लबालब हो चुकी हैं नालियां, अब पनपेंगे मच्छर!

 

 

पता नहीं पालिका अपनी जिम्मेदारियों के निर्वहन से कतराती क्यों है?

(अखिलेश दुबे)

सिवनी (साई)। शहर में अधिकांश नाले नालियों में पानी लबालब ही भरा हुआ है। विशेषकर एकता कॉलोनी से ज्यारत नाके तक नये बनाये गये नाले में पानी भरा हुआ है। अगर दो चार दिन ज्यादा बारिश नहीं होती है तो इस पानी में मच्छर अण्डे देना आरंभ कर सकते हैं। शाम ढलते ही लोगों के घरों में मच्छरों की भिनभिनाहट साफ सुनी जा सकती है।

ज्ञातव्य है कि भादों माह के तेरह दिन बीत चुके हैं। इसके बाद तेज बारिश की उम्मीद कम ही नजर आ रही है। वैसे मौसम विभाग के सूत्रों ने समाचार एजेंसी ऑफ इंडिया को बताया कि इस बात के संकेत मिल रहे हैं कि सितंबर में भी पानी गिर सकता है पर पानी ज्यादा गिरेगा इस बात की आशंकायें कम ही हैं।

पूर्व में तत्कालीन जिला कलेक्टर भरत यादव के द्वारा एकता कॉलोनी के प्रवेश वाले स्थान से ज्यारत नाका होते हुए ज्यारत नाके के आगे वाले बड़े नाले तक एक नाला बनाने के निर्देश जारी किये गये थे। उनके आदेश का सम्मान करते हुए नगर पालिका परिषद के द्वारा एक नाले का निर्माण तो कराया गया है किन्तु यह नाला आधा अधूरा ही प्रतीत होता है।

शहर के कमोबेश हर नाले नाली सहित खाली प्लॉट्स आदि में बारिश का पानी भरा हुआ है। बारिश का दौर थमता प्रतीत हो रहा है। आने वाले दिनों में झमाझम की उम्मीद कम ही है। इन परिस्थितियों में जहां भी पानी एकत्र हुआ है वह साफ पानी ही माना जा सकता है।

इस तरह एकत्र हुए साफ पानी में डेंगू, चिकिन गुनिया या मलेरिया जैसी बीमारियों के जनक मच्छरों के प्रजनन के लिये, यह रूका हुआ पानी उपजाऊ माहौल पैदा कर सकता है। नगर पालिका को चाहिये कि इस तरह से जहां भी बारिश का पानी रूका हुआ है वहां दवाओं का छिड़काव करे।

उधर, नगर पालिका के सूत्रों ने समाचार एजेंसी ऑफ इंडिया को बताया कि नगर पालिका के पास मच्छरों के शमन हेतु हर साल प्रचुर मात्रा में दवाएं खरीदी जाती हैं। इन दवाओं का छिड़काव कहां किया जाता है इस बारे में शायद ही कोई जानता हो। मजे की बात तो यह है कि पार्षदों को भी इस बात की परवाह नहीं है कि उनके वार्ड में रसायनों का छिड़काव हो भी रहा है अथवा नहीं!

शहर में आवारा मवेशी, कुत्ते, सुअर, गधे आदी सड़कों पर दिखाई दे रहे हैं। आवारा पशुओं के कारण लोगों का जीना मुहाल हो गया है। रस्म अदायगी के लिए कभी कभार नगर पालिका के द्वारा इस दिशा में सक्रियता दिखाई जाती है, उसके बाद फिर पालिका पुराने ढर्रे पर ही आ जाती है।

शहर में रसायनों का छिड़काव तो दूर की बात है। नगर पालिका के पास फागिंग मशीन होने के बाद इसका उपयोग क्यों नहीं किया जा रहा है यह बात भी शोध का ही विषय है। चार पांच सालों से फागिंग मशीन का उपयोग कब कब किया गया अगर इस बात की ही जांच करवा ली जाए तो हैरत अंगेज परिणाम भी सामने आ सकते हैं।

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