मौसम की करवट और गंदगी

 

 

(शरद खरे)

बारिश के मौसम को बीमारियों का मौसम भी कहा जाता है। बारिश में गंदगी बढ़ने की संभावनाएं सबसे ज्यादा रहा करती हैं। बारिश में नदी नाले और अन्य पानी के स्त्रोतों में भी गंदा पानी होने की संभावनाएं बढ़ ही जाती हैं। बारिश में वैसे भी सावधानियां रखने की हिदायत आदि अनादिकाल से दी जाती रही हैं।

नगर पालिका सिवनी की अकर्मण्यता के चलते सिवनी शहर मानो गंदगी का पर्याय ही बन चुका है। नाले-नालियां, सड़कें, चौक-चौराहे गंदगी से बजबजा रहे हैं। इन चौक-चौराहों से जिला प्रशासन सहित पालिका के आला अधिकारी रोज़ाना ही आना-जाना किया करते हैं पर उन्हें गंदगी मानों दिखायी ही नहीं देती है।

शहर की घनी बस्ती वाले इलाकों की स्थिति और भी बदतर हो चुकी है। घनी बस्तियां गंदगी से अटी पड़ी हैं। यहाँ का कचरा हफ्तों साफ नहीं होता है। कई मोहल्ले तो ऐसे भी हैं जहाँ महीनों से सफाई कर्मियों के दीदार लोगों के द्वारा नहीं किये जा सके हैं। इस साल तो नगर पालिका परिषद के द्वारा वार्ड के लिये जिम्मेदार सफाई कर्मियों के मोबाईल नंबर भी सार्वजनिक नहीं किये गये हैं।

गंदगी है तो जाहिर है बीमारियां पैर पसारेंगी ही। जिला चिकित्सालय, निजि चिकित्सालयों सहित चिकित्सकों के पास मरीजों की लंबी लाईन देखकर अंदाज़ा लगाया जा सकता है कि हालात किस कदर विस्फोटक हो चुके हैं। पालिका की सफाई व्यवस्था किसी से छुपी नहीं है।

पूर्व परिषद के समय में चौक-चौराहों पर कचरे के कंटेनर्स रखवाये गये थे। इन कंटेनर्स से कचरा नियमित नहीं निकाले जाने से कचरा सड़ांध मारने लगा था। लोगों के द्वारा इसकी बदबू से परेशान होकर इन्हें हटवा दिया गया था। ये कंटेनर्स फिल्टर प्लांट में पड़े सड़ रहे हैं।

पालिका के द्वारा हजारों रूपये प्रतिमाह का डीजल फूंककर घरों से कचरा एकत्र तो किया जा रहा है, पर इन वाहनों से कचरे को एकत्र तो कराया जा रहा है पर इनका आकार इतना छोटा और कार्यक्षेत्र इतना बड़ा है कि कुछ ही घरों से कचरा एकत्र करने के बाद ये कचरा गाड़ी पूरी तरह भर जाती हैं।

लगातार हो रही बारिश के कारण सड़कों पर कचरा पसरा दिख रहा है। नगर पालिका के द्वारा कचरा निकालकर किनारे रख दिया गया है, पर इसे उठाये न जाने से आवारा मवेशियों के द्वारा कचरे को वापस नालियों के हवाले कर दिया जा रहा है।

नगर पालिका परिषद में भी सफाई पर ध्यान देने की बजाय खरीदी और निर्माण कार्यों पर ही ज्यादा जोर दिया जाना प्रतीत हो रहा है। पालिका का शाब्दिक अर्थ पालक या पालने वाला ही माना जाता है। नगर पालिका लोगों की परेशानियों को समझने, महसूस करने की बजाय खरीदी और निर्माण कार्यों में क्यों ज्यादा ध्यान दे रही है यह बात समझ से परे ही है।

साफ-सफाई में जबकि वैसे भी कोई ज्यादा खरीदी की जरूरत नहीं होती है। पालिका के पास पर्याप्त मात्रा में फिनायल है, अनेकों तरह के पाउडर पालिका ने खरीदे हैं, गाजर घास के शमन के लिये भी पालिका ने पाउडर खरीदा है। यक्ष प्रश्न यह है कि इन्हें कौन खा या पी रहा है? पालिका को चाहिये कि वह नागरिकों का ध्यान रखे वरना अगर नागरिकों का आक्रोश फटा तो . . .।

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