जब देवीलाल के डर से कांपने लगे थे राज्यपाल

 

(केसी त्यागी) 

1982 का हरियाणा विधानसभा गठन का पूरा दृश्य मुझे याद आ जाता है। चुनाव हुए थे, लेकिन किसी भी दल को पूर्ण बहुमत हासिल नहीं हुआ था। लोकदल और बीजेपी दोनों संयुक्त रूप से चुनाव मैदान में थे और उन्हें 36 सीटें मिली थीं। कांग्रेस पार्टी को 35, कांग्रेस जगजीवन राम को 3, जनता पार्टी को 1 सीटें मिली थीं तथा 12 सीटों पर निर्दलीय विजयी रहे थे। 22 मई 1982 को चौधरी देवीलाल, डॉ. मंगल सेन, प्रकाश सिंह बादल, रवि राय सरीखे नेता हरियाणा के राज्यपाल जीडी तपासे से मिले और उन्हें 48 विधायकों की सूची सौंपकर देवीलाल की अगुआई में सरकार बनाने का प्रस्ताव पेश कर दिया। 73 वर्षीय राज्यपाल तपासे ने सहमति जताते हुए 24 मई की सुबह तक विधायकों की पहचान के लिए उन्हें राजभवन में आमंत्रित किया। विधिवत तौर पर देवीलाल ही मुख्यमंत्री होंगे, ऐसा समाचार पूरे देश में प्रचारित-प्रसारित हो गया।

इसी बीच एक आश्चर्यजनक घटनाक्रम के तहत 23 मई को आनन-फानन कांग्रेस नेता भजन लाल को मुख्यमंत्री पद की शपथ दिला दी गई। उस समय श्रीमती इंदिरा गांधी प्रधानमंत्री और राजीव गांधी कांग्रेस के महामंत्री थे। इससे पूर्व भजन लाल इतिहास का सबसे बड़ा दल-बदल कराकर काफी चर्चित हो चुके थे। हरियाणा विधानसभा की सदस्य संख्या 90 है। भजन लाल के साथ जनता पार्टी के 40 विधायक और एक दर्जन के करीब निर्दलीय विधायक 1980 में कांग्रेस पार्टी में शामिल हो चुके थे। विधायकों का एक बड़ा हिस्सा वरिष्ठ कांग्रेस नेता समशेर सिंह सुरजेवाला के पक्ष में था, लेकिन कांग्रेस हाई कमान को भजन लाल की असीमित क्षमताओं पर ज्यादा विश्वास था। चूंकि लोकदल और बीजेपी ने संयुक्त रूप से चुनाव लड़ा था, इस लिहाज से गठबंधन के पास कांग्रेस से अधिक संख्या थी और सूची के अनुसार भी 48 विधायकों का समर्थन लोकदल-बीजेपी गठबंधन को ही प्राप्त था। इसके बावजूद राज्यपाल ने दिल्ली के इशारे पर यह असंवैधानिक कदम उठाया।

देवीलाल संयुक्त पंजाब और बाद में हरियाणा के सबसे लोकप्रिय जननेताओं में रहे हैं। उनका सारा जीवन कांग्रेस पार्टी में रहते हुए अपने मुख्यमंत्रियों से लड़ने में और हरियाणा राज्य बनने के बाद अपने राज्य के मुख्यमंत्रियों के खिलाफ संघर्षरत रहने में बीता। वह 1977 में चरण सिंह की मदद से ही हरियाणा के मुख्यमंत्री बन पाए। उस संघर्ष व तकरार वाले तेवर के देवीलाल को राज्यपाल का यह फैसला नागवार गुजरा। उन्होंने कानूनी लड़ाई के बजाय जन अदालत में जाने का मन बना लिया और चंडीगढ़ में विशाल विरोध रैली आयोजित की जिसमें प्रत्येक जिले में बनीं संघर्ष समितियां भीड़ के साथ चंडीगढ़ पहुंचीं। उग्र भीड़ को शांत करने के लिए लाठी चार्ज हुआ और मेरे समेत लगभग 200 नेताओं को महीनों चंडीगढ़ जेल में रहना पड़ा।

इस बीच देवीलाल अपने को ठगा महसूस कर रहे थे। लोकदल, बीजेपी और अकाली दल के वरिष्ठ नेताओं के साथ वह राजभवन जा पहुंचे और हरियाणवी शैली में ही उन्होंने राज्यपाल तपासे को खूब खरी-खोटी सुनाई जिसमें कुछ शब्द असंसदीय भी थे। एक प्रत्यक्षदर्शी के अनुसार तपासे डर के कारण कांप रहे थे। बाद में तपासे ने देवीलाल के खिलाफ जो रपट लिखवाई उसमें उनके साथ बदसलूकी करने, गिरेबान पकड़ने, गला दबाने और जाति सूचक शब्दों का प्रयोग करने के आरोप लगाए। आज की तरह उस समय पांच सितारा होटलों में विधायकों को एकत्र करने का रिवाज नहीं था, लिहाजा लक्ष्मण सिंह गिल जो कि निर्दलीय विधायक थे, उनकी अतिथिशाला पर ही सभी विधायकों को इकट्ठा किया गया था और बाहर हजारों की संख्या में निहंग सिख रखवाली में तैनात थे।

इतिहास गवाह है कि जनादेश का अपमान कर कांग्रेस सरकार बनाने में कामयाब जरूर रही, लेकिन अगले चुनाव में वह मात्र 5 सीटों पर सिमट गई और देवीलाल की अगुआई वाले गठबंधन को पूर्ण बहुमत मिला। सबक यह है कि संख्या बल बढ़ाने के प्रयास में हम जिन भौंडे और अवैध तरीकों का इस्तेमाल करते हैं, जनता उन्हें पैनी नजर से देखती है। हाल में कर्नाटक, उत्तराखंड और महाराष्ट्र की घटनाओं ने भी एनडीए के कुछ समर्थकों को निराश किया है। लोग एनडीए से कांग्रेस के मुकाबले भिन्न आचरण की अपेक्षा रखते हैं। एन. टी. रामाराव को आंध्र प्रदेश के निर्वाचित मुख्यमंत्री पद से जिस तरह से हटाया गया और उनकी जगह अल्पमत वाले भास्कर राव को तात्कालीन राज्पाल रामलाल द्वारा शपथ दिलाई गई, वह आज भी जनचेतना में सजीव बना हुआ है। उस समय आंध्र प्रदेश के संयुक्त विपक्ष के बैनर तले विधायकों का राष्ट्रपति से मिलने का समय तय हो चुका था। जिस तेज रफतार वाली गाड़ी में विधायक सफर कर रहे थे, उसकी गति धीमी कर रेलगाड़ी को कई घंटे लेट कर दिया गया। यद्यपि बाद में एनटीआर अपना बहुमत साबित करने में कामयाब रहे, लेकिन कांग्रेस पार्टी आंध्र प्रदेश के मानचित्र से दूर होती चली गई।

ऐसी ही कहानी उत्तर प्रदेश एवं बिहार की भी है। कल्याण सिंह को अपदस्थ कर जगदंबिका पाल को एक दिन का मुख्यमंत्री बनाया जाना भी ऐसा ही उदाहरण है। अफसोस है कि उस दौरान लोकतंत्र के बड़े प्रहरी ज्योति बसु, एचडी देवगौड़ा, वीपी सिंह, इंद्रजीत गुप्ता, चंद्रशेखर, राम कृष्ण हेगडे आदि अपनी आंखों पर पट्टी बांधे हुए थे। वर्ष 2005 में लगभग ऐसा ही प्रकरण बिहार में देखने को मिला जब तात्कालीन राज्यपाल बूटा सिंह ने मध्यरात्रि को राष्ट्रपति शासन की घोषणा कर दी ताकि एनडीए के नेता नीतीश कुमार शपथ न ले सकें। यद्यपि अगले ही दिन आडवाणी जी के नेतृत्व में गठबंधन के विधायक राष्ट्रपति के सामने बहुमत साबित कर बूटा सिंह के फैसले पर उन्हें शर्मसार कर रहे थे। (लेखक जेडीयू के राष्ट्रीय प्रवक्ता हैं)

(साई फीचर्स)