संघर्ष का संकल्प

 

रूसो को पढ़ने का बड़ा शौक था। बचपन में ही उसकी मां गुजर गई, फिर भी वह पिता के साथ जिंदगी में आगे बढ़ता रहा। उसका पिता घड़ी बनाने में माहिर था, मगर वह अपनी लापरवाही की वजह से कभी कभी ही काम करता था। वह शराब बेइंतिहा पीता था। इस वजह से अक्सर पैसों की तंगी हो जाती थी और नतीजा यह होता था कि रूसो की पढ़ाई रुक जाती थी। रूसो इससे परेशान रहता था, मगर सबसे बड़ा संकट आना अभी बाकी था। एक शाम रूसो का पिता बहुत शराब पीकर आया और उसे आवाज दी कि वह उसके पास आकर बैठे। रूसो आया तो उसने पूछा कि अब तक तुमने क्या पढ़़ा है, कुछ पढ़ भी पाते हो?

रूसो ने हां में सर हिलाया तो पिता ने एक किताब देते हुए कहा कि इसे पढ़ो। रूसो ने पूछा यह क्या है तो पिता ने चीखकर कहा कि तुमसे जो कहता हूं वह करो। रूसो पढ़़ने लगा। यह एक अश्लील साहित्य की पुस्तक थी। जब रूसो रुकता तो डांट खाता। उसका बाप सुनते-सुनते सो गया, मगर रूसो की नींद ही उड़़ गई। बाल मन पढ़ाई के इस चेहरे से दूर था। अब तो यह रोज का शगल हो गया। बाप शराब के नशे में उससे अश्लील साहित्य पढ़वाने लगा। इससे रूसो के मन में पढ़ाई और इस काम दोनों से घिन आ गई। उसने एक रात अपना घर छोड़ दिया। बचपन से सुधारने की जगह बिगाड़ने के उसके साथ इतने प्रयोग किये गए फिर भी वह नहीं टूटा। संघर्ष का उसका संकल्प काम आया। उसने आगे चलकर राज्यों के सिद्धांत दिए, सभ्यता का खाका खींचा। कोई कह भी नहीं सकता कि यह वही रूसो था जिससे सबकुछ छीन लिया गया था।

इसलिए हमें भी तय कर लेना होगा कि हमारा बचपन या कोई भी दौर बुरा बीता हो, हम आने वाला कल तो सुधार ही सकते हैं। यह मुमकिन है। रूसो ऐसा कर सकते हैं तो हम और आप भी।

(साई फीचर्स)