विकास के नाम पर अवैध कार्य!

 

 

(शरद खरे)

सिवनी जिले में अजीब चलन चल पड़ा है। जिले में नियमों को तिलांजलि देते हुए काम संपादित हो रहे हैं और जब इसका प्रतिकार होता है तो अधिकारी विकास की दुहाई देने लग जाते हैं। अगर विकास के कार्यों के लिये नियमों को ताक पर रखना है तो बेहतर होगा कि नियमों को शिथिल करने के आदेश जारी करवा दिये जायें।

जिले के आदिवासी बाहुल्य घंसौर तहसील में इस तरह के कार्य सबसे ज्यादा होते दिख रहे हैं। घंसौर में देश के मशहूर उद्योगपति गौतम थापर के स्वामित्व वाले अवंथा समूह के सहयोगी प्रतिष्ठान मेसर्स झाबुआ पॉवर लिमिटेड के द्वारा कोयला आधारित एक पॉवर प्लांट की स्थापना की जा रही है। स्थापना का काम अब तक पूरा हो सका है अथवा नहीं इसकी आधिकारिक पुष्टि अब तक नहीं हो पायी है।

इस पॉवर प्लांट की पहली जनसुनवायी में से लेकर आज तक न जाने कितनी विसंगतियां प्रकाश में आने के बाद भी प्रशासन के द्वारा किसी तरह की कार्यवाही न किया जाना आश्चर्यजनक ही माना जायेगा। बरगी बाँध से पानी भी लिया जा रहा है संयंत्र प्रबंधन के द्वारा। बताते हैं यह भी नियमों को बलाए ताक पर रखकर।

इतना ही नहीं संयंत्र के लिये कोयले की आपूर्ति भारी वाहनों से निरंतर जारी है। जिला पंचायत उपाध्यक्ष चंद्रशेखर चतुर्वेदी के द्वारा यह मामला जोर-शोर से उठाया गया किन्तु इस मामले में प्रशासन के द्वारा बार-बार दिशा निर्देश जारी करने के, कुछ भी नहीं किया गया है। आज भी नियमों को बलाए ताक पर रखकर पुलिस, आरटीओ, खनिज विभाग एवं स्थानीय प्रशासन की नाक के नीचे नियमों को तोड़ने का कार्य बदस्तूर जारी है।

इसके अलावा घंसौर क्षेत्र में चल रहे रेल्वे के अमान परिवर्तन के कार्य में भी नियम कायदे हवा में उड़ाये जा रहे हैं। क्षेत्र के अधिकांश इलाकों से बिना किसी अनुमति के मुरम खोदने का कार्य जारी है। समाचार पत्रों के द्वारा सचित्र खबरों का प्रकाशन भी प्रशासन के लिये शायद पर्याप्त प्रमाण की श्रेणी में नहीं आता होगा तभी तो अब तक खनिज, परिवहन, पुलिस और स्थानीय प्रशासन के द्वारा किसी तरह की मुकम्मल कार्यवाही को अंजाम नहीं दिया गया है।

किसी अधिकारी या जनप्रतिनिधि से जब भी बात की जाती है तो वे विकास की आड़ लेकर मामले को शांत करवा देते हैं। हमारा कहना महज इतना ही है कि अगर भारत गणराज्य या प्रदेश सरकार के द्वारा बनाये गये नियमों को इस तरह के विकास के लिये तोड़ना जरूरी है तो नियमों को शिथिल करने के आदेश जारी कर उसे सार्वजनिक कर दिया जाये। अगर नियम शिथिल नहीं हैं और नियमों को तोड़ा जा रहा है तो निश्चित तौर पर यह कानूनन जुर्म है। इस पर प्रशासन की चुप्पी भी अनेक तरह के संदेहों को जन्म देती है।

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