सावधान, आप कैमरे की नजर में हैं…

 

 

(सुधीर मिश्र)

जिगर मुरादाबादी ने लिखा है :

तिरे जमाल की तस्वीर खींच दूं लेकिन!

ज़बां में आंख नहीं आंख में ज़बां नहीं!!

पर विडियो गजब की चीज है। इसमें आंख भी है और ज़बां भी। लोगों को लगता है कि देश में बदलाव कोई नेता या अफसर लाएगा। हकीकत तो यह है कि क्रांति तो विडियो और कैमरा लाएगा। अब देखिए न, पुलिस हो या पत्रकार। अफसर हों या नेता। साधु हों या शैतान। सब कैमरे के निशाने पर हैं। आप कैसे नाचते हैं, सोशल मीडिया पर क्या उवाचते हैं, मसाज कराने में कौन सा तेल इस्तेमाल करते हैं, कैसे पांच सौ रुपये की घूस लेते हैं या फिर नौकरी चलाने के लिए किसके-किसके चरण पखारते हैं, सब ऑनलाइन है।

पहले अखबार या चेनल वाले ही पत्रकार होते थे। अब आम जनता भी पत्रकार है। हाथ में मोबाइल फोन थामे लोग किसी की भी खबर ले लेते हैं। हर कोई आजाद है। और तो और समझदार पुलिसवाले और वालियां भी अब डंडे-बंदूक की बजाए कैमरे का सहारा ले रहे हैं। हाल ही में सोशल मीडिया पर एक विडियो देखकर बड़ा आनंद आया। तीन महिला पुलिसकर्मी बीच सड़क पर किसी कथित पत्रकार की क्लास ले रही हैं। पत्रकार ने रात में दारू पीकर उनके बारे में कुछ गलत सोशल मीडिया पर लिख दिया था। इसकी पड़ताल महिला पुलिसकर्मियों ने बीच रोड पर की। पत्रकार महोदय घिग्घी बांधे खड़े थे क्योंकि खुद गलत थे। इसका विडियो खुद महिला पुलिसकर्मियों ने वायरल किया। हालांकि, विडियो के इस्तेमाल के मामले में अभी संक्रमण काल है।

हाल ही में एक जिले के कलेक्टर ने पत्रकारों को सिखाया कि पत्रकारिता कैसे करते हैं। स्कूल में बच्चों को नमक-रोटी खिलाए जाने की रिपोर्ट से दुखी थे। उनके मुताबिक, रिपोर्टर को खबर करनी है तो फोटो खींचे न कि विडियो बनाए। उनका बयान देखकर लगा कि एक मीडिया वर्कशॉप सरकारी अफसरों के लिए भी होनी चाहिए। उन्हें यह समझाए जाने की जरूरत है कि मोबाइल फोन के साथ घूम रहा पत्रकार एक साथ सारे काम कर रहा है। वह अखबार के लिए लिख रहा है, चेनल के लिए विडियो बना रहा है और वेबसाइट पर तुरंत अपडेट भी कर रहा है। जानकारी न होने का ही नतीजा है कि अपना काम सही ढंग से करने पर भी बेचारे पत्रकार के खिलाफ एफआईआर हो गई। वैसे यह वर्कशॉप नेता, अफसर, सरकारी लोगों, बिल्डरों, ठेकेदारों, डॉक्टरों, इंजिनियरों और पत्रकारों सभी के लिए जरूरी है।

आखिर कैमरा सिर्फ मोबाइल में ही नहीं होता। एक पूर्व केंद्रीय मंत्री का हाल ही में विडियो आया, जिसमें वह आपत्तिजनक स्थिति में दिखाई दे रहे हैं। यह विडियो नजर के चश्मे से बनाया गया था। आज सभी को समझने की जरूरत है कि कैमरा सर्वव्यापी है, कहीं भी फिट हो सकता है। ईश्वर भी सर्वव्यापी है पर उसकी लाठी में आवाज नहीं होती। कैमरे की मार बहुत खराब होती है। हाल ही में एक युवक को उसके बच्चे की मौजूदगी में पुलिसवालों ने बेरहमी से पीटा। कुछ ही देर में विडियो वायरल हुआ और पुलिसवाले सस्पेंड। लिहाजा, लोगों के सामने अब दो ही विकल्प हैं। या तो पूरी तरह से चौकन्ने रहें कि कहीं कोई कैमरा तो नहीं। या फिर ऐसे कर्म ही न करें, जिनके सार्वजनिक होने से आप को डर लगता हो। जो करें डंके की चोट पर करें, जिसमें कोई डर न हो। नीयत खराब न हो तो आप का विडियो कैसा भी हो, आप की छवि खराब नहीं होगी। अब पैराग्लाइडिंग में भयानक डर का अनुभव करने वाले उस युवा का उदाहरण ही देख सकते हैं जो रातोंरात सोशल मीडिया का स्टार हो गया। भयंकर डरा हुआ होने के बावजूद उसने हाथ में लिया हुआ सेल्फी स्टैंड नहीं छोड़ा। डर के मारे खुद को तरह-तरह की उपमाओं से विभूषित करते उस युवा के इस नकारात्मक पक्ष को भी लोगों ने सराहा क्योंकि उसमें कोई बदनीयती नहीं थी। लिहाजा, कर नहीं तो डर नहीं। पर अगर कुछ गलत कर रहे हैं तो ध्यान रहे- आप कैमरे की नजर में हैं। कैमरा ईश्वर तो नहीं पर कहीं भी हो सकता है। इस डर को गुलजार के शब्दों में कुछ यूं भी समझ सकते हैं-

सहमा-सहमा डरा डरा सा रहता है!

जाने क्यूं जी भरा सा रहता है!!

(साई फीचर्स)