ईद, उल, जुहा या बकरीद का दिन फर्ज, ए, कुर्बान का दिन होता हैं। आमतौर पर हम सभी जानते हैं कि बकरीद के दिन बकरे की कुबार्नी दी जाती हैं। मुस्लिम समाज में बकरे को पाला जाता है और अपनी हैसियत के अनुसार उसकी देख रेख की जाती हैं और जब वो बड़ा हो जाता हैं उसे बकरीद के दिन अल्लाह के लिए कुर्बान कर दिया जाता हैं जिसे फर्ज, ए, कुर्बान कहा जाता हैं।
बकरीद का इतिहास
इसके पीछे एक ऐतिहासिक तथ्य छिपा हुआ हैं जिसमे कुबार्नी की ऐसी दास्तान हैं जिसे सुनकर ही दिल कांप जाता हैं। हजरत इब्राहिम द्वारा अल्लाह के हुक्म पर अपने बेटे की कुबार्नी देने के लिए तैयार हो गए थे। हजरत इब्राहिम को लगा कि उन्हें सबसे प्रिय तो उनका बेटा है इसलिए उन्होंने अपने बेटे की ही बलि देना स्वीकार किया। हजरत इब्राहिम को लगा कि कुबार्नी देते समय उनकी भावनाएं आड़े आ सकती हैं, इसलिए उन्होंने अपनी आंखों पर पट्टी बांध ली थी। जब अपना काम पूरा करने के बाद पट्टी हटाई तो उन्होंने अपने पुत्र को अपने सामने जिन्दाी खड़ा हुआ देखा। बेदी पर कटा हुआ मेमना पड़ा हुआ था, तभी से इस मौके पर बकरे और मेमनों की बलि देने की प्रथा है।
तब से इसी की याद में ये त्यौहार को मनाया जाता है। हजरत इब्राहिम को पैगंबर के रूप में जाना जाता है जो अल्लाह के सबसे करीब हैं। उन्होंने त्याग और कुबार्नी का जो उदाहरण विश्व के सामने पेश किया वह अद्वितीय है। इस्लाम के विश्वास के मुताबिक अल्लाह हजरत इब्राहिम की परीक्षा लेना चाहते थे और इसीलिए उन्होंने उनसे अपनी सबसे प्यारी चीज की कुबार्नी देने के लिए कहा। कुछ जगह लोग ऊंटों की भी बलि देते हैं। तब ही से कुबार्नी देने की परंपरा चली आ रही है जिसे बकरीद ईद, उल, जुहा के नाम से दुनियाँ जानती हैं।
बकरीद का सच
इसके आलावा इस्लाम में हज करना जिंदगी का सबसे जरुरी भाग माना जाता हैं। जब वे हज करके लौटते हैं तब बकरीद पर अपने अजीज की कुबार्नी देना भी इस्लामिक धर्म का एक जरुरी हिस्सा हैं जिसके लिए एक बकरे को पाला जाता हैं। दिन रात उसका ख्याल रखा जाता हैं। ऐसे में उस बकरे से भावनाओं का जुड़ना आम बात हैं। कुछ समय बाद बकरीद के दिन उस बकरे की कुबार्नी दी जाती हैं।
कैसे मनाई जाती हैं बकरीद
सबसे पहले ईदगाह में ईद सलत पेश की जाती हैं। पुरे परिवार एवम जानने वालो के साथ मनाई जाती हैं। सबके साथ मिलकर भोजन लिया जाता हैं। नये कपड़े पहने जाते हैं। गिफ्ट्स दिए जाते हैं खासतौर पर गरीबो का ध्यान रखा जाता हैं उन्हें खाने को भोजन और पहने को कपड़े दिये जाते हैं। बच्चों और अपने से छोटो को ईदी दी जाती हैं। ईद की प्रार्थना नमाज अदा की जाती हैं
इस दिन बकरे के अलावा गाय, बकरी, भैंस और ऊंट की कुबार्नी दी जाती हैं। कुर्बान किया जाने वाला जानवर देख परख कर पाला जाता हैं अर्थात उसके सारे अंग सही सलामत होना जरुरी हैं। बकरे को कुर्बान करने के बाद उसके मांस का एक तिहाई हिस्सा खुदा को, एक तिहाई घर वालो एवम दोस्तों को और एक तिहाई गरीबों में दे दिया जाता हैं। यह पर्व जहां सबको साथ लेकर चलने की सीख देता है वहीं बकरीद यह भी सिखाती है कि सच्चाई की राह में अपना सब कुछ कुर्बान करने के लिए हमेशा तैयार रहना चाहिए।
क्यों मनाते हैं बकरीद?
बकरीद को इस्लाम में बहुत ही पवित्र त्योहार माना जाता है। इस्लाम में एक वर्ष में दो ईद मनाई जाती है। एक ईद जिसे मीठी ईद कहा जाता है और दूसरी है बकरीद। बकरीद पर अल्लाह को बकरे की कुबार्नी दी जाती है। पहली ईद यानी मीठी ईद समाज और राष्ट्र में प्रेम की मिठास घोलने का संदेश देती है।
दूसरी ईद अपने कर्तव्य के लिए जागरूक रहने का सबक सिखाती है। राष्ट्र और समाज के हित के लिए खुद या खुद की सबसे प्यारी चीज को कुर्बान करने का संदेश देती है। बकरे की कुबार्नी तो प्रतीक मात्र है, यह बताता है कि जब भी राष्ट्र, समाज और गरीबों के हित की बात आए तो खुद को भी कुर्बान करने से नहीं हिचकना चाहिए।
कुबार्नी का मतलब है दूसरों की रक्षा करना
कोई व्यक्ति जिस परिवार में रहता है, वह जिस समाज का हिस्सा है, जिस शहर में रहता है और जिस देश का वह निवासी है, उस व्यक्ति का फर्ज है कि वह अपने देश, समाज और परिवार की रक्षा करें। इसके लिए यदि उसे अपनी सबसे प्रिय चीज की कुबार्नी देना पड़े तब भी वह पीछे ना हटे।
(साई फीचर्स)

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