इसे देख न कुछ कुशल रहेगा न मंगल

 

स्टोरी- कुछ वक्त पहले एक वीडियो आया था जिसमें पैराग्लाइडिंग करने आया एक युवक खुद को इस बात के लिए गालियां दे रहा था कि आखिर वह वहां गया ही क्यों। साथ ही वह अपने साथ मौजूद गाइड से बार-बार गुुजारिश कर रहा था कि,‘भाई लैंड करा दे, 100-200 ज्यादा ले लियो!फिल्म सब कुशल मंगल हैदेखते हुए आपको सबसे ज्यादा याद इसी बंदे की याद आती है। समझ तो गए ही होंगे! धरपकड़ विवाह पर जबरिया जोड़ीके बाद हाल-फिलहाल में बनी यह दूसरी फिल्म है।

सब कुशल मंगलकहानी है झारखंड स्थित कर्नलगंज में रहने वाली मंदिरा (रीवा किशन) की, जिसकी शादी को लेकर उसका परिवार बहुत परेशान है। जहां भी बात चलाई जाती है, दहेज की भारी मांग के चलते अड़चन आ जाती है। मंदिरा का परिवार इलाके के बाहुबलि नेता बाबा भंडारी (अक्षय खन्ना) के पास जाता है। बाबा वादा करते हैं कि वह बहुत जल्द मंदिरा की शादी करवा देंगे। इस शादी के लिए वह चुनते हैं पप्पू मिश्रा (प्रियांक शर्मा) को जिसके साथ उन्हें पुराना हिसाब चुकता करना है। दरअसल पप्पू मिश्रा एक मशहूर टीवी शो का होस्ट है जिसने बाबा भंडारी के धरपकड़ विवाह कराने पर एक खास रिपोर्ट पेश की थी। इसका बदला लेने के लिए त्योहार मनाने कर्नलगंज आए पप्पू को बाबा के आदमी अगवा कर लेते हैं। इस बीच जब मंदिरा को पता लगता है कि उसकी शादी पप्पू से करवाई जा रही है, तो वह मन ही मन खुश हो जाती है क्योंकि वह कॉलेज के दिनों से ही उसे पसंद करती है। पर फिर एक गलतफहमी के चलते उसका दिल टूट जाता है और वह पप्पू को कैद से भगा देती है। उधर एक दिन जब बाबा की नजर मंदिरा पर पड़ती है, तो वह उसे दिल दे बैठते हैं। वह तय करते हैं कि अब वह खुद उससे शादी करेंगे।

एक्टिंग की बात करें तो सबसे दमदार काम रहा अक्षय खन्ना का। कॉमिक विलेन के अंदाज में वह काफी सहज लगे हैं। रीवा कुछ दृश्यों में तो आत्मविश्वास से भरी लगी हैं, पर बाकी जगह वह भी प्रभावहीन ही रहीं। प्रियांक शर्मा पूरी फिल्म में भावहीन रहे। सुप्रिया पाठक, राकेश बेदी, सतीश कौशिक आदि कलाकारों का काम ठीकठाक ही रहा। फिल्म के कलाकार कई जगह ओवरएक्टिंग के शिकार भी नजर आए। इस फिल्म के साथ करन विश्वनाथ कश्यप पहली बार निर्देशन में उतरे हैं। इसकी पटकथा उन्होंने बिजेंद्र काला के साथ मिलकर लिखी है। संवाद बिजेंद्र काला ने लिखे हैं जो काफी हद तक स्थिति संभालने की कोशिश करते हैं। फिल्म झारखंड का स्थानीय लहजा पकड़ने की अच्छी कोशिश करती है। हर्षित सक्सेना का संगीत निराश करता है क्योंकि एक भी गीत याद रखने लायक नहीं है। सचिन के. कृष्ण की सिनेमेटोग्राफी भी औसत ही है।

(साई फीचर्स)

 

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