नगर पालिका की असफल इंजीनियरिंग!

 

 

(शरद खरे)

यह वाकई दुखद ही माना जायेगा कि नगर वासियों को बुनियादी सुविधायें उपलब्ध कराने में नगर पालिका परिषद सालों से असफल ही साबित हो रही है। इसके बाद भी सत्तारूढ़ भारतीय जनता पार्टी के वरिष्ठ नेता, विपक्ष में बैठी काँग्रेस सहित चुने हुए सांसद, विधायक, नगर पालिका अध्यक्ष, पार्षद आदि मौन ही साधे हुए हैं। यह वाकई नारकीय पीड़ा से कम नहीं है।

बारिश का महीना आते ही बुधवारी बाजार, अकबर वार्ड की एकता कॉलोनी, विवेकानंद वार्ड में विवेकानंद वार्ड सहित निचली बस्तियों के लोग सिहर उठते हैं। वे निश्चित तौर पर मन ही मन यही कामना करते होंगे के बारिश अगर हो तो कम ही हो। इसका कारण यह है कि सालों से बारिश के मौसम में इन बस्तियों में रहने वाले लोगों को भारी परेशानी का सामना करना पड़ता है।

पानी की टंकी (टिग्गा मोहल्ला) क्षेत्र से बहकर आने वाला पानी बुधवारी बाजार में कहर बरपता है। उधर, यही पानी चूना भट्टी होकर विवेकानंद वार्ड पहुंचता है। इधर, शहर के बारापत्थर और आसपास का पानी एकता कॉलोनी में जमकर तबाही मचाता है। यह एक दो साल का नहीं हर साल का आलम रहता है बारिश के दिनों में। उधर, बुधवारी तालाब के पीछे के इलाकों ललमटिया और हड्डी गोदाम में भी पानी का जलजला देखते ही बनता है। ज्यारत नाके में सड़क जलमग्न हो जाती है तो बाहुबली चौराहा जरा सी बारिश में सराबोर हो जाता है।

पता नहीं नगर पालिका के इंजीनियर्स किस तरह की इंजीनियरिंग को अपनाये हुए हैं। हालात देखकर यह कहना अतिश्योक्ति नहीं होगा कि पालिका के तकनीकि विभाग की इंजीनियरिंग धरातल और वास्तविकता से उलट ही है। अब तक लाखों करोड़ों बहाने के बाद भी हालात जस के तस ही होना इसी बात की ओर इशारा कर रहे हैं कि पालिका के पास इस समस्या का कोई स्थायी हल नहीं है।

कुछ साल पहले सिवनी के निर्दलीय (वर्तमान भाजपाई) विधायक दिनेश राय के द्वारा अपनी पतलून घुटनों तक मोड़कर बुधवारी तालाब में जल भराव का निरीक्षण भी किया गया था। इसके बाद भी नगर पालिका परिषद के द्वारा अगर इस समस्या का माकूल हल नहीं निकाला गया है तो इसका सीधा मतलब यही निकलता है कि नगर पालिका का चुने हुए विधायक की भी कोई परवाह नहीं रह गयी है।

सालों से बारिश में इसी तरह की स्थिति निर्मित होती आयी है। इस साल भी तीन चार बार शहर में इस तरह की स्थिति बन चुकी है। इसके बाद भी नगर पालिका के द्वारा कोई सुध नहीं ली गयी है। हाल ही में बुधवारी के जलभराव को निकालने के लिये शंकर मढ़िया के पास के डिवाईडर को तोड़ दिया गया था। इसके अलावा शंकर मढ़िया के पास एक भूमिगत नाला भी बनाया गया है।

सवाल यह उठता है कि इस डिवाईडर के बनाने में जनता के गाढ़े पसीने की कमायी से संचित राजस्व में से खर्च की गयी रकम की वसूली किससे की जायेगी। इस डिवाईडर का तोड़ना इसी बात को प्रदर्शित करता है कि डिवाईडर की ड्रॉईंग और डिजाईन सही नहीं थी। लिहाजा इसकी जवाबदेही किसी न किसी के द्वारा तो निर्धारित की जाकर उससे वसूली की कार्यवाही भी करना होगा।

किसी भी शहर में सिवनी की तरह के बेतरतीब और बेढंगे डिवाईडर नहीं मिलेंगे। कहीं चार पांच फीट चौड़े तो कहीं महज एक फुट तो कहीं पतले से डिवाईडर। क्या है यह सब! देखा जाये तो छिंदवाड़ा चौराहे से छिंदवाड़ा नाके तक के डिवाईडर्स के मानिंद ही मॉडल रोड के डिवाईडर बनाये जाने चाहिये थे।

लगता है कि सिवनी में प्रयोग करने पर आमदा है नगर पालिका परिषद। दलसागर तालाब के किनारे पर पिचिंग का काम सिंचाई विभाग से कराया जाना चाहिये था क्योंकि सिंचाई विभाग को बांध बनाने का अनुभव होता है पर यह नहीं किया गया। सड़क के निर्माण में लोक निर्माण विभाग से मार्गदर्शन लिया जाना चाहिये था क्योंकि पीडब्ल्यूडी का मुख्य काम सड़क और भवन बनाने का ही है।

शहर के अंदर की दो सड़कें इस बात की गवाह हैं कि किस एजेंसी से काम कराने पर क्या होता है। मॉडल रोड का निर्माण नगर पालिका के द्वारा कराया गया है और इसके आज क्या हालात हैं किसी से छुपे नहीं है, इसका ठेका जिस कंपनी को दिया गया था उसके पेटी कॉन्टेक्ट्रर ने यह काम किया।

दूसरी सड़क कलेक्टर बंगले से एसपी बंगले तक की है। इस सड़क में अधीक्षण (सुपरविजन) का काम लोक निर्माण विभाग के द्वारा कराया गया। आज यह सड़क जस की तस ही है। इस सड़क का निर्माण भी उसी पेटी कॉन्ट्रेक्टर ने किया है। इन दो सड़कों के उदाहरण से साफ है कि ठेकेदार वही, पर अधीक्षण की एजेंसी बदलते ही मामला बदल जाता है।

जाहिर है कि नगर पालिका परिषद के द्वारा उस ईमानदारी के साथ काम को अंजाम नहीं दिया जा रहा है जिस ईमानदारी के साथ उसे करना चाहिये। नगर पालिका परिषद की बिगड़ैल चाल से शहर के लोग परेशान हैं। अगर कोई इससे संतुष्ट नजर आ रहा है तो वह है सत्तारूढ़ भारतीय जनता पार्टी, विपक्ष में बैठी काँग्रेस, चुने हुए सांसद विधायक, नगर पालिका अध्यक्ष, उपाध्यक्ष एवं पार्षद के साथ ही साथ जिला प्रशासन। हालात देखकर तो यही प्रतीत होता है कि आज गरीब गुरबों की परवाह महज कागजों पर ही होती नजर आती है . . !