किसके भरोसे है, राजस्व अभिलेखागार की सुरक्षा!

 

बिल्ली बजट आना बंद हुआ 35 साल से, अब चूहे और दीमकों का है राज!

(अखिलेश दुबे)

सिवनी (साई)। जिला कलेक्टर कार्यालय के परिसर में स्थित जिला राजस्व अभिलेखागार की सुरक्षा किसके हवाले है, यह यक्ष प्रश्न आज भी अनुत्तरित है। अभिलेखागार की सुरक्षा के लिये सुरक्षा कर्मी या चौकीदार तो तैनात होंगे पर दीमक और चूहों से इन्हें कैसे बचाया जाये यह कठिन चुनौति से कम नहीं है।

जिला कलेक्टर कार्यालय के उच्च पदस्थ सूत्रों ने समाचार एजेंसी ऑफ इंडिया को बताया कि जिला राजस्व अभिलेखागार में दशकों पुराने दस्तावेजों को संधारित कर रखा गया है। यहाँ आज़ादी से पहले के बेशकीमति दस्तावेज भी मौजूद हैं। इस अभिलेखागार में बहुत सारा रिकॉर्ड तो वर्षों से संधारण में बरती गयी लापरवाही की भेंट चढ़ चुका है।

सूत्रों ने आश्चर्य जनक जानकारी देते हुए बताया कि चार दशक पूर्व तक अभिलेखागार में रखे दस्तावेजों को चूहों से बचाने के लिये राज्य शासन के द्वारा बिल्ली बजट दिया जाता था, जिससे यहाँ बिल्लियां पाली जाती थीं। इस बजट से बिल्लियों को दूध पिलाया जाता था। वित्तीय वर्ष 1984 – 1985 के बाद से बिल्ली बजट भी सरकार के द्वारा बंद कर दिया गया है।

सूत्रों ने कहा कि 1985 के बाद राजस्व अभिलेखागार में रखे रिकॉर्ड को चूहों और दीमक से बचाने के लिये किसी तरह के पुख्ता इंतजामात नहीं होने के कारण पुराना रिकॉर्ड ज़र्जर होकर बुरी तरह क्षतिग्रस्त भी हो चुका है। इस रिकॉर्ड का डिजीटलाईजेशन किया जाकर इसे सुरक्षित रखा जा सकता है।

सूत्रों ने बताया कि जिला राजस्व अभिलेखागार में रखे रिकॉर्ड को यहाँ बहुतायत में पाये जाने वाले चूहे कुतर रहे हैं। चूहों को मारने के लिये चूहामार दवा का भोगमान कौन भोगे! इस बात के चलते यहाँ चूहों की तादाद भी बढ़ती ही जा रही है। इसके अलावा रिकॉर्ड रूम को दीमक से मुक्त कराने के लिये दीमक रोधी दवाओं (पेस्ट कंट्रोल) का उपयोग भी समय – समय पर किया जाना चाहिये।

सूत्रों ने कहा कि आज की पीढ़ी को यह बात शायद ही पता हो कि राजस्व रिकॉर्ड को चूहों से बचाने के लिये लगभग साढ़े तीन दशक पहले तक बिल्ली पालकर उन्हें दूध पिलाने के लिये बिल्ली बजट की मद में भी राशि का आवंटन किया जाता था।