(ब्यूरो कार्यालय)
सिवनी (साई)। दीपावली के त्यौहार से दो दिन पहले के दिन को धनतेरस कहा जाता है। धनतेरस संस्कृत भाषा के दो शब्दों से मिलकर बना है। पहला शब्द है धन और तेरस का अर्थ हिंदु कैलेण्डर के अनुसार 13वें दिन से है।
इस बार धनतेरस का पर्व 25 अक्टूबर को मनाया जायेगा। लेकिन क्या आपको पता है कि इस दिन लोग सोना, सोने के आभूषण, चाँदी के सिक्के आदि क्यों खरीदते हैं? फिर भी सवाल यह है कि यह परंपरा क्यों आरंभ हुई, इसके पीछे का प्रसंग क्या है?
धनतेरस की कथा : राजा हिम के 16-17 वर्षीय बेटे को ऐसा श्राप था कि जैसे ही उसकी शादी होगी ठीक उसके चौथे दिन उसकी मौत हो जायेगी। राज कुमार की शादी जब हुई और उसकी राज कुमारी को इस श्राप की जानकारी हुई तो उसने अपने सुहाग की रक्षा के लिये बहुत सोच विचार के बाद एक गुप्त योजना बनायी। राज कुमारी ने राज कुमार से अनुरोध किया कि चौथे दिन वह सोये नहीं। इसके साथ ही राज कुमारी ने खजाने से सारा सोना, गहने और सिक्के निकलवाकर उस कमरे के दरवाजे पर जमा कराकर दरवाजे के सामने ढेर लगा दिया। फिर राज कुमारी ने अपने महल के अंदर बाहर बड़ी संख्या में दीये जलाये।
इधर रात होते ही राज कुमार को नींद सी आने लगी तो राज कुमारी गीत और भजन गाने लगी। गीत सुनकर राज कुमार की नींद उड़ गयी और वह भी गीत सुनने लगा। कुछ समय बाद जब राज कुमार की मृत्यु का समय आया और यमराज एक सर्प का रूप धारण कर वहाँ पहुँचे और राज कुमार के कमरे में जाने लगे तब दरवाजे पर मौजूद आभूषण, सोने के सिक्कों और दीयों की चमक और रौशनी ने सर्प को अंधा कर दिया और वे राज कुमार के कमरे में नही घुस सके।
सर्प, आभूषण और सोने के सिक्कों के ढेर पर बैठ गया और राज कुमारी के गीतों में मंत्रमुग्ध हो गया। जब सुबह हुई तो राज कुमार की मौत का समय निकल चुका था और यमराज को वापस जाना पड़ा, वो भी राज कुमार को बिना नुकसान पहुँचाये। बताया जाता है कि तब से धनतेरस को यमदीपदान भी कहा जाता है। इसी वजह से लोग अपने घरों में रात भर दीपक जलाते हैं। यही वजह बतायी जाती है कि इस दिन लोग सोने के गहने, जेवर व सिक्के को महत्व देते हैं।

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