(चंद्र भूषण)
ब्रह्मांड की बनावट के कुछ सुराग अब वैज्ञानिकों की पकड़ में आने लगे हैं। उनकी मुश्किल का अंदाजा कैसे लगाया जाए? हमारी आकाशगंगा एक गैलेक्सी है जिसमें सूरज जैसे ढेरों तारे भरे हुए हैं। कितने? कम से कम 10 हजार करोड़, अधिक से अधिक 40 हजार करोड़। आकाशगंगा में ये तारे किस तरतीब से चलते-फिरते हैं, इसका एक मोटा खाका हमारे पास मौजूद है, हालांकि इसमें नए-नए ब्यौरे जुड़ते रहते हैं। और ब्रह्मांड में हमारी आकाशगंगा जैसी कुल कितनी गैलेक्सियां हैं? हबल टेलिस्कोप ने इनकी तादाद का अनुमान 10 हजार करोड़ लगाया है लेकिन वैज्ञानिकों का आकलन है कि ज्यादा बेहतर टेलिस्कोप से यह 20 हजार करोड़ के आसपास निकलेगी।
खगोलविज्ञानियों की मुश्किल ब्रह्मांड में इन गैलेक्सियों के वितरण की तरतीब खोजने से जुड़ी है। ये एक-दूसरे से दूर भाग रही हैं। जो धरती से जितनी दूर है वह उतनी ही ज्यादा तेजी से दूर भाग रही है, यह जानकारी वैज्ञानिकों को काफी पहले से है लेकिन गैलेक्सियों के बड़े-बड़े झुंड भी हैं- एक-एक में लाखों गैलेक्सियां! और क्लस्टर या सुपरक्लस्टर नाम के ये झुंड आपस में किसी व्यवस्थित ढांचे के तहत बंधे हैं, यह जानकारी 1987 से शुरू होकर अब तक नए-नए आश्चर्यों के साथ सामने आ रही है।
यूरोपियन सदर्न ऑब्जर्वेटरी में लिए गए एक हालिया प्रेक्षण में 12 अरब प्रकाशवर्ष दूर स्थित एक क्लस्टर एसएसए-22 के प्रेक्षण से इन क्लस्टरों के हाइड्रोजन गैस के विराट रेशों (फिलामेंट्स) का अंग होने की बात सामने आई है। करोड़ों प्रकाशवर्ष लंबे ये हाइड्रोजन फिलामेंट्स जहां-जहां एक-दूसरे को काटते हैं, वहीं गैलेक्सियों के झुंड नजर आते हैं।
(साई फीचर्स)

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