फिल्मी कलाकारों कैसे ऐसे-ऐसे?

 

(अजय सेतिया) 

आपको अनुराग कश्यप, विशाल भारद्वाज, नंदिता दास, अपर्णा सेन, सिद्धार्थ मल्होत्रा, परिणिति चोपड़ा, स्वरा भास्कर, राकेश ओम प्रकाश मेहरा, सुशांत सिंह जैसे अनेक हिन्दू फ़िल्मी कलाकार मिल जाएंगे जो नागरिकता संशोधन क़ानून का विरोध कर रहे हों। इन सब को इस से कोई फर्क नहीं पड़ता कि पाकिस्तान, बांग्लादेश या अफगानिस्तान में अल्पसंख्यकों की जिंदगी नर्क बनी हुई है या नहीं। इन्हें इस बात से कोई फर्क नहीं पड़ता कि पाकिस्तान में आए दिन दलित हिन्दू, सिख, ईसाई नाबालिग बच्चियों का अपहरण और बलात्कार हो रहा है। इन्हें फर्क इस बात का पड़ता है कि पाकिस्तान, बांग्लादेश और अफगानिस्तान के मुस्लिम दर्शक रूठ गए तो उन का फ़िल्मी बिजनेस चोपट हो जाएगा।

यह तो है स्वार्थी हिन्दू कलाकारों की बात जो खुद को धर्म से ऊपर उठा हुआ बता कर इंसानियत का ढोंग रचते हैं। वे बता नहीं पाते कि हिन्दू, सिख, ईसाई बच्चियों को अपहरण और बलात्कार से बचा कर सम्मानपूर्वक जिंदगी जीने का हक दिलाना इंसानियत के दायरे में कैसे नहीं आता। दूसरी ओर क्या आप कोई ऐसा भारतीय मुस्लिम फ़िल्मी कलाकार बता सकते हो, जो पाकिस्तान, बांग्लादेश और अफगानिस्तान के अल्पसंख्यकों के सम्मान से जीने के हक के नाम पर न सही, मानवता के नाम पर ही उन्हें भारत की नागरिकता देने के लिए किए गए संशोधन के पक्ष में खुल कर आए हों। आप को एक मुस्लिम चेहरा दिखाई नहीं देगा। जावेद अख्तर, शबाना आजमी, नसीरुद्दीन शाह, फरहान अख्तर, सईद मिर्जा, मोहम्मद जीशान अयूब, दिया मिर्जा के लिए धार्मिक प्रतिबद्धता ही महत्वपूर्ण है, इसलिए वे सेक्यूलरिज्म के नाम पर खुल कर नागरिकता संशोधन क़ानून का विरोध कर के इस्लामिक देशों के पापों को छिपाने का काम कर रहे हैं।

आप को उर्दू का कोई मुस्लिम लेखक – साहित्यकार क्या ऐसा मिला जिसकी लेखकीय संवेदनाए जागृत हुई हों और उसने इन अभागे हिन्दुओं, सिखों, ईसाईयों के समर्थन में दो शब्द लिखे हों, कोई कहानी -उपन्यास लिखा हो। आप को इस्लामियत के इतिहासकार हबीब अख्तर मिल जाएंगे, जो नागरिकता संशोधन क़ानून का समर्थन कर रहे राज्यपाल आरिफ मोहम्मद खान का कालर पकड़ने की असभ्य और फूहड़ गुस्ताखी कर सकता है। आप को उर्दू के लेखक मुज्तबा हुसैन मिल जाएंगे, जो पहले अपना पद्म पुरस्कार नहीं लौटा पाए थे, अब इस्लामिक देशों में उत्पीडन के शिकार लोगों को सहारा देने के विरोध में पद्म पुरस्कार लौटाने की घोषणा करते हों। आप को उर्दू साहित्य अकादमी के पुरस्कार लौटाने वाले शिरीन दलवी और याकूब यावर मिल जाएंगे, लेकिन एक मुस्लिम उर्दू या अंगरेजी का लेखक नहीं मिलेगा, जो मानवता के नाम पर खुल कर नागरिकता संशोधन क़ानून का समर्थन कर रहा हो।

आप को नागरिकता संशोधन क़ानून का समर्थन करने वाले अनुपम खेर को सिरफिरा और जोकर कहने वाले नसीरुद्दीन शाह मिल जाएंगे क्योंकि उन्हें अपने पाकिस्तानी दर्शकों को खुश रखना है। क्या यह देश की बदनसीबी नहीं कि हम ने ऐसे फ़िल्मी कलाकारों को सिर पर बिठाया जिनमें न कोई संवेदना बची है, न मानवता, जिनके लिए इस्लाम और इस्लामिक देशों के प्रति सॉफ्ट कार्नर ही सर्वाेपरी है। जिन्हें कल तक भारत में डर लगता था, अब उन्हें चिंता है कि उन्हें भारत की नागरिकता साबित करने के लिए कागज बनवाने पड़ेंगे। वह चाहते है कि उन की भारत को नीचा दिखाने वाली हरकतों को देश गंभीरता से ले और उन के भाई बंदियों की ओर से तेरा मेरा रिश्ता क्या, लाइल्लाह इल्लिलाह के नारे लगा कर अपनी जमीन से बेदखल कर दिए गए कश्मीरी पंडित अनुपम खेर को लोग गम्भीरता से न ले।

ऐसा नहीं हो सकता था कि भारत में रहने पर डरने वाले और नागरिकता बनाए रखने के लिए छटपटाने वाले नसीरुद्दीन को देशभक्त अनुपम खेर मुहं तोड़ जवाब न दें, जिस अनुपम खेर ने जस्टिस गांगुली को उन के सामने सार्वजनिक तौर पर धो कर रख दिया था, उन से डरपोक नसीरुद्दीन कैसे बच सकते थेतो अनुपम खेर ने भी एक वीडियो जारी कर के नसीरुद्दीन को जम कर धोया। हालांकि इस वीडियो के साथ उन्होंरने एक लंबा कैप्शरन भी लिखा जिसमें उन्हों ने एक कलाकार के तौर पर नसीरुद्दीन के प्रति सम्मांन भी प्रकट किया। अपने सिर्फ 88 सेकिंड के वीडियो में अनुपम खेर ने कहा कि नसीर साहब की जिंदगी एक तरह से कुंठा में बीती है। वह पहले दिलीप कुमार, अमिताभ बच्चबन और विराट कोहली जैसी हस्तियों की भी आलोचना कर चुके हैं। ऐसा करते-करते वे अब एलीट क्लब में शामिल हो चुके हैं।

(साई फीचर्स)