परिषद का कार्यकाल समाप्त, नहीं हुई जाँच पूरी!

 

सदर कॉम्प्लेक्स की दुकानों में उठी थी भ्रष्टाचार की गूंज

(अय्यूब कुरैशी)

सिवनी (साई)। नगर पालिका के बुधवारी तालाब और सदर कॉम्प्लेक्स में दुकान आवंटन को लेकर तत्कालीन मुख्य नगर पालिका अधिकारी द्वारा बनायी गयी जाँच समिति इस मामले की जाँच लगभग साढ़े साल में भी पूरी नहीं कर पायी है। मजे की बात यह है कि अब इस परिषद का कार्यकाल भी पूरा हो चुका है।

ज्ञातव्य है कि नगर पालिका के बुधवारी तालाब कॉम्प्लेक्स और सदर कॉम्प्लेक्स में दुकान आवंटन की गुत्थी अभी भी सुलझ नहीं सकी है। इस मामले में 2007 में एक प्रस्ताव के जरिये कुछ निर्णय लिये गये थे। यह प्रस्ताव विधि संगत था अथवा नहीं, इस बारे में भी अभी संशय बना हुआ है।

पालिका के सूत्रों ने समाचार एजेंसी ऑफ इंडिया को बताया कि श्रीमति पार्वति जंघेला के अध्यक्षीय कार्यकाल में 28 फरवरी 2007 को संपन्न हुई एक बैठक में पालिका की 49 दुकानों को वर्ष 1987 से लगभग 20 से 25 साल पहले बना हुआ दर्शाया गया था अर्थात ये दुकानें 1962 से 1967 के बीच निर्मित हुईं थीं।

सूत्रों का कहना है कि इस बैठक में पालिका के द्वारा प्रथम तल पर किसी तरह के निर्माण का नहीं कराया जाना दर्शाया गया था। 2007 में आहूत इस बैठक में पालिका के इस कॉम्प्लेक्स में प्रथम तल पर जाने के लिये किसी तरह की व्यवस्था न होने का उल्लेख भी किया गया है।

यहाँ यक्ष प्रश्न यही है कि क्या जिस समय इन दुकानों का निर्माण कराया गया था उस समय के नक्शे में प्रथम तल पर जाने के लिये किसी तरह की व्यवस्था या वैकल्पिक व्यवस्था करना मुनासिब नहीं समझा गया था? इस बैठक में प्रथम तल पर दुकानें बनाने और उन्हें बेचने में (उपरोक्त परिस्थितियों के अनुसार) कठिनाई का जिक्र भी किया गया था।

बहरहाल, सूत्रों का कहना है कि वर्ष 2016 में मई माह में राजस्व समिति की एक बैठक में पाँच हजार से ज्यादा बकायादारों से बकाया राशि वसूले जाने का उल्लेख करते हुए प्रस्ताव पारित किया गया था। इस बैठक के उपरांत जिन दुकानदारों पर पाँच हजार रुपये से ज्यादा राशि बकाया थी उनसे राशि की वसूली आरंभ कर दी गयी थी।

उल्लेखनीय होगा कि उस दौरान समाचार एजेंसी ऑफ इंडिया और दैनिक हिन्द गजट के द्वारा जैसे ही इस मामले का प्रसारण और प्रकाशन आरंभ किया गया था, उसके बाद ही मुख्य नगर पालिका अधिकारी किशन सिंह ठाकुर के द्वारा आनन – फानन एक अगस्त 2016 को अध्यक्ष श्रीमति आरती शुक्ला के 28 जुलाई के पत्र का हवाला देते हुए पाँच सदस्यीय समिति का गठन कर निर्धारित समयावधि में जाँच करने के निर्देश दिये गये थे।

सीएमओ द्वारा बनायी गयी जाँच समिति में किसी भी सरकारी नुमाईंदों को न रखकर महज पाँच पार्षदों को इसका सदस्य बनाया गया था। इसके एक सदस्य पार्षद शफीक खान को समिति का अध्यक्ष, मनुचंद सोनी, अवधेश पिंकी त्रिवेदी, श्रीमति चंद्रकांता महोबिया एवं श्रीमति सबा वाहिद खान को बनाया गया था।

विडंबना ही कही जायेगी कि इस समिति के गठन के साढ़े साल होने को आ रहे हैं और समिति के द्वारा दुकानों के दस्तावेजों की जाँच में क्या पाया गया? क्या प्रतिवेदन मुख्य नगर पालिका अधिकारी को सौंपा गया है? इस मामले में अपने 28 जुलाई के पत्र पर दोबारा अध्यक्ष के द्वारा क्या पत्राचार किया गया है, की जानकारी पालिका में भी किसी को नहीं है। कहा जा रहा है कि इस मामले को ठण्डे बस्ते के हवाले कर दिया गया है!

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