मनोरंजन के लिये बच्चे कहाँ जायें

 

इन दिनों मोबाईल का बुखार, बड़ों से लेकर छोटे-छोटे बच्चों पर हावी है और यह दिनोंदिन बढ़ता ही जा रहा है। इस स्तंभ के माध्यम से में इसी संबंध में अपनी बात रखना चाहता हूँ।

देखने वाली बात यह है कि सिवनी में वैसे भी छोटे बच्चों के लिये मनोरंजन के लिये कोई स्थान शेष नहीं रह गया है या जो हैं भी तो वे सिमटते ही चले जा रहे हैं। ऐसे में बच्चे अपने मनोरंजन के लिये किस विकल्प का सहारा लेंगे, इस पर विचार करना ही होगा। बच्चे अपने मनोरंजन के लिये विकल्प के तौर पर मोबाईल का इस्तेमाल करना आरंभ करते हैं जिससे उन्हें दूर करना फिर असंभव हो जाता है। मोबाईल पर गेम खेलने से स्वास्थ्य पर कोई अच्छा प्रभाव तो पड़ता नहीं है बल्कि यह विपरीत असर ही डालता है।

सिवनी जिला मुख्यालय में एक भी पार्क का न होना आश्चर्य जनक ही माना जायेगा। यहाँ पार्क का न होना संबंधितों की मानसिकता को भी बयां करने के लिये पर्याप्त माना जा सकता है। आखिर क्यों सिवनी में पार्क नहीं बनवाया जा सका है। कहने के लिये दलसागर के समीप कंपनी गार्डन है लेकिन इसका उपयोग आम जनता के द्वारा नहीं किया जा सकता है और न ही वहाँ पार्क जैसी अन्य कोई सुविधाएं ही हैं।

अतिक्रमण ने जिस तरह से शहर में अपने पैर पसारे हैं उसको देखते हुए अब किसी नये स्थान पर बड़ा पार्क बनवाये जाने की समस्त संभावनाएं क्षीण हो चुकी हैं। इन अतिक्रमणों के चलते जब सड़कें ही चौड़ी न हो पा रहीं हों तो पार्क बनवाये जाने की अपेक्षा जिला प्रशासन से करना व्यर्थ ही होगा।

ऐसे में एक ही बात रह जाती है कि कचहरी चौक के समीप स्थित तिकोना पार्क जैसे छोटे-छोटे पार्क शहर के विभिन्न स्थानों पर यदि बनवा दिये जाते हैं तो संभव है कि इससे उक्त स्थान किसी अतिक्रमण की जद में आने से भी बच जायेगा और ये छोटे-छोटे पार्क शहर की सुंदरता में चार चाँद लगाने का ही काम करेंगे। पूर्व में बस स्टैण्ड में भी एक छोटा सा पार्क जैसा स्थान था जिसका नाम शायद इंदिरा गाँधी के नाम पर रखा गया था। उक्त पार्क कब अतिक्रमण की भेंट चढ़ गया इसका पता ही शहर वासियों को नहीं चल सका।

सिवनी की बरघाट रोड पर पुराना नाका वाले क्षेत्र में भी एक पार्क वर्तमान में है। इस पार्क को ही उदाहरण बनाकर विभिन्न वार्डों के पार्षदों के द्वारा यदि अपने-अपने वार्ड में छोटे से पार्क के लिये स्थान को चिन्हित किया जाकर यदि उसे मूर्तरूप प्रदान कर दिया जाता है तो उनके वार्डों में भी सुंदरता बढ़ सकती है।

इसी तरह सिद्ध मठ मंदिर के समीप भी एक रकबा खाली पड़ा हुआ है जिसमें कुछ वर्षों पहले खेती की जाती थी लेकिन पिछले कुछ समय से उक्त स्थान रिक्त ही पड़ा हुआ है। यदि मठ मंदिर समिति या संबंधितों के द्वारा उस स्थान पर एक भव्य पार्क का निर्माण करवा दिया जाता है तो वह संपूर्ण क्षेत्र अत्यंत सुंदर हो जायेगा।

उस मैदान पर व्यवस्थित पार्क को बनवाकर वहाँ प्रवचन आदि के कार्य भी संपन्न करवाये जा सकते हैं। ऐसे धार्मिक कार्यक्रम यदि मंदिर क्षेत्र के पार्क में आयोजित होंगे तो उन कार्यक्रमों में शामिल होने वाले श्रद्धालु भक्ति से सराबोर हुए बिना नहीं रह सकेंगे। यही नहीं बल्कि बच्चों के लिये भी एक सुगम स्थल मुहैया करवाया जा सकेगा जिसके परिणाम अच्छे ही मिलेंगे।

अंशुमन घावरी