कब कसी जायेंगी झोला छाप चिकित्सकों की मश्कें!

 

(शरद खरे)

सिवनी जिले में झोला छाप चिकित्सकों की मौज दिखायी दे रही है। इसके साथ ही साथ नागपुर और अन्य प्रदेशों से सिवनी आकर चिकित्सा करने वालों पर किसी तरह का अंकुश लागने में स्वास्थ्य विभाग पूरी तरह अक्षम दिखायी दे रहा है। आश्चर्य तो इस बात पर होता है कि शहर के मेडिकल स्टोर्स में ही चिकित्सक आकर मरीज़ों का परीक्षण करते हैं, जबकि क्लीनिकल एस्टबलिशमेंट एक्ट के तहत इन्हें प्रदेश सरकार के साथ पंजीयन कराये जाने की आवश्यकता होती है।

सरकारी स्तर पर योजनाएं किस तरह दम तोड़ रही हैं, इसका अंदाज़ा इस बात से लगाया जा सकता है कि जिन्हें निःशुल्क सरकारी उपचार मिलना चाहिये था वे निज़ि स्तर पर चिकित्सकों की महंगी फीस देने पर मजबूर होते रहे। इतना ही नहीं सुदूर ग्रामीण अंचलों में जहाँ तत्काल चिकित्सकीय सहायता नहीं मिल पाती है वहाँ, झोला छाप चिकित्सक और ओझा, पण्डों के भरोसे ही रहने पर मजबूर रहे हैं ग्रामीण। ये हालात सरकार के बदलने के बाद भी जस के तस ही प्रतीत हो रहे हैं।

सिवनी जिले में भी झोला छाप चिकित्सकों की भरमार दिखायी देती है। जहाँ-तहाँ बंगाली दवाखाना, विश्वास क्लीनिक या सिर्फ दवाखाना लिखकर ही बिना किसी वैध डिग्री के चिकित्सकों के द्वारा लोगों की जान से खिलवाड़ किया जा रहा है। जिले में अनेक मामले ऐसे भी प्रकाश में आ चुके हैं जिनमें लोगों का मर्ज बिगड़ा है और कई को तो जान से हाथ भी धोना पड़ा है।

देखा जाये तो मुख्य चिकित्सा एवं स्वास्थ्य अधिकारी का यह दायित्व है कि वे अपने अधिकार क्षेत्र में समय-समय पर टीम गठित कर झोला छाप चिकित्सकों पर दबिश देकर लोगों को इनके मकड़जाल से बचायें। आश्चर्य तो तब होता है जब, ये झोला छाप चिकित्सक सीना ठोककर यह कहते हैं कि उनका कोई कुछ नहीं बिगाड़ सकता है वे, ब्लॉक मेडिकल अधिकारी से लेकर सीएमएचओ तक को साधे हुए हैं।

मजे की बात तो यह है कि सीएमएचओ के द्वारा समय-समय पर आदेश जारी कर जिले में निज़ि चिकित्सा कर रहे चिकित्सकों को उनकी पैथी से संबंधित दस्तावेज जमा करवाने के लिये आदेश दिया जाता रहा है। इस तरह के आदेश जारी करने के बाद सीएमएचओ कार्यालय गहरी निंद्रा में डूब जाता है। इसके बाद सीएमएचओ कार्यालय को भी इस बात की परवाह प्रतीत नहीं होती है कि उनके कार्यालय के आदेश की तामीली हो भी पायी है अथवा नहीं!

यह वाकई दुःखद और चिंतनीय है। इसके लिये मुख्य चिकित्सा एवं स्वास्थ्य अधिकारी को चाहिये कि वे अपने स्तर पर यह प्रयास करें कि उनके पास उपलब्ध चिकित्सकों को उन स्थानों पर जाने के लिये वे पाबंद करें (भले ही सप्ताह में दो दिन) जहाँ, अस्पताल तो हैं पर चिकित्सक नहीं हैं। इसके अलावा शासन स्तर पर भी चिकित्सकों की पदस्थापना के प्रयास उसी तरह करें जिस तरह, बजट आवंटन के लिये किया करते हैं।

दरअसल, यह पूरी की पूरी जवाबदेही चुने हुए सांसद-विधायकों की है। सांसद-विधायकों को चाहिये कि वे हर एक उस मत (वोट) का सम्मान करें जिसके जरिये, वे विधानसभा या लोकसभा की सीढ़ियां चढ़-उतर रहे हैं। जनता ने उन्हें अपना भाग्य विधाता चुना है पाँच सालों के लिये। इस लिहाज़ से विधानसभा या लोकसभा में वे अपनी आवाज बुलंद अवश्य करें। विडंबना ही कही जायेगी कि सिवनी में आज़ादी के साढ़े छः दशकों बाद भी केंद्र सरकार का एक भी चिकित्सालय नहीं है।

सांसदों, विधायकों, जिला प्रशासन सहित स्वास्थ्य विभाग के आला अधिकारियों से अपेक्षा है कि जिले भर में कुकरमुत्ते के मानिंद फैले झोला छाप चिकित्सकों की मश्कें कसने के लिये निश्चित अंतराल पर छापामार कार्यवाही को अंजाम देते हुए सरकारी स्तर पर योग्य चिकित्सकों की पदस्थापना के प्रयास सुनिश्चित कर, लोगों को राहत देने का प्रयास अवश्य करें।