दिल्ली को नहीं जीता तो क्या जीता!

 

(विवेक सक्सेना)

समझ में नहीं आता कि इसको क्या कहा जाए? जिस नरेंद्र मोदी के जरिए दुनिया के सबसे बड़े मजबूत राष्ट्र अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप अपने चुनाव में उनकी मदद चाहते हो वहीं मोदी अपने देश पर राज करने के बावजूद उस देश की राजधानी दिल्ली में अपनी सरकार नहीं बना पा रहे हैं। सच कहूं तो उनकी यह स्थिति तो मुझे अक्सर बिना ताज वाले महाराजा सरीखी लगती है।

नई दिल्ली पर महाभारत काल से ही सत्तारूढ़ लोगों का काबिज होने का प्रयास रहा है। पांडवों की राजधानी भी दिल्ली इंद्रप्रस्थत थी। फिर मुगलों ने और उसके बाद अंग्रेजो ने इस पर शासन किया। मगर जहां भाजपा की केंद्र में सरकार हैं वहीं देश की राजधानी दिल्ली की सरकार पर आप का कब्जा है। दिल्ली की राजनीति शुरू से कुछ अलग रही है। पहले दिल्ली में विधानसभा नहीं थी व पूरे केंद्र शासित प्रदेश दिल्ली की नई दिल्ली सीट सबसे ज्यादा अंहमियत रखती थी।

इतिहास बताता है कि आजादी के बाद देश में पहले लोकसभा चुनाव जब हुए तो इस सीट से सुचेता कुपलानी जीती जोकि पहले अपने आचार्य कृपलानी के साथ कांग्रेस में रह चुकी थी। सुचेता कृपलानी कांग्रेस की जगह अपने पति की पार्टी किसान मजदूर पार्टी की टिकट पर लोकसभा पहुंची थी। कांग्रेस में रहते उनके पति का जवाहर लाल नेहरू के साथ टकराव हो गया था।

बताते हैं कि भारत के स्वतंत्र होने के बाद जवाहर लाल नेहरू काफी घमंड़ी हो गए थे व अपने ज्ञान के कारण दूसरे नेताओं की उपेक्षा करने लगे थे। आजादी के बाद लोग खाली थे व उनका अपने नेताओं से मोहभंग होने लगा था। मजेदार बात यह है कि जब देश 1947 में आजाद हुआ तो उस समय कांग्रेस के अध्यक्ष जीवटराम भगवानदास कृपलानी ही थे।

दरअसल चुनाव के बाद पार्टी के लोगों की सोच में काफी बदलाव आ गया। देश आजाद हो चुका था। अब वे अपने ही नेताओं के बारे में सोचने लगे। कुछ लोगों का मानना था कि जवाहरलाल नेहरू अपने आपको बहुत बुद्धिमान समझने लगे है व लोगों पर अपनी बात लादते है। इसी के चलते उनकी आचार्य कृपलानी से नहीं पटी व उन्होंने अलग होकर अपनी पार्टी किसान मजदूर पार्टी बना ली व 1952 में इस पार्टी के टिकट पर अपनी पत्नी सुचेता कृपलानी को नई दिल्ली लोकसभा सीट से चुनाव लड़वाया और वे जीत गई।

बाद में नेहरूजी, सुचेता कृपलानी को पार्टी में वापस लाने में कामयाब हो गए। तब कृपलानीजी ने कहा कि या तो मुझे लगता था कि कांग्रेसी मूर्ख है पर अब मुझे लगता है कि वे तो गैंगस्टर है व दूसरो की बीवियो को उठा ले जाते हैं। तब तक उत्तर प्रदेश में कांग्रेस के अंदर झगड़े होने लगे। चंद्रभान गुप्त व कमलापति त्रिपाठी एक-दूसरे को फूटी आंख नहीं सुहाते थे। चंद्रभान गुप्त को मुख्यमंत्री पद से हटाए जाने की मांग की जाने लगी। जब उत्तर प्रदेश में विधानसभा चुनाव हुए तो चंद्रभान गुप्त चुनाव हार गए व कमलापति त्रिपाठी चुनाव जीत गए। तब कमलापति को काटने के लिए सीबी गुप्त ने नेहरूजी से कहा कि वे महात्मा गांधी के करीब रही सुचेता कृपलानी को मुख्यमंत्री बना दे। नेहरूजी ने ऐसा ही किया व अंबाला में पैदा हुई व दिल्ली में पढ़ी-लिखी सुचेता कृपलानी देश के सबसे बड़े राज्य उत्तर प्रदेश की मुख्यमंत्री बन गई व उन्होंने देश की किसी राज्य के पहली महिला मुख्यमंत्री होने का गौरव हासिल किया। वे महात्मा गांधी के काफी करीब थी व नोआखली के दंगों के दौरान उनके साथ रही थी।

हालांकि कुछ लोगों का दावा है कि गांधीजी ने ही उन्हें जेबी कृपलानी से शादी करने से मना किया था क्योंकि वे उनसे 20 साल बड़े थे। जब आजादी के बाद कांग्रेस के प्रधानमंत्री पद के लिए चुनाव हुआ तो पहले नंबर पर सरदार पटेल थे, दूसरे नंबर पर कृपलानी थे व तीसरे नंबर पर जवाहरलाल नेहरू को मत मिले। मगर महात्मा गांधी ने पटेल व कृपलानी को अपने नाम वापस लेने के लिए कहा और नेहरूजी तीसरे स्थान पर होने के बावजूद देश के पहले प्रधानमंत्री बन गए।

हालांकि कुछ लोग कहते हैं कि कृपलानी हर कांग्रेसी की आलोचना करते रहे मगर उन्होंने कभी गांधीजी के खिलाफ एक भी शब्द नहीं कहा। सुचेता कृपलानी बाद में फिर कांग्रेस से नई दिल्ली से सांसद बनी।नई दिल्ली सीट की यह खासियत रही कि उसने यहां के मूल निवासियों के बाद बाहरी लोगों को ज्याद पसंद किया। इस लोकसभा सीट से बलराज मधोक, मेहरचंद खन्ना, मनोहर लाल सेठी चुनाव जीते जोकि बंटवारे के बाद भारत आए थे।

यहां से जीतने वाले मुकुल बनर्जी, अटलबिहारी वाजपेयी, कृष्णचंद्र पंत, लालकृष्ण आडवाणी व राजेश खन्ना भी दिल्ली से बाहर के थे। संयोग ही कहा जाए कि मौजूदा भाजपा सांसद मीनाक्षी लेखी भी नई दिल्ली लोकसभा सीट से जीतने वाली अकेली महिला है। उनसे पहले दिल्ली की नई दिल्ली लोकसभा सीट से कोई महिला नहीं जीती थी। पहली बार 2008 में पंजाब की शीला दीक्षित भी इस नई दिल्ली विधानसभा से जीतकर मुख्यमंत्री बनी।

फिर हरियाणा मूल के अरविंद केजरीवाल उन्हें हराकर मुख्यमंत्री बने। सुचेता कृपलानी मूलतः बंगाली ब्राह्मण थी व उनका असली नाम सुचेता मजूमदार था व वे दिल्ली के सेंट स्टीफेंस कॉलेज में पढ़ी लिखी थी। बाद में उन्होंने राजनीति छोड़ दी व अपने पति के साथ दिल्ली के एक सामान्य इलाके में एक गैरेज के ऊपर के कमरे को किराए पर लेकर वहां रहने लगी। एक बार दो पत्रकार उनसे मिलने गए तो वे बीमार चल रही थी। उन्होंने पत्रकारों से पूछा कि आप लोग चाय पीएंगे तो जेबी कृपलानी ने उन्हें लताड़ते हुए कहा कि ऐसे क्यों पूछ रही है। घर में दूध नहीं है व तुम्हें कोई दूध उधार में नहीं देगा। अंततः कड़की में रहते हुए दोनों पति पत्नी इस दुनिया से चले गए। इस नई दिल्ली लोकसभा सीट से बाद में जगमोहन, अजय माकन व मीनाक्षी लेखी व विधानसभा सीट से अरविंद केजरीवाल चुनाव जीतें।

(साई फीचर्स)