सत्य की विजय का प्रतीक पर्व विजयादशमीं

 

 

(अखिलेश दुबे)

विजय दशमीं, विजयादशमीं, दशहरा, आश्विन शुक्ल दशमीं को बड़ी धूमधाम से मनाया जाता है। दशहरे को वैसे भारत का राष्ट्रीय त्यौहार भी माना जाता है। रामलीला में जगह-जगह रावण वध का प्रदर्शन होता है। क्षत्रियों के यहाँ शस्त्र की पूजा होती है। ब्रज के मन्दिरों में इस दिन विशेष दर्शन होते हैं। इस दिन नीलकण्ठ का दर्शन बहुत शुभ माना जाता है।

यह त्यौहार क्षत्रियों का माना जाता है। इसमें अपराजिता देवी की पूजा होती है। यह पूजन भी सर्वसुख देने वाला है। दशहरा या विजया दशमीं नवरात्रि के बाद दसवें दिन मनाया जाता है। इस दिन राम ने रावण का वध किया था। रावण राम की पत्नि सीता का अपहरण कर लंका ले गया था। भगवान राम युद्ध की देवी माँ दुर्गा के भक्त थे, उन्होंने युद्ध के दौरान पहले नौ दिनों तक माँ दुर्गा की पूजा की और दसवें दिन दुष्ट रावण का वध किया। इसके बाद राम ने भाई लक्ष्मण, भक्त हनुमान और बंदरों की सेना के साथ एक बड़ा युद्ध लड़कर सीता को छुड़ाया। इसलिये विजयादशमीं एक बहुत ही महत्त्वपूर्ण दिन है।

इस दिन रावण, उसके भाई कुम्भकर्ण और पुत्र मेघनाद के पुतले खुली जगह में जलाये जाते हैं। कलाकार राम, सीता और लक्ष्मण के रूप धारण करते हैं और आग के तीर से इन पुतलों को मारते हैं, जो पटाखों से भरे होते हैं। पुतले में आग लगते ही वह धंू-धंू कर जलने लगता है और इनमें लगे पटाखे फटने लगते हैं, जिससे इनका अंत हो जाता है। यह त्यौहार बुराई पर अच्छाई की विजय का प्रतीक है।

भारत के अतिरिक्त अन्य देशों में भी राजाओं के युद्ध प्रयाण के लिये यही ऋतु निश्चित थी। शमी पूजा भी प्राचीन है। वैदिक यज्ञों के लिये शमी वृक्ष में ऊगे अश्वत्थ (पीपल) की दो टहनियों (अरणियों) से अग्नि उत्पन्न की जाती थी। अग्नि, शक्ति एवं साहस की द्योतक है, शमी की लकड़ी के कुंदे अग्नि उत्पत्ति में सहायक होते हैं, जहाँ अग्नि एवं शमी की पवित्रता एवं उपयोगिता की ओर मंत्रसिक्त संकेत हैं। इस उत्सव का संबंध नवरात्र से भी है क्योंकि इसमें महिषासुर के विरोध में देवी के साहसपूर्ण कृत्यों का भी उल्लेख होता है और नवरात्र के उपरांत ही यह उत्सव होता है।

भारतीय संस्कृति वीरता की पूजक है, शौर्य की उपासक है। व्यक्ति और समाज के रक्त में वीरता प्रकट हो इसलिये दशहरे का उत्सव रखा गया है। दशहरा का पर्व दस प्रकार के पापों-काम, क्रोध, लोभ, मोह मद, मत्सर, अहंकार, आलस्य, हिंसा और चोरी के परित्याग की सद्प्रेरणा प्रदान करता है।

दशहरे का सांस्कृतिक पहलू भी है। भारत कृषि प्रधान देश है। किसान जब अपने खेत में सुनहरी फसल उगाकर अनाज रूपी संपत्ति घर लाता है तो उसके उल्लास और उमंग का पारावार नहीं रहता। इस प्रसन्नता का कारण वह भगवान की कृपा को मानता है और उसे प्रकट करने के लिये वह उसका पूजन करता है। समस्त भारत वर्ष में यह पर्व विभिन्न प्रदेशों में विभिन्न प्रकार से मनाया जाता है।

महाराष्ट्र में इस अवसर पर सिलंगण के नाम से सामाजिक महोत्सव के रूप में भी इसको मनाया जाता है। सायंकाल के समय सभी ग्रामीणजन सुंदर-सुंदर नव वस्त्रों से सुसज्जित होकर गाँव की सीमा पार कर शमी वृक्ष के पत्तों के रूप में स्वर्ण लूटकर अपने ग्राम में वापस आते हैं, फिर उस स्वर्ण का परस्पर आदान-प्रदान किया जाता है।

मैसूर का दशहरा देशभर में विख्यात है। मैसूर महल को इस अवसर पर दुल्हन की तरह सजाया जाता है। विजयादशमीं के दिन पूरे शहर को दीपमालिका से सजाया जाता है और हाथियों का श्रृंगार कर भव्य जुलूस निकाला जाता है। इसी तरह हिमाचल प्रदेश में कुल्लू का दशहरा बहुत प्रसिद्ध है।

पंजाब में दशहरा नवरात्रि के नौ दिन का उपवास रखकर मनाते हैं। इस दौरान यहाँ आगंतुकों का स्वागत पारंपरिक मिठाई और उपहारों से किया जाता है। यहाँ भी रावण दहन के आयोजन होते हैं व मैदानों में मेले लगते हैं। बस्तर में दशहरे के मुख्य कारण को राम की रावण पर विजय न मानकर, लोग इसे माँ दंतेश्वरी की आराधना को समर्पित एक पर्व मानते हैं। दंतेश्वरी माता बस्तर अंचल के निवासियों की आराध्य देवी हैं, जो दुर्गा का ही रूप हैं। यहाँ यह पर्व पूरे 75 दिन चलता है।

बंगाल, ओड़िशा और असम में यह पर्व दुर्गापूर्जा के रूप में ही मनाया जाता है। यह बंगालियों, ओड़िया और आसाम के लोगों का सबसे महत्वपूर्ण त्यौहार है। पूरे बंगाल में यह पाँच दिनों के लिये मनाया जाता है। ओड़िशा और असम में चार दिन तक त्यौहार चलता है। यहाँ देवी दुर्गा को भव्य सुशोभित पण्डालों में विराजमान करते हैं। देश के नामी कलाकारों को आमंत्रित कर दुर्गा की मूर्ति तैयार करवायी जाती हैं। इसके साथ अन्य देवी देवताओं की भी कई मूर्तियां बनायी जाती हैं। दशमीं के दिन विशेष पूजा का आयोजन किया जाता है। प्रसाद चढ़ाया जाता है और प्रसाद वितरण किया जाता है।

तमिलनाडु, आंध्र प्रदेश एवं कर्नाटक में दशहरा नौ दिनों तक चलता है जिसमें तीन देवियां लक्ष्मी, सरस्वती और दुर्गा की पूजा करते हैं। पहले तीन दिन लक्ष्मी धन और समृद्धि की देवी का पूजन होता है। अगले तीन दिन सरस्वती कला और विद्या की देवी की अर्चना की जाती है और अंतिम दिन देवी दुर्गा-शक्ति की देवी की स्तुति की जाती है।

गुजरात में मिट्टी सुशोभित रंगीन घड़ा देवी का प्रतीक माना जाता है और इसको कुंवारी लड़कियां सिर पर रखकर एक लोकप्रिय नृत्य करतीं हैं जिसे गरबा कहा जाता है। गरबा नृत्य इस पर्व की शान है। महाराष्ट्र में नवरात्रि के नौ दिन माँ दुर्गा को समर्पित रहते हैं, जबकि दसवें दिन ज्ञान की देवी सरस्वती की वंदना की जाती है। किसी भी चीज को प्रारंभ करने के लिये खासकर विद्या आरंभ करने के लिये यह दिन काफी शुभ माना जाता है। महाराष्ट्र के लोग इस दिन विवाह, गृह-प्रवेश एवं नये घर खरीदने का शुभ मुहूर्त समझते हैं।