0 कॉपी, किताब, गणवेश में लुटेंगे . . . 09
सीबीएसई और राज्य सरकार के नियमों की उड़ रहीं धज्जियां!
(संजीव प्रताप सिंह)
सिवनी (साई)। जिले के कुछ रसूखदार सीबीएसई और राज्य सरकार से मान्यता प्राप्त निजि स्कूलों में सरकारी नियमों को दरकिनार किया जा रहा है। पालकों को अंग्रेजी का आकर्षण दिखाकर, वे कक्षाएं तो 10 महीने ही लगा रहे हैं, लेकिन फीस 12 महीने तक की वसूल रहे हैं।
जिला शिक्षा अधिकारी कार्यालय के सूत्रों ने समाचार एजेंसी ऑफ इंडिया को बताया कि राज्य सरकार से संबद्ध निजि स्कूलों में इस साल कायदे से 16 जून से सत्र आरंभ होने को है, लेकिन इन स्कूलों में सीबीएसई की किताबें पढ़ाकर बच्चों को अप्रैल की गर्मी में ही कक्षाएं लगायी जा रहीं हैं।
सूत्रों ने कहा कि शालाओं में प्रवेशोत्सव जून माह में मनाया जाता है इस लिहाज से जून माह से ही शैक्षणिक सत्र का आगाज माना जा सकता है, पर निजि शालाओं के द्वारा अप्रैल माह में ही शालाएं लगवायी जा रहीं हैं और इसके एवज में निजि स्कूल मई और जून की भी फीस वसूलेंगे।
इसके साथ ही सूत्रों ने बताया कि राज्य से संबद्ध स्कूलों में सीबीएसई का कोर्स पढ़ाने का ग्लैमर दिखाकर निजि प्रकाशकों की किताबों को कोर्स में शामिल किया गया है। हर स्कूल में अलग – अलग किताबें हैं, जबकि राज्य से संबद्ध स्कूलों में सिलेबस एक जैसा है। एनसीईआरटी से सस्ती किताबें मुहैया कराने की बजाय बाजार से महंगी किताबें खरीदने के लिये अभिभावकों को मजबूर किया जा रहा है। आलम यह है कि एनसीआरटी की जो किताबें 250 से 300 रुपये में मिल जातीं हैं, वही किताबें बाजार में 2500 – 4000 रुपये में मिलती हैं। इसे खरीदने के लिये निजि स्कूल अभिभावकों पर दबाव डाल रहे हैं।
सूत्रों ने कहा कि अब तक जिला शिक्षा अधिकारी कार्यालय के द्वारा इस बात का सत्यापन तक नहीं कराया जा सका है कि जिले में कितने स्कूलों को शासन से मान्यता मिली हुई है और कितनी शालाएं धरातल पर चल रही हैं। सूत्रों ने बताया कि एक नाम से दो-दो शैक्षणिक संस्थान संचालित हो रहे हैं।
उक्त संबंध में सूत्रों ने आगे कहा कि निजि शैक्षणिक संस्थाओं के पास न तो प्रयोगशाला हैं और न ही खेल के मैदान, इसके बाद भी उनके संचालकों के द्वारा सीना तानकर अपनी शालाओं का संचालन किया जा रहा है। सूत्रों की मानें तो शाला के संचालकों के द्वारा गणवेश के लिये भी पालकों पर यह दबाव बनाया जाता है कि वे दुकान विशेष से ही इसे खरीदें।
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