ड्राय फ्रूट के चमकीले डिब्बों से बड़ा नुकसान!

 

 

नाप तौल विभाग ने साधा मौन, लंबे समय से नहीं की कार्यवाही!

(वाणिज्यिक प्रतिनिधि)

सिवनी (साई)। दीपों का पर्व आते ही वरिष्ठ अधिकारियों और अन्य लोगों के लिये व्यापारियों और अधीनस्थ कर्मचारियों के द्वारा ड्राय फ्रूट्स के पैकेट से बाज़ार सजने लगा है। बिना वजन, बिना पैकिंग डेट, बिना निर्माता के बिकने वाले इन डिब्बों पर न तो नापतौल विभाग की नज़रें हैं और न ही, वाणिज्यिक कर अथवा फूड एण्ड ड्रग्स विभाग की।

बताया जाता है कि इनमें बतायी गयी मात्रा में ड्रायफ्रूट्स हैं ही नहीं। दूसरे, कब तक खाने योग्य हैं, इसका पता नहीं। तीसरे, जितनी मात्रा दर्ज है, उसके दाम ड्रायफ्रूट्स की बाज़ार कीमत से दो गुना तक वसूले जा रहे हैं। जाहिर है, आप सिर्फ लुभावनी पैकिंग के ऊँचे दाम चुका रहे हैं। ऐसा करके आपके साथ तो धोखा हो ही रहा है साथ ही, पैकेजिंग नियमों का उल्लंघन और वैट की चोरी भी की जा रही है।

बताया जाता है कि ड्रायफ्रूट्स के डिब्बे में 100-100 ग्राम किशमिश, बादाम, काजू और अखरोट हैं। इनका मूल्य दो सौ से चार सौ रूपये के आसपास है। इनके इस डिब्बे पर वजन दर्ज नहीं है। अक्सर होता यही है कि अमूमन डिब्बे में ड्रायफ्रूट्स का वजन 400 ग्राम की जगह 350 या 300 ग्राम ही होता है।

ताक पर पैकेजिंग नियम : विधिक माप विज्ञान पैकेज्ड आईटम नियम 2011 के अनुसार डिब्बे में पैक हर वस्तु पर कमोडिटी कानून लागू होता है। इस तरह के पैकेट पर रखे गये सामान की मात्रा, उसकी सभी टैक्स समेत एमआरपी, एक्सपाईरी डेट और पैक करने वाली कंपनी का टेलीफोन नंबर होना चाहिये।

एमआरपी हो तो ही खरीदें : उपभोक्ता मामलों के जानकार वीरेंद्र सोनकेशरिया कहते हैं कि, ऐसे मामलों में ठगे जाने वाले ग्राहक फोरम में शिकायत नहीं कर सकते। इसके लिये पक्का बिल और डिब्बे पर एमआरपी दर्ज होना जरूरी है।

नियमों के अनुसार पैक डिब्बा पैकिंग एक्ट के तहत आता है। इसमें दूसरे पैक सामानों की तरह कानून लागू होते हैं। भीतर रखी गयी सामग्री का वजन डिब्बे के बाहर अंकित करना जरूरी, उसकी एमआरपी भी होना चाहिये। पैक करने वाले कारोबारी के कॉल सेंटर का नंबर भी इस डिब्बे में अनिवार्य रूप से दिया जाये।

क्या करें उपभोक्ता : एमआरपी न हो तो न खरीदें सामान। वे ड्रायफ्रूट्स के डिब्बे बाहर स्लिप देखकर ही सामान लें। अगर न लगी हो तो दुकानदार से लगाने को कहें। अगर स्लिप दी गयी हो तो उसमें अंकित ड्रायफ्रूट्स की मात्रा को क्रॉस चैक करें। दुकानदार से वजन करायें, वे बिना एमआरपी के डिब्बे बिकते पायें तो इसकी जानकारी उप नियंत्रक नापतौल को दें।

कमर्शियल टैक्स की नज़र : इधर, कमर्शियल टैक्स विभाग शहर के सभी प्रमुख ड्रायफ्रूट्स विक्रेताओं के बिक्री रिटर्न की पड़ताल कर रहा है। सूत्रों के अनुसार महज 20 दिनों में होने वाले लाखों रुपये के इस कारोबार में उसे कम से कम एक लाख रुपये की राशि बतौर टैक्स मिलनी चाहिये लेकिन, मिल रहा टैक्स इससे कहीं कम ही है।

नापतौल विभाग ने साधा मौन : लंबे समय से नापतौल विभाग के द्वारा भी शहर के प्रतिष्ठानों की जाँच की कार्यवाही को अंजाम नहीं दिया गया है। लोगों ने अपेक्षा व्यक्त की है कि नाप तौल विभाग के द्वारा कम से कम त्यौहार के सीजन में तो जाँच की कार्यवाही को अंजाम दिया जाये।