दुर्गंध मारते मूत्रालय और बेबस पालिका

 

(शरद खरे)

सिवनी शहर के व्यवस्थित विकास की जवाबदेही निश्चित तौर पर नगर पालिका के कंधों पर ही आहूत होती है। शहर में कहाँ बाग बगीचे हों, कहाँ सड़क कैसी हो, कहाँ पानी की व्यवस्था हो, कहाँ सार्वजनिक शौचालय हों या मूत्रालय हों, इस बारे में सोचना और उसे अमली जामा पहनाने का काम निश्चित तौर पर नगर पालिका का ही है।

सिवनी शहर की भौगोलिक सीमा नागपुर नाका से जबलपुर नाका तक लगभग तीन किलोमीटर और छिंदवाड़ा नाका से कबीर वार्ड तक लगभग चार किलोमीटर मानी जा सकती है। इतने छोटे से शहर जिसमें 24 वार्डों को सम्हालने में नगर पालिका को पसीना आता दिखता है।

शहर में सार्वजनिक शौचालयों की तादाद कितनी है यह बात शायद ही कोई पार्षद या सफाई समिति के सभापति जानते हों। इतना ही नहीं सार्वजनिक मूत्रालयों के मामले में तो पालिका पूरी तरह उदासीन ही नज़र आती है। पालिका का अच्छा खासा बजट है। हर साल हजारों लीटर फिनाईल, भारी तादाद में ब्लीचिंग पाउडर, चूना आदि की खरीद होने के बाद भी सार्वजनिक शौचालय और मूत्रालय सड़ांध ही मारते नज़र आते हैं।

शहर में गिनती के आधा दर्जन ही सार्वजनिक मूत्रालय अस्तित्व में होंगे, वे भी जर्जर हालत में। इन मूत्रालयों के आसपास से लोग गुजरते समय नाक पर कपड़ा अवश्य रखे दिख जाते हैं। पता नहीं पालिका के द्वारा खरीदी गयी फिनायल, ब्लीचिंग पाउडर या चूना कहाँ जाता है?

शहर में सार्वजनिक मूत्रालयों के अभाव में जहाँ-तहाँ दीवारों पर लोग मूत्र त्याग करते दिख जाते हैं। लघु शंका और दीर्घ शंका लोगों की नैसर्गिक आवश्यकता है, इस बात से इंकार नहीं किया जा सकता है। बड़े शहरों में प्रत्येक आधा किलोमीटर पर एक मूत्रालय दिख जाता है, पर सिवनी में इसकी कमी बेहद खलती ही दिखती है।

सिवनी में भारत संचार निगम लिमिटेड के बाजू में जनपद पंचायत के कार्यालय की चारदीवारी से सटी सड़क को तो लोग बकायदा पेशाब वाली गली के नाम से पहचानने लगे हैं। क्षेत्र में एक भी मूत्रालय के न होने से इस सड़क के दोनों ओर लोग मूत्र त्याग करते दिख जाते हैं। सड़क पर दिन-रात गंदगी पसरी रहती है।

इसके अलावा कोतवाली के सामने शाला का मैदान जिसे लोग अब दशहरा मैदान भी कहने लगे हैं में भी दिन रात लोग लघुशंका करते नज़र आते हैं। यह इसलिये है क्योंकि नगर पालिका के द्वारा शहर के विकास के लिये कोई ठोस कार्ययोजना ही अब तक नहीं बनायी गयी है।

लगता है नगर पालिका परिषद किसी आवश्यक काम में उलझी है तभी उसे गंदगी दिखायी नहीं देती है। जिलाधिकारी प्रवीण सिंह के द्वारा समय सीमा की बैठकों में नगर पालिका को अनेक बार निर्देशित किये जाने के बाद भी इसका कोई असर नगर पालिका पर होता दिख नहीं रहा है।