शीत ऋतु में रहें तंदुरुस्त

 

(डॉ. जगदीश पंचोली)

सर्दी के मौसम में रोग प्रतिरोधात्मक शक्तियों का विकास किया जाता है। इस मौसम में खानपान और वर्जिश पर ध्यान दिए जाने का कारण केवल यही है कि सर्द मौसम में जितनी कैलोरी खाई जाती है उतनी ही पचाई भी जा सकती है। आयुर्वेद में सर्दियों से बचाव के लिए रहन-सहन और खान-पान में बदलाव करने के लिए कई सूत्र कहे गए हैं। सभी का जोर केवल इस पर रहता है कि मौसम के अनुकूल खानपान रखें। देर रात तक भोजन न करें और सूर्याेदय से पहले बिस्तर छोड़ दें। स्वस्थ रहने के लिए इतना तो किया ही जा सकता है।

भारतीय जलवायु उष्ण प्रधान होने से यहाँ शीतकाल का समय अल्पकालीन रहता है। प्राकृतिक रूप से भी शीतकाल का समय स्वास्थ्य रक्षा की दृष्टि से शरीर को बल-पुष्टि प्रदान करने का रहता है। आयुर्वेद शास्त्र का उद्देश्य है स्वस्थ्स्य स्वास्थ्य रक्षणं आतुरस्य विकार प्रशमनं च। अर्थात स्वस्थ व्यक्ति के स्वास्थ्य की रक्षा करना एवं रोगी के विकार (रोग) को दूर करना। वर्ष की छ: ऋतुओं को बारह मास में विभक्त किया गया है- वर्षा, शरद, हेमंत, शिशिर, बसंत और ग्रीष्म। इनमें से उत्तम स्वास्थ्य रक्षा की दृष्टि से हितकर व उपयोगी समय शीतकाल (हेमंत व शिशिर ऋतु) का होता है। इसका समय अगहन, पौष, माघ, फाल्गुन रहता है।

इन ऋतुओं में आहार: विहार, आचार-विचार में गलती का खामियाजा स्वस्थ व्यक्ति को रोगग्रस्त होकर भुगतना पड़ता है।

शीतकाल के लक्षण: वातावरण में वायु की शीतलता की वजह से शारीरिक ऊष्मा अंदर रुककर, बढ़कर बलवान हो जाती है, जिससे जठाराग्नि (पाचक रस) प्रबल होकर पाचन शक्ति बढ़ाकर व्यक्ति के गरिष्ठ (भारी) भोजन को पचाने के योग्य बनाता है। साथ ही रात बड़ी व दिन छोटेहोने से निद्रा पर्याप्त होती है, पाचन ठीक होता है तथा कब्ज नहीं रहती।

उत्पन्न रोग: श्वांस, कास, प्रतिश्याय (जुकाम), अंगमर्द, शरीर में जकड़ाहट, त्वचा का शुष्क होना, शीतकालीन ज्वर (न्यूमोनिया) आदि।

बचाव के उपचार: सरसों का तेल, सेंधा नमक से छाती पर लेप, वाष्प स्नान, धूप स्नान, प्राणायाम करना। रात्रि में सौंठ,कालीमिर्च, पिपली का समभाग चूर्ण 1 चम्मच उष्ण जल में पीना। नित्य नासा छिद्रों में शुद्ध सरसों का तेल डालना।

शीतकाल में पथ्य आहार: पौष्टिक, भारी बलवर्धक पदार्थ जैसे दूध, घी, मक्खन, उड़द की दाल, रबड़ी, मलाई, दूध-चावल या दूध-केला, मखाने की खीर, हरी सब्जी, सौंठ, अंजीर पिंडखजूर, लहसुन, काला तिल, गाजर, आँवला, शहद, पुराना गुड़, मौसमी फल, लहसुन, क्षीरपाक आदि।

पथ्य विहार – शीतकाल में रहन-सहन का भी ध्यान रखें। देर रात को भोजन न करना, रात्रि जागरण न करना, समय पर सोकर प्रात: सूर्याेदय के पूर्व उठना, प्राकृतिक नियमों का पालन, 2-3 किलोमीटर पैदल चलना, योगासन, सूर्य नमस्कार, उबटन, तेल मालिश (अभ्यंश) धूप में बैठना आदि।

अपथ्य आहार: रुक्ष, शुष्क, शीत प्रकृति वाले, बासी खट्टे, कटु, तिक्त रसयुक्त, वातवर्धक द्रव्य, इमली, अमचूर, रात्रि में दही, आम की केरी, अचार आदि का त्याग करें।

अपथ्य विहार: रात्रि जागरण, दिवा शयन, आलसी दिनचर्या, श्वेत वस्त्रों में घूमना, स्रोतस का अवरोध आदि।

विशेष: पहला सुख निरोगी काया। व्यक्ति के पास धर्म, अर्थ, काम, सब सुख-सुविधा साधन तो हैं परंतु यदि अच्छा स्वास्थ्य न हो तो इनका क्या फायदा?

अत: लंबी आयु के निरोगमय स्वस्थ जीवन व्यतीत करने वाले व्यक्ति को दिनचर्या, ऋतुचर्या, रात्रिचर्या के नियम का पालन करना चाहिए। आहार, निद्रा, ब्रह्मचर्य ही जीवन है। शीतकाल का खाया-पिया ही बाकी समय में ऊर्जा का संचार करता है।

(साई फीचर्स)