वर्चस्व की जंग का अखाड़ा बना बाहुबली चौक!

 

(शरद खरे)

कमोबेश एक साल से शांत रहने वाले बाहुबली चौराहा पर असामाजिक तत्वों की भीड़ का बढ़ना जारी है। बाहुबली चौराहा वह स्थान है जहाँ से पुलिस अधीक्षक निवास, जिला कलेक्टर निवास, पूर्व विधायकों और वर्तमान विधायक का निवास चंद मीटर के फासले पर तो कंट्रोल रूम भी चंद मीटर दूर ही है। चौराहे पर आये दिन होने वाले विवादों का सीधा असर यहाँ के व्यापारियों के व्यवसाय पर पड़ता दिख रहा है। सभ्रांत घरों की महिलाएं भी अब चौराहे की ओर रूख करने से गुरेज़ ही करती नज़र आ रहीं हैं। बीते सात दिनों में तीन बार यहाँ लाठियां चलना पुलिस की कार्यप्रणाली पर प्रश्न चिन्ह लगाने के लिये पर्याप्त माना जा सकता है।

सड़ांध मारती पुलिसिंग के चलते सिवनी में जरायमपेशा लोगों ने सिर उठाया और आज भी उनका ताण्डव बदस्तूर जारी है। चौराहे पर आये दिन होने वाले विवादों के चलते यहाँ के व्यवसायी भी आजिज आ चुके हैं। बार-बार पुलिस में शिकायत करने का नतीज़ा सिफर ही समझ में आता हैै। पुलिस के सामने भी अगर लड़ाई-झगड़ा होता है या बिना किसी काम के युवाओं की टोली खड़ी होकर आने-जाने वालों पर फब्तियां कसती है तो पुलिस किसी से पूछने की जहमत नहीं उठाती है कि आखिर वे युवा बेकार में चौराहे पर खड़े होकर समय क्यों व्यतीत कर रहे हैं।

लंबे समय से एक बात अवश्य ही ध्यान देने योेग्य सामने आ रही है कि पुलिस के द्वारा प्रत्येक मामले में फरियादी (शिकायत कर्त्ता) को ही सबसे पहले ढूंढा जाता है। जाहिर है कि व्यापार करने वाले किसी पचड़े में फंसना नहीं चाहते, वे मूलतः सीधे साधे लोग होते हैं और पुलिस थाना, कोर्ट कचहरी का चक्कर काटने से बचना ही चाहते हैं जिसके चलते, इस तरह के झगड़ों की शिकायतें नहीं हो पाती हैं और अपराधी किस्म के लोगों के हौसले बुलंदी पर आने लगे हैं।

याद पड़ता है कि लगभग डेढ़ दो दशकों पहले पुलिस के द्वारा बकायदा गुण्डा विरोधी अभियान चलाया जाता था। आज के समय में भोपाल, इंदौर, जबलपुर आदि शहरों में इस तरह के अभियान की जानकारियां मिलती हैं किन्तु सिवनी में गुण्डों के खिलाफ कार्यवाही करने से पुलिस को अब तक गुरेज़ ही दिखा है।

बाहुबली चौराहे पर शहर के अनेक अपराधी किस्म के लोग दिन-रात घूमते दिख जाते हैं। पुलिस को छोड़कर सभी को ये दिखायी पड़ जाते हैं जो उत्पात मचाते रहते हैं। पता नहीं पुलिस को इस तरह की फितरत वाले तत्वों से क्या हमदर्दी है जो इनके खिलाफ कार्यवाही से बचा ही जाता है। आज युवा हो रही पीढ़ी के पास खेल कूद के लिये वक्त नहीं है। इसके लिये पालक भी काफी हद तक जिम्मेदार माने जा सकते हैं। दरअसल सिवनी में खेल के मैदानों के व्यवसायीकरण और कांक्रीट जंगलों के कारण अब मोहल्लों में भी खेल के मैदानों की कमी के चलते युवा आज खेल की बजाय, इस तरह की गतिविधियों में ज्यादा संलिप्त दिखायी दे रहा है।

आज का युवा जुआ, सट्टा, क्रिकेट सट्टा, सूदखोरी आदि के जरिये कम समय में ज्यादा लाभ कमाने के चक्कर में उलझा दिख रहा है। शालाओं में भी विद्यार्थियों के द्वारा चोरी छुपे मोबाईल लेकर जाने की घटनाएं आम हो चुकी हैं। संचार क्रांति के इस युग में मोबाईल पर पसरी अश्लीलता के चलते युवाओें का पथभ्रष्ट होना स्वाभाविक ही है। एक समय था जब सांसद, विधायक और अन्य नेता, युवाओं के आदर्श हुआ करते थे। कालांतर में युवाओं के आदर्श रूपहले पर्दे के गुण्डे की छवि वाले अभिनेता हो गये।

आज हमें ही विचार करना होगा। आज हर पालक को विचार करना होगा कि वे आने वाली पीढ़ी को किस दिशा में जाने की इजाजत दे रहे हैं। बच्चा किसी की बात माने न माने पर अपने माता-पिता की बात उसके लिये ब्रह्म वाक्य ही रहती है। आज हमें अपने घरों के अंदर के परिवेश को देखने की भी अत्यंत आवश्यकता है। आज घरों के अंदर का माहौल हमें इस तरह से रखना आवश्यक है कि बच्चा गलत रास्ते की बजाय सही मार्ग के अनुसरण के लिये मजबूर हो जाये।

वैसे देखा जाये तो इंटरनेट पर फैली भड़काऊ सामग्री और टीवी पर आने वाले सीरियल के कारण भी समाज की वर्जनाएं तार-तार हो चुकी हैं। सारा का सारा दोष पुलिस पर मढ़ना उचित नहीं है। इसके लिये हमें भी अपने गिरेबान में झाँकने की आवश्यकता है। हम अपनी आँख बंद कर शुतुरमुर्ग तो बन सकते हैं किन्तु सारी दुनिया हमारे हाव भाव, भंगिमाएं तो देख ही रही है।

बहरहाल, अस्सी के दशक से बाहुबली चौक पर विचरण करना युवाओं का प्यारा शगल रहा है। हम भी इसी के अंग रहे हैं, किन्तु उस दौर में आँखों की शर्म मरी नहीं थी। अपने वरिष्ठ जनों को देखकर उस समय का युवा चौराहे से हट जाता था। अब तो मानो आँखों का पानी ही मर चुका है। युवाओं की टोली दिन भर बीड़ी सिगरेट के छल्ले उड़ाते देखी जा सकती है।

बाहुबली चौराहे पर लगातार ही घट रही घटनाओं के चलते अब चौराहे पर एक पुलिस चौकी की आवश्यकता जबर्दस्त तरीके से महसूस की जाने लगी है। जिला कलेक्टर प्रवीण सिंह एवं जिला पुलिस अधीक्षक कुमार प्रतीक की कार्यप्रणाली बेहद सुलझी और विकास की सोच वाली दिख रही है।

इधर, बाहुबली चौराहा लगभग एक साल से युवाओं के बीच वर्चस्व की जंग का अड्डा बनता दिख रहा है। यहाँ गुटीय संघर्ष बेहद ज्यादा होते नज़र आ रहे हैं। बीते दिनों यहाँ जिस तरह से लट्ठ बजाये गये वे सभ्य समाज में किसी को शायद ही स्वीकार्य हों। देर रात बेकार घूमने वालों से पूछताछ करने का रिवाज तो मानो पुलिस ने बंद ही कर दिया है। जिला कलेक्टर एवं जिला पुलिस अधीक्षक से जनापेक्षा है कि बाहुबली चौराहे पर व्याप्त गुण्डागर्दी पर अंकुश लगाने की दिशा में ठोस पहल सुनिश्चित करें।