इस अराजकता से सख्ती से निपटने की जरूरत

 

(प्रकाश भटनागर)
नागरिकता संशोधन विधेयक पर चल रहे बबाल के बीच जामिया में हुई घटनाएं बहुत-कुछ सोचने पर मजबूर कर रही हैं। दरअसल, इस सारी आगजनी और हिंसा का नागरिकता कानून के हालिया मुद्दे से कुछ लेना-देना नहीं है। यह हर कोई जानता है कि नया कानून (सीएए) और एनआरसी जैसी कवायद घुसपैठियों को देश से बाहर भेजने तथा मुस्लिम देशों में परेशान गैर-मुस्लिमों को भारतीय नागरिकता देने का प्रावधान हैं। सीएए के बाद शायद देश में बड़ी संख्या में ऐसे नागरिक हैं, जो पड़ोसी देशों से सालों पहले भारत आ गए हैं लेकिन उन्हें अब तक देश की नागरिकता नहीं मिली है। इनमें पाकिस्तान के सिंध से आए सिंधियों की बड़ी संख्या है। नए कानून में ऐसा कुछ भी नहीं है, जिसे मुस्लिम-विरोधी मानकर उस हायतौबा मचायी जाए। केन्द्र सरकार की इन कोशिशों को जिस तरह गलत रूप देकर प्रचारित किया जा रहा है, वह गंभीर संकेत है। एक तो यह कि मामला मौजूदा और ऐसे किसी भी अन्य देश-हित वाले कदम के लिए धमकी देने का है। धमकी यह कि केंद्र की किसी भी सख्ती का संगठित अपराध की तर्ज पर हिंसक विरोध किया जाएगा

दिल्ली में जामिया का आंदोलन किसी खतरनाक प्रयोग की तरह देखा जाना चाहिए। यह आजमाइश है इस बात की कि कैसे किसी मामले को गलत रूप में पेशकर उस पर कानून-व्यवस्था को तहस-नहस किया जा सकता है। मेरे मत में यह प्रयोग उस षड़यंत्रपूर्ण विरोध का पूर्वाभ्यास है, जो देश में समान नागरिक संहिता या जनसंख्या नियंत्रण कानून लाए जाने की सूरत में देशव्यापी स्तर पर लागू करने का प्रयास किया जाएगा। यह सत्तारूढ़ दल का मुख्य एजेंडा है। इसे चुनाव में घोषित रूप से प्रचारित भी किया गया था, लिहाजा, अगर सरकार को पूरा बहुमत हासिल हैं तो जाहिर है वो लोकतांत्रिक तरीके से ही अपने अधिकारों का उपयोग करते हुए अपना एजेंड़ा लागू करेगी। अब जिन्हें इससे विरोध है, उन्हें जनता के बीच जाकर ही अपना पक्ष समझाना चाहिए ना कि हिंसक आंदोलन इसका कोई उपाय हो सकता है। गौर से देखिए। कई हाथ इसमें दिखेंगे, लेकिन चेहरे बहुत कम नजर आ पाएंगे।

वह कौन है, जो सुबह से यह अफवाह फैला रहा है कि जामिया के प्रदर्शनकारी किसी छात्र की पुलिस कार्रवाई में मौत हो गयी है? सोशल मीडिया पर वे कौन सी बुद्धियां हैं, जो प्रचारित कर रही हैं कि प्रदर्शन को रोकने के नाम पर पुलिस हिंसक कदम उठा रही है? इस सबके बीच राजनीतिक दल इत्तेहाद-ए-मिल्लत काउंसिल के संस्थापक मौलाना तौकीर रजा खान ने नागरिकता संशोधन विधेयक के खिलाफ देश-भर में खून की नदियां बहाने की धमकी दे डाली है। जाहिर है कि खान ने नेपथ्य से मिले किसी बड़े समर्थन की दम पर ही इतनी गिरी हुई बात कही होगी। तो सवाल यह कि परदे के पीछे छिपे ये लोग कौन हैं? उत्तर है, वे, जिन्हें इस बात की पूरी आशंका है कि इस विधेयक के बाद उनके अवैध वोट बैंक का सफाया हो जाएगा। वे भी, जो इस बात से आशंकित हैं कि अनुच्छेद 370 को हटाने की ही तरह नागरिकता विधेयक को देश की एक बड़ी आबादी से मिले समर्थन से उनकी सियासी दुकानें बंद हो सकती हैं।

इससे मामला उन सुधारों तक भी जा सकता है, जिनके न होने के चलते अब तक वे धर्म तथा जाति के नाम की राजनीति सफलतापूर्वक संचालित करते चले आ रहे हैं। बड़े ही जतन के साथ नागरिकता विधेयक के असली प्रावधानों को दबाकर उनकी जगह इसे मुस्लिम-विरोधी बताने की साजिश को अंजाम दिया जा रहा है। सोचिए कि किसी देश में वहां के असली नागरिक के अधिकारों को संरक्षित रखने के लिए घुसपैठियों की पहचान करने में गलत क्या है? आपके पास आधार कार्ड है। पहचान के और भी आसन अन्य माध्यम हैं। यदि यह सब है तो फिर डर कैसा? और यदि यह नहीं है तो फिर किस मुंह से आप इस देश का नागरिक होने की बात कह सकते हैं? जो भी हो, इस कारगुजारी के पीछे जिनका दिमाग है, वे जनता के बीच भ्रम फैलाने में उस्ताद हैं। असम तथा पूर्वोत्तर के अन्य राज्यों में इस विधेयक को घुसपैठियों की संख्या बढ़ाने की कोशिश के रूप में सफलतापूर्वक प्रचारित कर दिया गया। इन राज्यों सहित पश्चिम बंगाल भी विधेयक को लेकर उफन रहा है।

हैरत यह कि बरसों-बरस तक इनराज्यों में बंगलादेशी घुसपैठिये आते रहे और उनके खिलाफ इस किस्म का कोई विरोध नहीं जताया गया। तो अब धर्म के आधार पर प्रताड़ित गैर-मुस्लिमों की मदद के प्रयास को भला किस तरह मुस्लिम-विरोधी कदम करार दे दिया गया है? यह कैसा जहर फिजा में फैला दिया गया है, जिसमें पड़ोसी तीन इस्लामी देशों के हिंदू, ईसाई, सिख, जैन या बौद्धों की मदद करने को साम्प्रदायिकता के चश्मे से देखा जा रहा है? जामिया के आंदोलन की शुरूआत और उसके हिंसक होने को देश के खिलाफ बहुत बड़े षड़यंत्र की संज्ञा देना कतई गलतनहीं होगा। एक बात और। यह इसलिए भी जरूरी है कि नागरिकता संशोधन विधेयक के समर्थन में पुरजोर आवाज नहीं उठाई जा रही है। यही वजह है कि मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री कमलनाथ ने कह दिया कि मध्यप्रदेश में इस विधेयक को लेकर कांग्रेस पार्टी की मंशा के अनुरूप निर्णय लेंगे। अब यह तो कमलनाथ भी जानते ही होंगे कि नागरिकता राज्यों का विषय नहीं है, इसमें करना वहीं पड़ेगा जो केन्द्र सरकार चाहती है। ताज्जुब करना चाहिए कि जनता द्वारा निर्वाचित एक सरकार का मुख्यमंत्री जनता से जुड़े बहुत अहम मसले को अपनी राजनीतिक प्रतिबद्धताओं की तराजू में मनमाने तरीके से तौल रहा है। जिस देश में घुसपैठियों की वकालत के लिए कानून हाथ में लेने जैसी नौबत सामने आए, उस देश को अराजकता और हिंसा फैलाने वाले तत्वों से सख्ती से निपटने की ही जरूरत है। अब ये षड़यंत्रकारी ताकतें डंडे की जुबान ही समझ पाएंगी।

(साई फीचर्स)