निर्भया की सक्रियता पर सवाल!

 

 

(शरद खरे)

दिल्ली में 16 दिसंबर 2012 में हुए निर्भया काण्ड के बाद 2013 में 16 दिसंबर को मध्य प्रदेश में निर्भया मोबाईल अस्तित्व में आयी थी। इसका प्रमुख उद्देश्य युवतियों और महिलाओं की रक्षा करना था। आरंभ में संसाधन के अभाव में इसके लिये पृथक से बल नहीं मिल पाया था। बाद में निर्भया के लिये पृथक से पुलिस बल की व्यवस्था भी की गयी थी।

सिवनी जिले में भी जिला मुख्यालय की सड़कों पर निर्भया मोबाईल की एक सफेद जिप्सी दिख जाती है। यह वाहन अक्सर ही सड़कों पर यहाँ-वहाँ दौड़ता रहता है। हाल ही में निर्भया मोबाईल के द्वारा बारापत्थर के बिजली कार्यालय के पीछे वाले पार्क में युवक-युवतियों को पकड़ा गया था। बाद में उन्हें समझाईश देकर छोड़ भी दिया गया था।

शहर में न जाने कितने निर्जन इलाके हैं जहाँ शाला या विद्यालय के गणवेश में ही युवक-युवतियों की भीड़ आसानी से देखी जा सकती है। शालाओं से अगर विद्यार्थी गैर हाजिर रहते हैं तो शाला संचालकों के द्वारा भी उनके पालकों को इस बात की सूचना नहीं दी जाती है।

आज के संचार क्रांति के युग में यह करना महज सेकेण्ड्स का ही खेल है। सरकारी और निजि शालाओं या कॉलेज में इस तरह की प्रक्रिया नहीं अपनायी जाती है कि हर किसी के पालक को उनके बच्चे के बारे में गैर हाजिर रहने पर सूचना दी जा सके। निजि तौर पर संचालित होने वाले कोचिंग संस्थानों में इस तरह की प्रक्रिया को अपनाया जाने लगा है।

दरअसल किशोरावस्था बहुत ही नाजुक दौर माना जाता है। इस समय बच्चे को चाहे वह युवक हो या युवती, उसे यह भान नहीं होता है कि क्या सही है और क्या गलत है? यह दौर शारीरिक परिवर्तन का दौर भी माना जाता है इसलिये एक-दूसरे के प्रति आकर्षण स्वाभाविक प्रक्रिया का अंग माना जा सकता है।

आज के इस युग में जवानी की दलहीज़ पर खड़ीं युवतियों के द्वारा मोबाईल पर अन्जान लोगों के साथ वार्तालाप किये जाने के अनेक किस्से प्रकाश में आते हैं। देखा जाये तो यह जवाबदेही माता-पिता की ही है कि वे अपने बच्चे को सही गलत का भान करायें और दोस्त की तरह उनके साथ सारी बातों को साझा करें।

निर्भया में तैनात पुलिस कर्मियों को इस बात के लिये ताकीद किया जाना चाहिये कि वे पौ फटते ही कोचिंग अथवा स्कूल को जाने वाली छात्राओं के आवागमन वाले स्थानों पर शोहदों की भीड़ न लगने दें। बाहुबली चौराहे से एसपी बंग्ले के आसपास तक शोहदों की भीड़ देखते ही बनती है।

संवेदनशील जिला पुलिस अधीक्षक कुमार प्रतीक से जनापेक्षा है कि शहर के निर्जन स्थानों, बाग-बगीचों, खेल के मैदानों आदि स्थानों पर पुलिस की नियमित समय के अंतराल पर गश्त की व्यवस्था सुनिश्चित करवायें ताकि जवानी की दहलीज़ पर कदम रखने वाले युवक-युवतियों को राह भटकने से रोका जा सके।