बीमारी से इंसानी जंग

 

अमेरिका में फ्लू से होने वाली मौतों के मद्देनजर चीन और चीन से बाहर फैले कोरोना वायरस पर ध्यान देने की जरूरत है। कोरोना वायरस से निपटने के लिए सबसे अच्छी सलाह यह है कि धैर्य रखें और ऐसे तरीके से काम करें, जो रोगों के संक्रमण की आशंका को कम करते हों। फिलहाल चीन की यात्रा न करें। बार-बार हाथ धोएं। यदि आपने फ्लू संबंधी कोई टीका नहीं लिया, तो ले लें।

अभी कोरोना वायरस शार्क, सांप, आतंकवादी हमलों की तरह दिखता है और डर को बढ़ाता है। जबकि यह वायरस कैसे फैलता है, इस बारे में अनिश्चितता है। हार्वर्ड विश्वविद्यालय और बोस्टन चिल्ड्रन अस्पताल के मैमुना मजुमदार कहते हैं कि यह बीमारी गंभीर तीव्र श्वसन सिंड्रोम की श्रेणी में है। आज की जीवनशैली से किसी नई बीमारी के उपजने की आशंका बनी रहती है। यह इतिहास का सबक है, मानवता और बीमारी के बीच चल रही लड़ाई है। इसमें मानवता ही आमतौर पर जीतती है, पर बीमारी भी प्रतिपक्ष के रूप में हमेशा बनी रहती है।

मानवता पर सबसे स्पष्ट खतरा 14वीं शताब्दी में यूरोप और एशिया के कुछ हिस्सों में बुबोनिक प्लेग के प्रकोप से आया था। मानवता पर यह हमला ऐसे समय में हुआ था, जब शहर बढ़ रहे थे और चिकित्सा विज्ञान सशक्त नहीं था। तब तबाही इतनी जबरदस्त थी कि अपनी खोई हुई आबादी हासिल करने में ही यूरोप को दो सदियां लग गईं। इसके बाद 1918-19 की सर्दियों में फ्लू महामारी अनुमानित पांच करोड़ इंसानों की मौत का कारण बनी, इस ग्रह की आबादी का लगभग तीन प्रतिशत हिस्सा इसका शिकार हुआ था। तब तक औषधि विज्ञान में ज्यादा प्रगति नहीं हुई थी, फ्लू का टीका बनने में दो दशक और लगे थे।

अमेरिका जैसा राष्ट्र हर डॉलर में से 18 सेंट सेहत पर खर्च करता है, पर यहां भी वैक्सीन उत्पादन में अपेक्षाकृत कम संसाधन खर्च किए जाते हैं। बेशक औषधि विज्ञान ने तरक्की की है, जिससे जीवनकाल लंबा हुआ है, महामारियां अपेक्षाकृत कम फैल रही हैं, इतने से आश्वस्त हो जाना आसान है, लेकिन वास्तव में आज इंसान जिन गतिविधियों में लगे हैं, हम बीमारी को लड़ने का मौका दे रहे हैं। (यूएसए टुडे, अमेरिका से साभार)

(साई फीचर्स)