सभी को पछाड़ राजा बघेल बने सहकारी बैंक के प्रशासक

 

काँग्रेस के जिलास्तरीय क्षत्रपों में बघेल बने राजा, बाकी नज़र आ रहे बौने!

(अखिलेश दुबे)

सिवनी (साई)।ं उधर, प्रदेश स्तर पर सियासी घमासान मचा हुआ है, इधर जिला स्तर पर भी काँग्रेस के अंदर वर्चस्व की जंग लंबे समय से देखने को मिल रही थी। काँग्रेस के जिला स्तरीय क्षत्रपों के द्वारा अपने आप को स्थापित करने के लिये हर संभव प्रयास किये जा रहे थे। इसमें राजा बघेल ने बाजी मार ली है।

सहकारी संस्थाओं के सहकारिता एवं पंजीयक के आदेश के तहत केंद्रीय बैंक मर्यादित सिवनी में 17 दिसंबर 2018 को विभाग के जबलपुर में पदस्थ संयुक्त पंजीयक को अस्थायी रूप से प्रशासक नियुक्त किया गया था। इसके उपरांत 17 मार्च को मध्य प्रदेश सहकारी सोसायटी अधिनियम 1960 की धारा 49 – 7(ए) से भैरोगंज बुनकर संस्था मर्यादित के सदस्य राजा बघेल को प्रशासक बनाने का प्रस्ताव आयुक्त कार्यालय को प्राप्त हुआ है।

इस आदेश में यह भी कहा गया है कि सहकारी संस्थाओं के संयुक्त पंजीयक पी.के. सिद्धार्थ के द्वारा इन आदेशों और अन्य अधिनियमों के प्रकाश में राजा बघेल को आगामी आदेश तक सिवनी के केंद्रीय सहकारी बैंक मर्यादित का प्रशासक नियुक्त किया गया है। यह आदेश 17 मार्च को जारी किया गया है।

जिला काँग्रेस के अंदरखाने से छन – छन कर बाहर आ रहीं खबरों पर अगर यकीन किया जाये तो सहकारी बैंक के प्रशासक पद के लिये जिला काँग्रेस अध्यक्ष के अत्यंत करीबी और विश्वस्त नेता का मनोनयन लगभग तय था। इसके साथ ही काँग्रेस के छपारा क्षेत्र के कुछ क्षत्रपों को साधने के लिये छपारा के सहकारिता क्षेत्र के एक नेता का नाम भी सामने लाकर उन्हें संतुष्ट करने का प्रयास किया जा रहा था।

काँग्रेस के सूत्रों ने समाचार एजेंसी ऑफ इंडिया से चर्चा के दौरान कहा कि जिला काँग्रेस के अनेक नेताओं की एकला चलो रे की नीति भारी पड़ गयी और काँग्रेस की सरकार बनने के उपरांत किसी भी सरकारी पद पर काँग्रेस के नेताओं की नियुक्ति करवाने में काँग्रेस के आला नेता असफल ही रहे।

सूत्रों ने यह भी बताया कि मामला चाहे सरकारी वकील की नियुक्ति का हो या नोटरी अथवा किसी अन्य पद पर काँग्रेस समर्थित नेता के मनोनयन की बात हो, हर मामले में काँग्रेस के जिला स्तरीय आलंबरदारों ने जमीनी स्तर के कार्यकर्त्ताओं को महज़ आश्वासन ही दिये जाते रहे।

सूत्रों ने कहा कि चूँकि सरकार काँग्रेस की थी, इसलिये प्रशासन के चुनिंदा पदाधिकारियों को प्रशासन के अधिकारियों के द्वारा खासा भाव दिया जा रहा था, जिससे पदाधिकारी पूरी तरह संतुष्ट नज़र आ रहे थे, किन्तु जमीनी स्तर के कार्यकर्त्ताओं की उपेक्षा को वे भांप नहीं पा रहे थे और संगठन में असंतोष के सुर खदबदाते दिख रहे थे।

सूत्रों की मानें तो जिला स्तर पर काँग्रेस धड़ों में बंटी साफ दिखायी दे रही थी। संगठन में महत्वपूर्ण पदों को धारित करने वाले नेताओं की कार्यप्रणाली से भी जमीनी स्तर के कार्यकर्त्ताओं में रोष और असंतोष पनपता दिख रहा था। हाल ही में सरपंच संघ के अध्यक्ष ब्रजेश राजपूत ने भी तबादला उद्योग सहित अनेक संगीन आरोपों के साथ ही काँग्रेस की प्राथमिकता सदस्यता का त्याग कर दिया था।

सूत्रों ने यह भी कहा कि जिले में तबादलों का खेल जिस तरह से खेला जा रहा था, वह किसी से छुपा नहीं था। छोटे कर्मचारियों, शिक्षकों आदि के तबादले के लिये बड़ी रकम की मांग की जाने की बातें भी फिजा में चल रहीं थीं। किसी से एक महीने की तनख्वाह मांगने की बात सामने आ रही थी, तो किसी से पाँच अंकों में राशि की मांग किये जाने की बातें भी फिजा में तैर रहीं थीं।

सूत्रों ने यहाँ तक कहा कि काँग्रेस के संगठनात्मक ढांचे में जिन नेताओं को महत्वपूर्ण जवाबदेही दी गयी थी, उनके इर्द – गिर्द ही सियासत की धुरी घूमती दिख रही थी और यही कारण था कि उपेक्षित नेताओं के द्वारा काँग्रेस के अनेक कार्यक्रमों से दूरी बनाकर रख ली गयी थी।

काँग्रेस के एक नेता ने पहचान उजागर न करने की शर्त पर समाचार एजेंसी ऑफ इंडिया से चर्चा के दौरान कहा कि राजा बघेल के अंदर संगठनात्मक क्षमता और प्रशासनिक पकड़ का कोई सानी नहीं है। उनके प्रशासक बनने के बाद काँग्रेस के उपेक्षित नेताओं को अब सम्मान मिलने की उम्मीद भी उक्त नेता ने जतायी है।