जब जाकिर हुसैन को प्रोफेसर ने कहा बुरा भला

 

 

बात उस समय की है जब डॉ. जाकिर हुसैन विशेष अध्ययन के लिए जर्मनी गए हुए थे। वहां पर अपरिचित लोगों से मित्रता करने का बड़ा रिवाज था। जब भी दो अनजान व्यक्ति एक-दूसरे को अपना नाम बताकर हाथ मिलाते तो मान लिया जाता कि वे आपस में दोस्त बन चुके हैं। डॉ. जाकिर हुसैन के परिचय का दायरा अभी ज्यादा नहीं बढ़ा था, लेकिन वे यहां के चलन से परिचित होने लगे थे।

ऐसे में एक दिन कॉलेज वार्षिकोत्सव के मौके पर उनके साथ छोटा सा हादसा हो गया। कार्यक्रम का समय हो चुका था सभी विद्यार्थी व शिक्षक उत्सव के लिए निर्धारित स्थल पर पहुंच रहे थे। जाकिर साहब भी तेजी से उधर ही जा रहे थे। जैसे ही उन्होंने कॉलेज में प्रवेश किया, जल्दबाजी वह एक व्यक्ति से टकरा गए। जिनसे टकराए वे उसी कॉलेज के सीनियर प्रफेसर थे।

प्रफेसर ने गुस्से में उनकी तरफ देखते हुए कहा, ईडियट। पल भर को जाकिर साहब असमंजस में रहे, फिर मुस्कराते हुए अपना हाथ आगे की ओर बढ़ा दिया और बोले, मैं जाकिर हुसैन। भारत से यहां पढ़ने के लिए आया हुआ हूं। जाकिर साहब की हाजिरजवाबी देखकर शिक्षक महोदय का गुस्सा गायब हो गया।

वह भी मुस्कराते हुए बोले, बहुत खूब। आपकी हाजिरजवाबी ने मुझे प्रभावित कर दिया। इस तरह परिचय देकर आपने हमारे देश के रिवाज को भी मान दिया है और साथ ही मुझे मेरी गलती का अहसास भी करा दिया है। वाकई हम अनजाने में एक-दूसरे से टकराए थे। ऐसे में मुझे क्षमा मांगनी चाहिए थी। अपशब्द नहीं बोलने चाहिए थे।

डॉ. जाकिर हुसैन ने अपनी हाजिरजवाबी से शिक्षक महोदय को भी उनकी गलती का अहसास करा दिया। ऐसा आचरण वही लोग कर सकते हैं जिनमें जाकिर हुसैन की तरह विनम्रता और आत्मविश्वास दोनों का अद्भुत मेल हो।

(साई फीचर्स)

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