लो आ गया स्वाधीनता दिवस

 

 

(शरद शरे)

आज एक बार फिर स्वतंत्रता दिवस के अवसर पर 14 अगस्त से ही आज़ादी के तराने जिले की फिजां में गूंजने लगे हैं। आज़ादी के इन गीतों को सुनकर आज प्रौढ़ हो रही पीढ़ी वाकई रोमांचित अनुभव कर रही है। इसका कारण यह है कि प्रौढ़ हो रही पीढ़ी ने आज़ादी के उपरांत भारत को संसाधनों के लिये जूझते देखा है। साधनहीनता के चलते इस पीढ़ी ने अनेक तरह से दुःख झेले हैं। बुजुर्ग हो चली पीढ़ी तो इसकी साक्षात गवाह है कि रोजमर्रा की चीजों को कितनी मुश्किल से पाया जाता था।

आज जवान हुए लोग इस बात से अंजान ही माने जा सकते हैं कि आज़ादी किस मुश्किल और झंझावात के बाद हमें मिली है। आज संचार क्राँति का युग है, इस युग में मोबाईल आवश्यकता की वस्तु बनकर रह गया है। कल जब लेण्ड लाईन पर बमुश्किल एक दूसरे से बात हो पाती थी, वह दौर था पत्रों का। खतो खिताब और तार के जरिये सूचनाओं का संप्रेषण हुआ करता था। अगर किसी को फोन पर मोहल्ले में बुला लिया गया (चूँकि उस दौर में फोन कम ही हुआ करते थे) तो उसका दिल काँप उठता था कि पता नहीं कौन सी खुशखबरी या दुःख की खबर आ गयी।

उस दौर में आवागमन के साधनों का अभाव था, मनोरंजन के लिये मेला ठेला, ढंढार, रामलीला और सिनेमा ही प्रमुख साधन हुआ करते थे। गाँवों में रात को चौपाल में लोग भोजन कर इकट्ठे बैठा करते थे और रेडियो का आनंद लिया करते थे। आज सब कुछ बदला-बदला सा नज़र आता है, फिर भी आज के बुजुर्ग न जाने क्यों इस बात से संतुष्ट नहीं हैं कि हम वाकई स्वतंत्र हो चुके हैं। देश में महंगाई और भ्रष्टाचार का बोलबाला है, अराजकता पसरी है फिर भी कहा जाता है कि हम आज़ाद हैं।

कमोबेश यही आलम सिवनी का है। सिवनी में भी लोग हलाकान, परेशान हैं। सिवनी की लोकसभा सीट सहित घंसौर विधानसभा का अवसान हो गया, बड़ी रेल लाईन की बाट जोहते-जोहते अरसा बीत गया, काम चालू है पर इस कदर मंथर गति से कि यह कब पूर्ण होगा, कहा नहीं जा सकता है।

सड़कों का अता-पता नहीं है। फोरलेन भी आधी अधूरी ही है। सारी बाधाएं हटने के बाद भी फोरलेन के लिये लोग तरस रहे हैं। छपारा से लखनादौन के बीच फोरलेन का काम हो तो चुका है पर यह सुविधा की बजाय दुर्घटना का कारक बनती जा रही है। यह सड़क जब से बनी है तब से यहाँ दुर्घटनाओं की तादाद में विस्फोटक बढ़ौत्तरी दर्ज की गयी है।

जिले में उद्योग धंधों का अभाव साफ दिखायी दे रहा है। रोज़गार के साधनों के अभाव में आज का युवा क्रिकेट सहित अन्य सट्टा, जुआ की फड़ों के साथ ही साथ चोरी-चकारी में लग चुका है। आज पालक परेशान हैं। घरों की युवा होती बच्चियां सुरक्षित नहीं कही जा सकतीं हैं। फिर भला यह कैसी आज़ादी?

आज सिवनी में चिकित्सा सुविधाएं नगण्य ही मानी जा सकती हैं। उपचार के नाम पर लोग लुट रहे हैं। शासन सस्ती और निःशुल्क दवाओं की हिमायत कर रहा है पर सिवनी में सब कुछ मुश्किल ही प्रतीत हो रहा है। प्रदेश और देश की सरकारें शिक्षा के नाम पर अच्छी और सुलभ सस्ती होने की बात कहती हैं तो सिवनी में बच्चों को पढ़ाने में पालकों की कमर टूटी हुई है। क्या यही हैं आज़ादी के मायने?

आज सियासी दलों के नुमाईंदों के द्वारा स्थानीय स्तर की समस्याओं पर पर्दा डालकर देश-प्रदेश की चिंता इस तरह की जाती है मानो देश-प्रदेश की चिंता करने से सिवनी की समस्याओं से निजात मिल जायेगी। स्व.विमला वर्मा के द्वारा दी जाने वाली सौगातों को भी आज की पीढ़ी के नेता सहेजकर नहीं रख पा रहे हैं। देखा जाये तो आज जवान होती पीढ़ी के पास कुछ भी उपलब्धि नहीं है।

इसके अलावा बीते दो-तीन दशकों पर अगर बारीकी से नज़र डाली जाये तो हम पायेंगे कि सिवनी में विकास का पहिया अस्सी के दशक में, उत्तरार्ध के उपरांत थम सा गया है। अस्सी के दशक के पहले सिवनी की झोली में जो भी सौगातें आयी हैं उसके बाद यहाँ के सांसद-विधायकों के पास कुछ खास गिनाने को नहीं रह गया है।

अभी मेडिकल कॉलेज़ जमकर चर्चाओं में है। इस मामले में जिले के दोनों सांसद फग्गन सिंह कुलस्ते एवं डॉ.ढाल सिंह बिसेन सहित चारों विधायक दिनेश राय, योगेंद्र सिंह, राकेश पाल सिंह एवं अर्जुन सिंह काकोड़िया ने अपना मौन नहीं तोड़ा है।

सत्ताधारी दल हो या विपक्ष, दोनों ही के द्वारा सदा ही देश-प्रदेश की चिंता में अपना समय जाया किया जाता है। हमारा कहने का तात्पर्य यह कतई नहीं है कि देश और प्रदेश की चिंता नहीं की जानी चाहिये। हम तो महज़ इतना ही कहना चाह रहे हैं कि सबसे पहले स्थानीय विषयों की चिंता की जाये, स्थानीय समस्याओं से मुक्ति पायी जाये, उसके बाद ही देश-प्रदेश की सरकारों की खामियों को उजागर किया जाये।

हमारे सियासी नेताओं को चाहिये कि वे पहले सिवनी के सांसद-विधायकों के बारे में चिंता करें और उसके बाद अगर समय मिले तो देश-प्रदेश की चिंता करें पर यहाँ मामला उलटा ही दिखता है। स्थानीय मामलों को दरकिनार कर चिंता उनकी की जाती है जो यहाँ के लोगों को शायद जानते ही नहीं!

बहरहाल, स्थानीय विकास के लिये सांसद-विधायकों को आवाज बुलंद करना चाहिये पर विडंबना ही कही जायेगी कि किसी ने भी जनता द्वारा उन्हें दिये गये माकूल मंच यानी लोकसभा या विधानसभा में सिवनी के हितों की आवाजें उठाने की जहमत नहीं उठायी। जिन्होंने उठायी भी है तो उसे देखकर लगता है कि ये प्रश्न विधानसभा या लोकसभा की बजाय सूचना के अधिकार से संबंधित ज्यादा हैं। कुल मिलाकर सिवनी में आज़ादी आज सही मायने में शायद आयी ही नहीं है. . .!