हंसाती नहीं निराश करती है सनी सिंह की ‘जय मम्मी दी’

 

निर्देशक: नवजोत गुलाटी

कलाकार: सन्नी सिंह निज्जर, सोनाली सहगल, सुप्रिया पाठक, पूनम ढिल्लन, भुवन अरोरा, राजेंद्र सेठी, दानिश हुसैन, वीर राजवंत सिंह, आलोक नाथ

कॉमेडी बॉलीवुड का पसंदीदा विषय रहा है और व्यावसायिक दृष्टि से भी इसका महत्व है, इसलिए कॉमेडी फिल्मों का दौर कभी खत्म नहीं होता। कभी कम तो कभी ज्यादा, कॉमेडी फिल्में हमेशा बनती रही हैं। आजकल बॉलीवुड में कॉमेडी का खूब जलवा है। बड़े-बड़े बैनर कॉमेडी फिल्में बना रहे हैं और बड़े-बड़े कलाकार उनमें काम कर रहे हैं। उनमें से कई फिल्मों ने बहुत अच्छा कारोबार भी किया है। लेकिन कामेडी बनाना इतना आसान भी नहीं है, वरना हर कॉमेडी फिल्म हाफ टिकट’, ‘गोलमाल’,‘अंदाज अपना अपनाऔर हेराफेरीहोती। अगर क्लासिक नहीं होती, तो कम से कम प्यार का पंचनामासिरीज और सोनू के टीटू की स्वीटीजैसी ही होती, जिनके निर्देशक लव रंजन हैं। लव रंजन का जिक्र इसलिए, कि उनके प्रोडक्शन की जय मम्मी दीइस शुक्रवार को रिलीज हुई है, जिसके निर्देशक नवजोत गुलाटी हैं। लव रंजन की तीनों फिल्मों ने लोगों का मनोरंजन किया था, लिहाजा उनका नाम जय मम्मी दीसे जुड़ा होने के कारण इससे भी थोड़ी-बहुत उम्मीदें थीं। लेकिन इस फिल्म को देखने के बाद यह विश्वास और मजबूत हो गया हास्य फिल्में बनाना कोई मजाक नहीं।

दिल्ली के रोहिणी मोहल्ले में रहने वाले पुनीत खन्ना उर्फ पुन्नू (सनी सिंह) और सांझ भल्ला (सोनाली) पड़ोसी हैं। दोनों स्कूल के समय से एक-दूसरे को पसंद करते हैं। लेकिन इनकी मम्मियां लाली खन्ना (सुप्रिया पाठक शाह) और पिंकी भल्ला (पूनम ढिल्लन) एक-दूसरे को फूटी आंख नहीं सुहातीं। दोनों में बहुत पुरानी दुश्मनी है। क्यों है, किसी को पता नहीं। सांझ एक दिन पुन्नू को शादी के लिए प्रपोज करती है, लेकिन वह मम्मी के डर के चलते मना कर देता है। सांझ और पुनीत दोनों अलग हो जाते हैं। फिर दोनों की शादी कहीं और पक्की हो जाती है। इसके बाद दोनों को लगने लगता है कि वे एक दूसरे के बगैर खुश नहीं रह सकते। लेकिन सबसे बड़ी समस्या है कि दोनों की मम्मियां किसी कीमत पर इसके लिए राजी नहीं होंगी। दोनों योजना बनाते हैं कि उनकी मम्मियों की दुश्मनी किस बात को लेकर है, पहले इसका पता लगाया जाए और फिर उस वजह को दूर किया जाए…

कॉमेडी के लिहाज से फिल्म का विषय बुरा नहीं है। लेखक और निर्देशक नवजोत गुलाटी को यह तो पता है कि मंजिल क्या है, लेकिन किस रास्ते से जाएं, कैसे जाएं, इसे लेकर वह स्पष्ट नहीं दिखते। यही वजह है कि फिल्म अपने सफर में ही गुम हो जाती है। पटकथा में दम नहीं है, किरदारों को ठीक से नहीं गढ़ा गया है। एकाध संवादों को छोड़ दें, तो उनमें हंसी का पंच नहीं है। कहानी एकदम सपाट तरीके से चलती है, उसमें न कोई रस है और न रोमांच। नवजोत का निर्देशन इन कमियों को और उभार देता है। फिल्म में कुछ भी ऐसा नहीं है, जिसे देख-सुन कर मजा आ जाए। लाली और पिंकी की दुश्मनी की जिस वजह को फिल्म के क्लाइमैक्स में दिखाया गया है, वह हास्यास्पद है। हालांकि फिल्म बहुत झेलाऊ नहीं है, लेकिन एक फिल्म के बेहतर होने के लिए जो चाहिए, वह इसमें नदारद है। फिल्म का संगीत इसके प्रभाव को बढ़ाने की बजाय बाधित करता है। हां, फिल्म में दिल्ली की पृष्ठभूमि को जरूर ठीकठाक तरीके से दिखाया गया है।

पुन्नू के किरदार को ठीक से निभाने में सन्नी सफल रहे हैं, लेकिन उनके पास मौका था कि वे इस किरदार को और बेहतर तरीके से कर पाते। उनकी संवाद अदायगी हर फिल्म में एक जैसी ही लगती है। इसमें उन्हें विविधता लानी चाहिए। सांझ के किरदार में सोनाली सहगल ग्लैमरस लगी हैं, लेकिन उनका अभिनय बस ठीकठाक है। सुप्रिया पाठक और पूनम ढिल्लन के किरदारों को उनके बच्चे मोगैंबो और गब्बर कहते हैं, लेकिन उनके किरदारों में वह कहीं नहीं दिखता। दोनों के किरदारों को ठीक से नहीं गढ़ा गया है, इसलिए दोनों का अभिनय भी प्रभावित नहीं कर पाता। इनके किरदारों को अगर बढ़िया से गढ़ा गया होता, तो फिल्म बेहतर हो सकती थी। पुन्नू और सांझ के पापा के रूप में राजेंद्र सेठी और दानिश हुसैन का काम ठीक है। आलोक नाथ का किरदार बस नाम का है। बाकी कलाकारों का अभिनय भी कोई उल्लेखनीय नहीं है। जय मम्मी दीएक अति साधारण फिल्म है, जिसे नहीं देखने पर आपको कोई अफसोस नहीं होगा।

(साई फीचर्स)