हम बनेंगे विश्व गुरू!

 

 

(हरी शंकर व्याुस)

पता नहीं यह विश्वास कितने दशकों या कितनी सदियों पुराना हैं। पता यह भी नहीं है कि इस आस्था, विश्वास के पीछे वैचारिक मौलिकता क्या है? मोटे तौर पर हिंदू दुनिया को जान कर, दुनिया के आयातित विचारों पर उडान भरता रहा है कि हम विश्व गुरू बनेंगे। विश्व गुरू बनने के ख्याल में समकालीन इतिहास में विचार हमेशा विदेश से आयातित रहे है। कांग्रेस पार्टी की उदार, लोकतांत्रिक विचारधारा आयातित है तो कम्युनिस्ट पार्टियों की साम्यवादी और भाजपा की राष्ट्रवादी विचारधारा भी आय़ातित ही है। यहां तक आजादी के समय हमारी सारी लड़ाई बाहर के विचारों से प्रभावित रही थी। कांग्रेस का आंदोलन यूरोप और अमेरिका के लोकतांत्रिक, उदार और पूंजीवादी विचारधारा से प्रभावित था तो भगत सिंह, चंद्रशेखर आजाद आदि का आंदोलन रूस की बोल्शेविक क्रांति से प्रभावित था। आजादी के बाद लोक कल्याणकारी राज्य की अवधारणा भी बाहर से ली गई तो नब्बे के दशक में नरसिंह राव और मनमोहन सिंह की उदार अर्थव्यवस्था भी रूस के बिखराव के बाद अमेरिकी वर्चस्व और उसके प्रचार से प्रभावित थी। बाहरी प्रभावों की अगली कड़ी में मोदी के आइडिया ऑफ इंडिया में भी भारत को विश्व गुरू बनाने का मौजूदा विचार भी पुतिन, शी जिनफिंग, डोनाल्ड ट्रंप, एर्दाेआन के राष्ट्रवादी हुंकारे की शैली में ढला हुआ है।

वैसे राष्ट्रीय स्वंयसेवक संघ और भाजपा के लिए विश्व गुरू और सोने की चिड़िया का जुमला पुराना है। पर एक विचार के रूप में राष्ट्रवादी चक्के में इसे गति और स्थापना तब मिली जब दुनिया में यह परिघटना शुरू हुई। जब रूस में व्लादिमीर पुतिन ने लोगों को सोवियत संघ की महानता याद दिलाई और रूस को फिर से महान बनाने के मुद्दे पर अपनी सत्ता को स्थायी बनाया। जब चीन में शी जिनफिंग ने अपने देश को फिर से महान बनाने का संकल्प किया और इसके लिए चीन की कम्युनिस्ट पार्टी ने अपना संविधान बदल कर शी की सत्ता को स्थायी बनाया। जब अमेरिका को फिर से महान बनाने के नारे पर डोनाल्ड ट्रंप ने सत्ता हासिल की तो तुर्की में एर्दाेआन ने ऐसे ही जुमलेबादी में अपनी सत्ता स्थायी बनाई।

अपने-अपने देश को महान बनाने का संकल्प लेने के लिए असल में कुछ नहीं करना होता है, सिर्फ लोगों की सामूहिक मूर्खता को राजनीतिक पूंजी में तब्दील करने की कला सीखनी होती है। जिनके पास यह कला पहले से होती है वे ज्यादा सफल होते हैं। अपने देश की महानता और गौरव लौटाने के लिए असल में कुछ करने की बजाय बड़े वादे करने होते हैं, लोगों को उनका पुराना गौरव याद दिलाते रहना होता है और बीच बीच में मूर्खतापूर्ण बातों से लोगों को बहलाए रखना होता है।

सो आज देश में सब कुछ भारत को विश्व गुरू बनाने के लिए है। भारत जब विश्व गुरू था तब महाभारत काल में यहां इंटरनेट की सुविधा थी। भारत जब विश्व गुरू था तब भगवान गणेश के सिर पर हाथी का सिर जोडऩे वाली सर्जरी हुई थी। भारत जब विश्व गुरू था तो उसने हजारों साल पहले ही अणु और परमाणु की खोज कर ली थी। तब भारत के पास पुष्पक विमान था और दुश्मन के छक्के छुड़ा देने वाली मिसाइलें व रॉकेट थे। यह अलग बात है कि भारत अब ये सारी चीजें दुनिया के दूसरे देशों से आयात कर रहा है। पर लोगों को यकीन है कि उनकी सरकार भविष्य में भारत को विश्व गुरू बना देगी। दुनिया के सारे देश इसके चरणों में झुकेंगे। तरह तरह के बाबाओं, ज्योतिषों की भविष्यवाणी के आधार पर बताया जा रहा है कि वह नेता भारत को मिल गया है, जिसके सामने दुनिया सर झुकाएगी। लोग अपनी सारी समस्याओं, मुश्किलों को भूल कर इस बात पर यकीन करने लगे हैं कि उनकी तकलीफों में ही उनका, उनकी आगे की पीढ़ियों और देश का भला होना है। वे ईमानदारी से यह बात मानने लगे हैं कि पिछले 70 साल में कुछ नहीं हुआ। उन्हें जो कुछ मिला और उनका जीवन जैसा कटा, उससे कई गुना ज्यादा बेहतर जीवन उनके बच्चों का होगा, जब भारत विश्व गुरू बन जाएगा।

सपनों के सौदागरों ने लोगों को यकीन दिला वर्तमान चाहे जैसा भी है, भविष्य बेहतर होगा। लोग भविष्य़ के भारत के लिए अपना जीवन होम कर रहे हैं। उन्हें यकीन दिलाने के लिए सोशल मीडिया के आधा दर्जन प्लेटफार्म पर झूठी सच्ची खबरें फैलाई जा रही हैं और फोटोशॉप किए हुए फोटोग्राफ के जरिए अपने नेता को विश्व नेता बनाया जा रहा है। इसके समानांतर नए पुराने सारे विपक्षी नेताओं को बदनाम करने की साजिश भी चल रही है।

(साई फीचर्स)