(ब्यूरो कार्यालय)
जबलपुर (साई)। नेताजी सुभाषचंद्र बोस मेडिकल अस्पताल से निकलने वाला संक्रमित और दूषित पानी का ट्रीटमेंट नाम का रह गया है। सीवर वॉटर फिल्टर प्लांट होने के बाद भी उसे एेसे ही बाहर निकाल दिया जाता है। इस पानी का मेडिकल हॉस्टल के पीछे तालाब बन गया है, जिससे यहां आस-पास संक्रमण फैलने की आशंका बन गई है। क्षेत्रवासियों का कहना है कि तालाब के इस पानी का इस्तेमाल नहीं हो रहा है लेकिन इसके संक्रमण से मच्छर बढऩे से बीमारियां हो रही हैं।
मेडिकल कॉलेज के छात्रावास और डॉक्टर्स कॉलोनी के बीच सीवर वॉटर ट्रीटमेंट प्लांट स्थापित है। इस प्लांट में अस्पताल का सीवर वॉटर भूमिगत नालियों के जरिए आता है। यह पानी मेडिकल से लेकर प्लांट तक विभिन्न चेम्बरों के जरिए पहुंच रहा है। सीवर ट्रीटमेंट प्लांट में पानी एक कुंए में आता है, जहां इस पानी का ट्रीटमेंट सिस्टम लगा है। पानी को फिल्टर करने के बाद उसे प्लांट के पीछे छोड़ दिया जा रहा है। प्लांट से निकलने वाले पानी ने तालाब का रूप ले लिया है।इस तालाब से लगा शासकीय स्कूल, हॉस्टल और मेडिकल की चतुर्थ श्रेणी कर्मचारियों के क्वाटर्स हैं।
ऐसे होता है पानी फिल्टरट्रीटमेंट प्लांट में कुं ए में पानी आने के बाद उसे पम्प की सहायता से चेम्बर में लाया जाता है। चेम्बर में इस पानी का ट्रीटमेंट होता है। ट्रीटमेंट के तहत इस पानी में कैमिकल आदि मिलाकर इसकी अशुद्धि दूर की जाती है। फिल्टर होने के बाद उसे बाहर छोड़ दिया जाता है। इस पानी में चूना, ब्लीचिंग पाउडर, गुड़ सहित अन्य कैमिकल मिलाए जाते हैं, जिससे पानी लगभग प्राकृतिक स्वभाव में आ जाता है।
प्लांट के ये है हाल
मेडिकल हॉस्टल के किनारे बन रहे नए भवन के बाजू में फिल्टर प्लांट है। इस प्लांट में एक पुराना कुआं है। इस कुएं में मेडिकल से सीवर लाइन का पानी आता है। इस पानी के साथ मेडिकल वेस्ट भी शामिल रहता है। यह पानी कुएं में भरता है। कुएं में पानी के भरते ही यहां लगी मोटर चलाकर इस पानी को चेम्बर में लिया जाता है। चेम्बर में पानी को भरकर उसे मेन चेम्बर से होते हुए बाहर निकाल दिया जाता है।
नहीं डाले जाते हैं केमिकल : प्लांट में मौजूद व्यक्ति का कहना था कि यहां केमिकल के नाम पर 24 घंटे में मात्र एक किलो ब्लीचिंग पाउडर डाला जाता है। उसके अलावा अन्य कोई भी केमिकल नहीं डाला जाता है।
पम्प में दम नहीं : जानकारों का कहना है कि यहां तीन हॉसपावर का पम्प लगा हुआ है। सतत पानी आने की वजह से यह पम्प काम नहीं कर पाता है। पम्पहाउस कीपर का कहना है कि इसके लिए मेडिकल प्रबंधन को दो-तीन बार कहा गया है लेकिन उसके बाद भी इसकी क्षमता नहीं बढ़ाई जा रही है, जिससे पानी का फिल्टर ठीक ढंग से नहीं किया जा रहा है।
कबाड़ हो गए उपकरण : प्लांट में पानी की जांच करने के लिए लगाए गए उपकरण धूल खा रहे हैं। इस पानी की पीएच वेल्यू या फिर अन्य अशुद्धि की जांच नहीं की जाती है।
नहीं लगाई जाली : मेडिकल से ट्रीटमेंट प्लांट में आने वाले पानी से कचरा रोकने के लिए जाली नहीं लगाई गई है, इससे कुएं में आने वाला पानी प्रभावित होता है और अक्सर लाइन जाम हो जाती है, जिससे मेडिकल अस्पताल की कंजरवेंसी में पानी भरता है।

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