कमजोर आपदा प्रबंधन

 

 

पाकिस्तान के कुछ हिस्सों में आए भूकंप ने 2005 की तबाही की कड़वी यादों को ताजा कर दिया है। उस तबाही में लगभग 75,000 लोगों की जान गई थी। भूकंप के अंतिम आंकड़ों का इंतजार है। इस तबाही की वजह से कई जगह सेलुलर नेटवर्क व अन्य सेवाएं भी निलंबित हो गईं। विनाश के छोटे पैमाने के बावजूद इस बार बचाव के प्रयास पहले से बेहतर नजर नहीं आए। लगता है, 2005 की तबाही से अधिकारियों ने कुछ नहीं सीखा है।

विशेषज्ञों का कहना है कि न्यू मीरपुर का प्रभावित क्षेत्र सक्रिय सेमवाल-झारक कास फॉल्ट लाइन पर स्थित है, जो 2005 के भूकंप में भी सक्रिय हो गया था। यह भूकंपीय क्षेत्र है। इस क्षेत्र में आने वाला यह दूसरा बड़ा भूकंप था। 2005 के भूकंप की तबाही ने जाहिर कर दिया था कि सरकार प्राकृतिक आपदाओं के बारे में क्या सोचती है और आपदाओं के समय अपनी जिम्मेदारी कैसे निभाती है? शुक्र है, यह आपदा छोटी थी। आपदा प्रबंधन में बड़े सुधार के संकेत नहीं दिखते हैं।

2007 में योजना आयोग द्वारा मंजूर भूकंप से निपटने की रणनीति अभी भी ठंडे बस्ते में पड़ी है। पाकिस्तान प्राकृतिक आपदाओं की दृष्टि से संवेदनशील देश है। आपदा प्रबंधन प्राधिकरण की एक रिपोर्ट के अनुसार, खैबर पख्तूनख्वाह के कुल 13 जिले एक दशक पहले आपदा संभावित थे, लेकिन अब पूरे 26 जिले आपदाओं के साये में हैं। देश के बाकी हिस्सों का भी कमोबेश यही सच है, सभी इलाके अब नियमित रूप से मूसलाधार बारिश, बाढ़ और सूखे के गवाह बनने लगे हैं।

पाकिस्तान का सबसे बड़ा शहर कराची घटिया भवन निर्माण और अन्य शहरी खामियों के अलावा भूवैज्ञानिक सर्वेक्षण के अनुसार, चिंताजनक भूकंपीय खतरे की आशंका वाला क्षेत्र है। इस शहर में कई क्षेत्र इतनी घनी आबादी वाले हैं कि केवल एक हल्के झटके से ही बड़े पैमाने पर जान-माल का नुकसान हो सकता है। अफसोस, आपदा प्रबंधन के प्रति हमारा सामूहिक दृष्टिकोण सही नहीं है। हम कई जरूरी चीजों को नजरंदाज कर दे रहे हैं। यह समय है, जब हमें किसी आपदा से प्रभावी ढंग से निपटने के लिए एक व्यापक और स्थाई नीति की जरूरत है। (डॉन, पाकिस्तान से साभार)

(साई फीचर्स)