने पति के खिलाफ घरेलू हिंसा का केस कर रखा है। पति के कागजात में ही विवाह संबंधी कानूनों के पुरुष विरोधी पहलुओं पर लिखा मेरा कोई लेख उन्होंने देख लिया था।

उन्हें लगता था कि ऐसे ही लेखों से उसके मन से पुलिस कोर्ट और कानून का डर निकल गया है। खैर उस समय मैंने टाल-मटोल कर फोन रख दिया। बाद में कॉमन फ्रेंड से उनकी बताई कहानी की काफी हद तक पुष्टि भी हो गई। उनका कहना था एक बार मिल लेने में बुराई नहीं है। मित्र के साथ ही कुछ दिनों बाद उन मोहतरमा से कनॉट प्लेस में मुलाकात हुई। पता चला घरेलू हिंसा के केस का मकसद पति की मनमानी पर अंकुश लगाना भर था। उन्हें लग रहा था कि पति महोदय डरकर उनसे समझौता कर लेंगे। मगर मेरे जैसे लोगों के लेख इसमें रुकावट बन गए। उनकी समझ पर बहस करके फायदा नहीं था, सो मैंने सीधे पूछा, साफ-साफ बताइए आप चाहती क्या हैं? अपने दर्द को छुपाने की असफल कोशिश करते हुए वह बोलीं, मैं साथ रहना चाहती हूं, मुझे अपनी बेटी की भी चिंता होती है। मैंने कहा, आपकी समस्या मेरे लेख नहीं बल्कि आपका वकील है। मैं एक वकील का नंबर दे रहा हूं, इनसे बात कर लीजिए और हां डरा-धमकाकर पति को जीतने का इरादा छोड़ दीजिए।

पिछले महीने बड़े दिनों बाद उनका फोन आया तो वह जैसे खुशी से सराबोर थीं। बोलीं, वकील साहब के साथ किसी दिन घर आइए, मेरे पति और बेटी आपसे मिलना चाहते हैं। उनके घर से लौटा तो एक परिवार के सुकून में लौट आने के गहरे संतोष से भरा हुआ था, जिसका श्रेय मेरे उस वकील दोस्त को जाता है।

(साई फीचर्स)