बिना टैक्सी परमिट कैसे चल रहे किराये के वाहन!

बिना टैक्सी परमिट कैसे चल रहे किराये के वाहन!

सरकारी विभागों में टैक्सी परमिट के रंग वाली नंबर प्लेट्स नहीं आती नज़र

(अय्यूब कुरैशी)

सिवनी (साई)। अगर किराये पर वाहन दिया जाता है तो उसका टैक्सी परमिट होना आवश्यक है। इसके लिये एक अदद चालक के पास भी व्यवसायिक चालक अनुज्ञा का होना आवश्यक है। बावजूद इसके जिले भर में न जाने कितने विभागों में इन नियम कायदों को धता बताते हुए वाहनों को संलग्न किया गया है।

परिवहन विभाग के सूत्रों ने समाचार एजेंसी ऑफ इंडिया को बताया कि जिले भर में सरकारी विभागों में संलग्न किये गये निज़ि वाहनों की अगर क्षेत्रीय परिवहन अधिकारी कार्यालय के द्वारा अगर जाँच करा ली जाये तो जिले में एक बड़ा घोटाला भी प्रकाश में आ सकता है।

सूत्रों ने बताया कि जब भी किसी वाहन को किसी भी सरकारी विभाग में संलग्न किया जाता है तो उस वाहन को सबसे पहले टैक्सी परमिट में पंजीकृत करवाना आवश्यक होता है। इतना ही नहीं उस वाहन को चलाने वाले चालक के पास कमर्शियल वाहन चलाने के लिये लाईसेंस और बिल्ला होना भी आवश्यक होता है।

सूत्रों की मानें तो जिले भर में सरकारी विभागों में अनुबंधित वाहनों में से सत्तर फीसदी से ज्यादा वाहनों के पास न तो टैक्सी परमिट है और न ही उसको चलाने वाले चालकों के पास कमर्शिलय ड्राईविंग लाईसेंस या बिल्ला ही है। ये सारे वाहन नियमों को बलाए ताक पर रखकर चल रहे हैं और इन्हें भुगतान भी नियमों के विरूद्ध ही किया जा रहा है।

इधर, जनजातीय कार्य विभाग के उच्च पदस्थ सूत्रों ने समाचार एजेंसी ऑफ इंडिया को बताया कि जनजातीय कार्य विभाग में सहायक आयुक्त के लिये वाहन क्रमाँक एमपी 22 सीए 3772 तीन सालों से अनुबंधित किया गया है, जबकि अनुबंधित वाहनों के लिये शर्त के अनुसार वाहन तीन साल पुराना नहीं होना चाहिये।

सूत्रों ने बताया कि इस तरह के अनेक निज़ि वाहन जिनकी नंबर प्लेट सफेद और नंबर काले रंग से लिखे हुए हैं, उनमें न तो सवारियों को ढोया जा सकता है और न ही इन वाहनों को सरकारी विभागों में अनुबंध के आधार पर लगाया जा सकता है, पर नियमों का माखौल उड़ाते हुए इस तरह के वाहन अनुबंध के आधार पर चल रहे हैं।

सूत्रों ने यह भी बताया कि क्षेत्रीय परिवहन अधिकारी कार्यालय में कितने चालकों के द्वारा व्यवसायिक वाहन चलाने के लिये अनुज्ञा और बिल्ला लिये गये हैं और जिले में कितने वाहन अनुबंधित चल रहे हैं, इसकी ही अगर जाँच करवा ली जाये तो दूध का दूध और पानी का पानी हो सकता है।

संवेदनशील जिलाधिकारी से जनापेक्षा है कि इस समय प्रदेश सरकार के द्वारा चलायी गयी भूमाफिया, शराब माफिया, रेत माफिया आदि के खिलाफ मुहिम के चलते जिले में भी कार्यवाहियों का दौर जारी है, इसी कड़ी में अगर इस तरह के वाहनों को अनुबंधित कराकर शासन को राजस्व की क्षति पहुँचाने वाले माफिया के खिलाफ भी कार्यवाही कर दी जाये तो शासन के राजस्व में बढ़ौत्तरी संभव है।