ब्रेग्जिट के सवाल

 

 

ब्रिटेन के प्रधानमंत्री बोरिस जॉनसन के लिए 31 अक्तूबर एक डरावनी तारीख है, उसके बाद ब्रिटेन शायद यूरोपीय संघ का सदस्य नहीं रहेगा। हालांकि इसके पहले 29 मार्च और 12 अप्रैल की तारीख भी बहुत खास थी। कुछ भी स्पष्ट नहीं है। ब्रेग्जिट की डेडलाइन दुखद रूप से भ्रम और मुसीबत का सबब रही है। ब्रुसेल्स में जॉनसन ने अंतिम समय में एक सौदा किया है। समय कम है, तो प्रधानमंत्री सौदे की जल्दी में हैं। यह महत्वपूर्ण है कि जॉनसन आयरलैंड और ब्रेग्जिट के बारे में व्यावहारिक पेचीदगियों और ऐतिहासिक संवेदनाओं को समझने में सुस्त रहे हैं। उत्तरी आयरलैंड को लेकर मामला ज्यादा उलझ रहा है। यूरोपीय संघ के साथ ब्रिटेन के संबंधों के भविष्य को सही संदर्भों में रखकर देखना होगा।

पूर्व प्रधानमंत्री थेरेसा मे इन समस्याओं को समझ गई थीं। वह यह भी समझ गई थीं कि भविष्य में यूरोपीय संघ से अच्छे संबंध रखने ही होंगे। वह यह भी समझ गई थीं कि यूरोप के बाकी देशों के साथ अबाध व्यावसायिक संबंध रखने पड़ेंगे। जॉनसन ने थेरेसा मे के रुख को बहुत हद तक खारिज कर दिया, क्योंकि वह ब्रेग्जिट मुद्दे पर ज्यादा उग्र दिखना चाहते हैं। अभी जो किया जा रहा है, उसके कारण यूरोपीय संघ के देशों के सामाजिक संरक्षण से अलग ब्रिटेन की अर्थव्यवस्था चली जाएगी। अलग होकर ब्रिटेन कोशिश करेगा कि उसके यहां व्यापार की लागत कम रहे, इसके तहत श्रम संरक्षण में कमी की जाएगी, पर्यावरण मानकों को ढीला किया जाएगा और वेतन-भत्ते कम किए जाएंगे।

ससे अंततः ब्रिटेन को नुकसान होगा। जॉनसन का दृष्टिकोण अबाध व्यापार को खारिज कर देता है। वह इसके लिए यूरोपीय बाजार तक अपनी पहुंच को छोड़ने के लिए भी तैयार हैं। वह जिस तरह की गलाकाट प्रतिस्पर्द्धा चाहते हैं, उसमें वार्ता की भी गुंजाइश कम हो जाती है। वह यदि अपनी मर्जी का सौदा करते हैं, जो उसकी भारी कीमत देश को चुकानी पड़ सकती है। ब्रिटिश श्रमिकों और लोगों को इसके परिणाम भुगतने पड़ेंगे। जॉनसन एक प्रकार के अतिवाद की चपेट में हैं और वह ब्रिटेन को गलत दिशा में ले जाने की योजना के संकेत दे रहे हैं। (द गार्जियन, ब्रिटेन से साभार)

(साई फीचर्स)