राष्ट्रद्रोह एवं राजद्रोह की धाराओं के अंतर को समझें : पंकज शर्मा

 

(ब्यूरो कार्यालय)

सिवनी (साई)। काँग्रेस के घोषणपत्र में राजद्रोह की धारा को समाप्त करने की बात कहे जाने के बाद सोशल मीडिया पर इसे गलत तरीके से प्रस्तुत किया जा रहा है। उक्ताशय की बात वरिष्ठ अधिवक्ता पंकज शर्मा के द्वारा समाचार एजेंसी ऑफ इंडिया से चर्चा के दौरान कही गयी।

उन्होंने बताया कि धारा 121 एवं 122 राष्ट्रद्रोह की धाराएं हैं, जिनमें उल्लेखित बातों का लब्बो लुआब यह है कि भारत के खिलाफ युद्ध करना या षड्यंत्र रचना है। जबकि काँग्रेस के द्वारा अपने घोषणा पत्र में धारा 124ए का उल्लेख किया गया है जिसका अर्थ है कि विधि द्वारा चुनी गयी सरकार की किसी नीति की खिलाफत करने पर इस धारा का प्रयोग होता है।

वरिष्ठ अधिवक्ता पंकज शर्मा ने आगे कहा कि लॉ कमीशन के अलावा माननीय सर्वोच्च न्यायालय के अनेक फैसलों में भी इस धारा के खिलाफ व्यवस्थाएं दी हैं। इस धारा के समाप्त होने से राईट टू स्पीच अर्थात किसी भी नागरिक को सरकार की नीति के खिलाफ अपनी बात रखने की आजादी मिल जायेगी।

उन्होंने बताया कि धारा 124(ए) ब्रितानी हुकूमत द्वारा 135 साल पहले सन 1870 में संविधान में जोड़ी गयी थी क्योंकि उस समय भारतीय आंदोलनकारी, क्रांतिकारी अंग्रेजी हुकूमत के खिलाफ लिखते, बोलते और आंदोलन करके अपनी आवाज बुलंद करते थे। इन सबसे निपटने के लिये अंग्रेजो ने इस धारा को कानून में जोड़ा ताकि सरकार की गलत नीतियों के खिलाफ कोई बोल न सके और अगर बोले तो उस पर राजद्रोह का मुकदमा कायम करके जेल में डाला जा सके।

पंकज शर्मा ने आगे कहा कि यहाँ इस बात को समझ लेना आवश्यक है कि धारा 124 (ए) राजद्रोह की धारा है न कि राष्ट्रद्रोह की। अर्थात अगर आप सरकार की नीतियों के खिलाफ बोलेंगे, लिखेंगे तो ये धारा आपके ऊपर दायर की जायेगी जबकि अगर आप देश के खिलाफ लिखेंगे, बोलेंगे तो उसके लिये धारा 121 के अपराधी माने जायेंगे।

उन्होंने कहा कि चूँकि अंग्रेजों को अपनी सत्ता बचाने के लिये ये धारा कानून में जोड़ना आवश्यक था क्योंकि उन्हें देश से नहीं अपनी सत्ता से मतलब था। आज इस कानून का लगातार दुरुपयोग हो रहा है वर्तमान में कोई भी सरकार हो उसके खिलाफ बोलने वाले पर धारा 124(ए) लगाकर व्यक्ति की आवाज शांत कर दी जाती है जो कि सरासर गलत है। अगर आम नागरिक सरकार के गलत कामो का विरोध न कर सके तो सरकार कुछ भी गलत करती रहेगी और जनता आवाज उठाने में डरती रहेगी।

पंकज शर्मा का कहना है कि आँकड़ों के हिसाब से अगर देखा जाये तो 2014 से 2016 तक धारा 124(ए) के आरोप में 179 लोगो को गिरफ्तार किया गया परंतु महज 02 लोगों पर इस आरोप को सिद्ध किया जा सका है।

उन्होंने कहा कि अब काँग्रेस ने अपने घोषणा पत्र में यह वादा किया है कि इस धारा को खत्म किया जायेगा और व्यक्तियों को स्वतंत्रता दी जायेगी कि वो सरकार की गलत नीतियों के खिलाफ आवाज उठा सकते हैं। उन्हें राजद्रोह का अपराधी नहीं माना जायेगा। यह धारा समाप्त करना अभिव्यक्ति की आजादी के लिये जरूरी है।

क्या है धारा 124 ए : आईपीसी की धारा 124ए कहती है कि यदि कोई भी व्यक्ति भारत की सरकार के विरोध में सार्वजनिक रूप से ऐसी किसी गतिविधि को अंजाम देता है जिससे सरकार के सामने संकट उत्पन्न हो सकता है तो उसे उम्र कैद तक की सजा दी जा सकती है। इन गतिविधियों का समर्थन करने या प्रचार – प्रसार करने पर भी किसी को देशद्रोह का आरोपी मान लिया जायेगा।

राजद्रोह बनाम देशद्रोह : भारतीय दण्ड संहिता की धारा 124ए में राजद्रोह से संबंधित कृत्यों का उल्लेख है। दरअसल, ब्रिटेन में इस तरह के कानून को राजद्रोह ही कहा जाता था, इसलिये भारत में भी इसे इसी रूप में समझा गया। यद्यपि राजद्रोह और देशद्रोह या राष्ट्रद्रोह शब्दों में पर्याप्त अर्थ भिन्नता है किंतु इस कानून के अंतर्गत दोनों को एक बताने की कोशिश अक्सर की जाती रही है, जो कि भ्रामक है।

राजद्रोह का आशय विधि द्वारा स्थापित सरकार, नीति तथा प्रशासनिक अधिकारियों के विरुद्ध असंतोष की भावना फैलाने से है, जबकि देशद्रोह राष्ट्र के प्रति असम्मान, राष्ट्र की एकता – अखण्डता के विरुद्ध किया गया कार्य तथा राष्ट्रीय संस्कृति और विरासत को पूर्णतया नकारना है। अतः राजद्रोह शासन के खिलाफ किया गया आचरण है, जबकि देशद्रोह राष्ट्र के खिलाफ।

उन्होंने कहा कि नरेंद्र मोदी ने उनकी सरकार के खिलाफ नारे लगाने वालों के विरुद्ध राजद्रोह के झूठे मुकदमे लगवाकर सामाजिक कार्यकर्त्ताओं को डराने – धमकाने का प्रयास किया है। आगे से इस धारा 124ए का दुरुपयोग न हो इसलिये इसकी समीक्षा करने का निर्णय काँग्रेस पार्टी ने लिया है।

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