महेंद्र सिंह धोनी इसलिए हैं बाकियों से बहुत अलग

 

 

(योगी अनुराग)

फेसबुक और ट्विटर जैसे प्लैटफॉर्म देश-विदेश के ताजा घटनाक्रम पर विचारों का अड्डा बन चुके हैं। सोशल मीडिया पर इस हफ्ते गरम रही वैचारिक बहस की झलक देखिए हैशटैग में. . .

धोनी मात्र एक बल्लेबाज नहीं, मात्र एक विकेटकीपर नहीं, मात्र एक कप्तान या पूर्व-कप्तान नहीं बल्कि तकरीबन 12 बरस की प्रतीक्षाओं के परिणाम हैं, जिनके अभाव-काल को भारतीय क्रिकेट ने जिया!

धोनी भारतीय क्रिकेट में विकेटकीपर-बल्लेबाज के सूखे के बीच इस तरह आए कि फिर टीम के साथ रच-बस गए। वह दुनिया के उन चंद खिलाड़ियों में से एक हैं, जिन्हें कभी अपनी परफॉर्मेंस को लेकर टीम से ड्रॉप नहीं होना पड़ा। यहां तक कि बाहर भी नहीं बैठना पड़ा।

गिलक्रिस्ट, बाउचर, संगकारा, मैकुलम और धोनी, ये पांच नाम पिछले दो दशक में विकेटकीपिंग के मायने बदलने वाले रहे हैं। इनके बिना क्रिकेट के उस रस की कल्पना नहीं की जा सकती, जिसे आपने, हमने और सबने प्राप्त किया है।

अमूमन जब किसी स्पिनर की गेंद विकेट कीपर के ग्लब्स में आती है तो कीपर उसकी गति और अपनी हथेली के क्लैश से क्रिएट होने वाले शॉक को कम करने के लिए, अपने हाथों को पीछे की ओर ले जाते हुए गेंद पकड़ता है। यह कोई रॉकेट सांइस नहीं है। सीधा-सादा फिजिक्स का लॉ ऑफ इनर्शिया यानी जड़त्व का नियम है! तमाम विकेटकीपर्स, यहां तक कि ऊपर दिए 5 में से 4 नाम भी, इसी सिद्धांत पर अभ्यास करते रहे हैं!

ऐसी विकेटकीपिंग में होता यह है कि पहले बॉल ग्लब्स में आती है, इसके बाद हाथ पीछे जाते हैं और स्टम्पिंग का चांस बनने पर हाथ फिर से आगे आते हैं और अपना काम पूरा करते हैं। इस पूरी प्रक्रिया में कम से कम 3 या 2 सेकंड तो जरूर लग जाते हैं।

धोनी की उपलब्धि यह है कि उन्होंने बैट्समेन को मिलने वाले इन 3 सेकंड्स को खत्म कर दिया। उनका अभ्यास है ग्लब्स को आगे लाते हुए बॉल को पकड़ना, बॉल की गति को अपनी हथेली की गति से क्लैश कराकर शांत करना और वहीं से स्टम्प कर देना।

हकीकत यह है कि आज विश्व की प्रमुख क्रिकेट अकादमियों में होने वाली विकेटकीपिंग की ट्रेनिंग इसी तकनीक पर दी जा रही है। यह यश है धोनी का, जो न गिलक्रिस्ट को मिला है और न ही बाउचर, संगकारा या मैकुलम को!

इतना कुछ होने के बाद भी आज धोनी आलोचना झेल रहे हैं। अपनी जिम्मेदारी को पूरी तरह निभाने के बाद भी। एक लोअर-मिडल बैट्समैन के औसत से काफी अच्छा औसत होने के बाद भी वह आलोचना झेल रहे हैं।

कीर्तिमानों की बात तो मैंने की ही नहीं, न पूरे लेख में और न ही अब करने जा रहा हूं। बस इस विश्वकप के एक मैच की बात करें तो धोनी ने 90 की स्ट्रइक रेट से खास 56 रन का योगदान दिया। एक छठे नंबर के बल्लेबाज से आप क्या आशाएं रखते हैं? विराट कोहली ने 72 रन बनाने के लिए 146 मिनट लिए। धोनी ने 56 रन बनाने के लिए 99 मिनट लिए।

फिर भी स्लो का टैग किसपर है? धोनी पर! धोनी उन तमाम पौधों के बीज हैं जो अपना सिर उठा चुके हैं। वह भविष्य में भारतीय विकेटकीपिंग लाइनअप को मजबूती देंगे!

(साई फीचर्स)