लुट रहे पालक, नहीं है किसी को सरोकार
(अखिलेश दुबे)
सिवनी (साई)। नया शिक्षा सत्र आरंभ हो गया है। निजि शालाओं के द्वारा कोर्स में शामिल कॉपी – किताबों की फेहरिस्त बच्चों को थमा दी गयी है। एक मोटे अनुमान के अनुसार माध्यमिक शाला में प्रति बच्चा तीन हजार रूपये की कॉपी – किताबें खरीदी जा रही हैं पालकों के द्वारा।
एक निजि शिक्षण संस्थान के संचालक ने पहचान उजागर न करने की शर्त पर समाचार एजेंसी ऑफ इंडिया को बताया कि अगर किसी शाला में पाँच सौ बच्चे हैं तो दो हजार रूपये औसत की कॉपी किताबों के हिसाब से दस लाख रूपये की किताबें उस शिक्षण संस्थान में अध्ययन करने वाले विद्यार्थियों के द्वारा खरीदी जा रही हैं।
जिले में अनगिनत निजि शिक्षण संस्थान संचालित हो रहे हैं। इस लिहाज़ से जिले भर में करोड़ों रूपये की कॉपी किताबों की खरीद अप्रैल माह में कर ली गयी है। उक्त संचालक का कहना था कि स्टेशनर्स का संचालन करने वालों के द्वारा शाला को मोटा कमीशन भी दिया जाता है जिसके चलते शालाओं के संचालकों के द्वारा किताब विक्रेताओं को अगले शैक्षणिक सत्र में प्रयुक्त होने वाली कॉपी – किताबों की फेहरिस्त दिसंबर माह में ही दे दी जाती है ताकि वे दो – तीन महिनों में इनकी व्यवस्था कर सकें।
उक्त संचालक का कहना था कि किसी भी स्टेशनरी की दुकान के द्वारा बच्चों या पालकों को कॉपी – किताब का पक्का बिल नहीं दिया जाता है, जिससे इस बात की आशंका बलवती हो जाती है कि उक्त दुकानों के संचालकों के द्वारा हर साल शासन को बड़ी तादाद में विक्रय कर आदि की चपत लगायी जाती है।
उल्लेखनीय होगा कि राज्य शिक्षा केंद्र के द्वारा चार पाँच वर्षों से इस तरह का आदेश जारी किया जा रहा है, जिसमें साफ कहा गया है कि हर शाला में गणवेश और कोर्स की किताबों की कम से कम आठ दुकानें एक शहर में होना चाहिये, जिसकी नियमित जाँच जिला प्रशासन द्वारा की जायेगी।
विडंबना ही कही जायेगी कि सिवनी जिले में चार पाँच सालों से अब तक जिला प्रशासन के द्वारा किसी भी स्टेशनरी की दुकान या गणवेश मिलने की दुकानों का निरीक्षण नहीं किया गया है। बताया जाता है कि नये शैक्षणिक सत्र के आरंभ होते ही शालाओं में विद्यार्थियों को दिये जाने वाले प्रत्यक्ष या परोक्ष दबाव के चलते अस्सी फीसदी पालकों के द्वारा कॉपी – किताबें खरीद ली गयी हैं।
हाल ही में जिला कलेक्टर प्रवीण सिंह के द्वारा भी एक सख्त आदेश जारी किया गया है। यह भी विडंबना ही कही जायेगी कि इस आदेश के जारी होने के लगभग एक सप्ताह बाद भी जिला शिक्षा अधिकारी कार्यालय को इस बात की फुर्सत नहीं मिल पायी है कि वह एक दल का गठन कर शालाओं या कॉपी – पुस्तक विक्रेताओं या गणवेश विक्रताओं के प्रतिष्ठानों की जाँच करवा सके।