क्या कश्मीरी कभी भारतीय हो पाएंगे..?

 

 

(ओमप्रकाश मेहता)

आज से जम्मू-कश्मीर का दर्जा बदल गया, अब वह देश का नौवां केन्द्र शासित राज्य हो गया है, जम्मू-कश्मीर के साथ लद्दाख भी केन्द्र शासित राज्य हो गया है, इस तरह देश में केन्द्र शासित राज्यों की संख्या सात से बढ़कर नौ हो गई है। जम्मू-कश्मीर के केन्द्र शासित राज्य हो जाने के बाद आज भी वही बहत्तर साल पुराना सवाल जीवित है कि क्या कश्मीरी कभी भारतीय हो पाएंगे? स्मरणीय है कि भारत की आजादी के बाद जब पाकिस्तान का जन्म हुआ था, तब कश्मीर को लेकर काफी खींचतान हुई थी,

पाक के तत्कालीन जनक मोहम्मद अली जिन्ना कश्मीर को पाक के साथ जोड़ना चाहते थे जबकि प्रधानमंत्री पं. जवाहरलाल नेहरू व शेख अब्दुल्ला कश्मीर को भारत में रखना चाहते थे, इस विवाद को बढ़ता देख जिन्ना व नेहरू के बीच कश्मीर में इसी मुद्दे पर रायशुमारी का फैसला हुआ, किंतु नेहरू यह जानते थे कि कश्मीर का पूरा अवाम पाकिस्तान के साथ है, इसलिए उन्होंने अपनी चातुर्य से कश्मीर को भारत के साथ रख लिया और फिर अपने जीते जी रायशुमारी नहीं कराई, शेख अब्दुल्ला की जिद पर संविधान की धारा-370 का प्रावधान कर कश्मीर को विशेष अधिकार प्राप्त राज्य का दर्जा दे दिया गया।

अब मौजूदा मोदी सरकार ने जम्मू-कश्मीर से धारा-370 के एक झटके में खत्म तो कर दिया, किंतु क्या वे कश्मीरियों को सच्चा भारतीय बना पाएंगे? जम्मू-कश्मीर से धारा-370 खत्म किए नब्बे दिन होने को आ रहे हैं, और पहले दिन से ही वहां स्थिति सामान्य होने का ढिंढोरा पीटा जा रहा है, यदि वहां स्थिति सामान्य थी तो फिर बच्चों के स्कूल अब क्यों खोले गए? और जो स्कूल पहले प्रशासन के दबाव में खुल गए थे, उनमें बच्चें क्यों नहीं आए? इस दौरान जितने भी समाचार चौनलों ने जम्मू-कश्मीर की विशेष रिपोर्ट जारी की, किसी ने भी यह स्वीकार नहीं किया कि वहां स्थिति सामान्य है, बल्कि जिन चौनलों ने कश्मीरियों से बात की सभी ने वहां की स्थिति को लेकर चिंता प्रकट की और आज भी वही स्थिति है, और अब तो वहां घटी आतंकी घटनाओं और उनमें हुई निरीहों की हत्याओं ने भी यह सिद्ध कर दिया कि कश्मीर में स्थिति सामान्य नहीं है।

यही नहीं पिछले दिनों तो हद तब हो गई जब सरकार ने अपने देश के सांसदों को जम्मू-कश्मीर जाने से रोक कर यूरोपीय संघ के सांसदों को कश्मीर की सैर करवा दी। ऐसा क्यों किया गया? यह तो अधिकारिक तौर पर केन्द्र की किसी भी हस्ती ने नहीं बताया, किंतु यूरोपीय संघ के सांसदों ने जो कश्मीर में देखा उससे वे संतुष्ट नहीं थे और यह कहने को मजबूर थे कि आज भी कश्मीर में स्थिति सामान्य नहीं है। अब ये ही सांसद अपने-अपने देशों में जाकर वहां के विधान मंडलों में कश्मीर का हाल बयां करेंगे तो देश की विश्व पटल पर क्या इज्जत रह जाएगी? जब इन विदेशी सांसदों ने यही कीं सरकार से हमारे विपक्षी सांसदों को कश्मीर जाने देने की सिफारिश कर दी तो अब इस सरकार में विराजित महापुरूषों से क्या कहा जाए?

जहां तक लद्दाख का सवाल है, वह जम्मू-कश्मीर जैसा समस्या प्रधान देश नहीं है, यद्यपि वहां चीन की दखलंदाजी की स्थायी समस्या है, और वह रहेगी, क्योंकि केन्द्र शासित राज्य बना दिए जाने से वह समस्या खत्म नहीं होगी, उसके लिए कोई सार्थक द्विपक्षीय पहल करनी पड़ेगी, इसलिए लद्दाख को जम्मू-कश्मीर के साथ जोड़ना कतई ठीक नहीं है। यह उसका दुर्भाग्य था कि उसे अब तक जम्मू-कश्मीर के साथ जोड़ रखा था। अब यह तो फिलहाल कहना मुश्किल ही है कि जम्मू-कश्मीर में स्थिति सामान्य कब होगी? क्योंकि वहां की स्थिति वहां के नागरिकों से जुड़ी है, जब तक कश्मीरियों के दिल नहीं बदलते, जब तक वे अपने आपको भावनात्मक रूप से भारत के साथ नहीं जोड़ते तब तक जम्मू कश्मीर में स्थिति सामान्य नहीं हो सकती, और उसके लिए इस सरकार को कश्मीरियों की मूल समस्याएं समझकर, उन्हें दूर कर कश्मीरियों का दिल जीतना होगा, सिर्फ सेना में वहां के युवकों की भर्ती करके उन्हें आतंकवादी बनने से रोकने का ढिंढोरा पीटने से कुछ नहीं होगा। कश्मीरियों की कुछ अपनी स्थानीय समस्याएं हैं जो उनके व्यवसाय व उद्योग के साथ उनकी रोजी-रोटी से जुड़ी है, उनका समाधान प्राथमिकता के आधार पर खोजना होगा तथा उसे कार्यरूप में परिणित करना होगा, तभी कश्मीर व कश्मीरी सही अर्थों में भारत का अंग बन पाएगा। विदेशियों को कश्मीर की सैर करवाने से कुछ नहीं होगा, उल्टा वहां की समस्याओं का विश्वव्यापीकरण हो जाएगा, इसके लिए सरकार को अपनी प्राथमिकताएं बदलनी होंगी।

(साई फीचर्स)